बुधवार, 30 अप्रैल 2014

मोहन गोखले की याद

29 अप्रैल को एक ऐसे कलाकार की पुण्यतिथि थी जिन्हें इस दुनिया से गये पन्द्रह वर्ष हो गये लेकिन अपने काम से उन्होंने दर्शकों के बीच जो पहचान स्थापित की थी उसी का प्रभाव है कि लोग मिस्टर योगी को भूल नहीं पाते हैं। जिक्र मोहन गोखले का है, एक अत्यन्त प्रतिभाशाली कलाकार जिनका निधन पैंतालीस वर्ष की आयु में 1999 में हो गया था, उस वक्त जब वे कमल हसन की फिल्म हे राम की शूटिंग के लिए चेन्नई गये थे। उनका अकस्मात इस तरह जाना हतप्रभ करने जैसा था। मोहन गोखले हिन्दी और मराठी सिनेमा में अपनी उत्कृष्ट अभिव्यक्ति और मिलनसार स्वभाव के कारण जाने जाते थे।

मोहन गोखले की उल्लेखनीय फिल्मों में स्पर्श, भवनी भवई, मोहन जोशी हाजिर हो, होली, माफीचा साक्षीदार, आज झाले मुक्त मी, मिर्च मसाला, हीरो हीरालाल, कर्मयोद्धा, हूँ हुँशी हुँशीलाल, युगंधर, अरण्यका, कैरी, डाॅ. बाबा साहेब अम्बेडकर, ध्यासपर्व, मोक्ष आदि शामिल हैं। कैरी, अमोल पालेकर निर्देशित उनकी अन्तिम फिल्म थी। अभिनेत्री शुभांगी गोखले उनकी पत्नी हैं जो स्वयं भी हिन्दी और मराठी सिनेमा की अत्यन्त अनुभवी और दीक्षित अभिनेत्री हैं। अभी हम उनकी नियमित उपस्थिति मिसरी मौसी के किरदार में लापतागंज सीरियल में देख रहे हैं। जिस समय मोहन गोखले का निधन हुआ था तब शुभांगी पाँच साल की बेटी साखी की माँ थीं।

पति मोहन गोखले का उनके जीवन में होना परस्पर रचनात्मक आयामों में एक-दूसरे साथ, सलाह-मशविरा और सुझाव से भरा एक ऐसा जीवन था, जो एक खूबसूरत सामंजस्य का भी पर्याय था। शुभांगी याद करते हुए कहती हैं कि मेरे लिए मोहन का मतलब था एक चकित कर देने वाला कलाकार और एक दिलचस्प इन्सान। अभिरुचिसम्पन्न और सुसंस्कृत व्यक्तित्व था उनका। उनकी यादों के बगैर एक दिन भी आज तक मैंने गुजारा हो, ऐसा हुआ नहीं। उन्होंने कभी अपनी कला से समझौता नहीं किया। वे उस समय भी तटस्थ रहे जब उनके सिखाये लोग अपना पाण्डित्यप्रदर्शन किया करते थे। मोहन के लिए उनका स्वाभाविमान ही सर्वोपरि रहा। सहजता और गहराई उनकी विशेषता रही। शुभांगी कहती हैं कि मेरा काम उनकी दक्षता से प्रेरित है पर उनकी श्रेष्ठता को पाना आसान नहीं है।

अपने जीवन में एक उत्साही और ऊर्जा से भरे कलाकार पति से जो अन्तःसमर्थन शुभांगी ने महसूस किया था, उनके नहीं रहने के बाद वे उस क्षण के सदमे, उनकी यादों और उनके बिना आगे जीवनपथ पर एक छोटी सी बच्ची के साथ सुरक्षित और आत्मनिर्भर बने रहना उनके लिए बड़ी चुनौती थी। शुभांगी ने अपने जीवट को बरकरार रखा और अपनी जिम्मेदारी से मुँह नहीं मोड़ा। स्वयं शुभांगी हजार चैरासी की माँ, हे राम, मोक्ष, सूर राहू दे, डिटेक्टिव नानी, क्षणभर विश्रान्ति आदि फिल्मों में काम कर चुकी हैं। एक मराठी धारावाहिक एका लग्नाची तीसरी गोष्ठ में भी उन्होंने काम किया। 
 
लापतागंज की मिसरी मौसी, शुभांगी तो अभिव्यक्ति में बहुत ही विलक्षण दिखायी देती हैं। शुभांगी, बेटी साखी के अनुसरण से खुश हैं, वो भी हिन्दी-मराठी रंगमंच और फिल्मों में सक्रिय है और अपनी माँ को इस वक्त भावनात्मक रूप से सबल बनाने का काम कर रही है। शुभांगी, मोहन की स्मृति में भावुक होती हैं और बेटी में उनका अक्स देखती हैं........जीवन जूझने और जीतने का पर्याय है, यह उनके व्यक्तित्व और पुरुषार्थ से प्रमाणित होता है।
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