इस टिप्पणी के साथ आप जो छायाचित्र देख रहे हैं वो अमिताभ बच्चन और उनके साथ अनवर अली का है। अनवर अली, एक बड़े प्रसिद्ध हास्य अभिनेता मेहमूद के छोटे भाई हैं। दोनों के इस गर्मजोशी से मिलने की वजह अनवर अली, उनकी पत्नी मोना और बेटे आकार की ओर से किया जाने वाला यादगार उपक्रम था, मेहमूद साहब की दसवीं बरसी पर "बम्बई टू गोवा" फिल्म के पुनरावलोकन का आयोजन। महत्व की बात है कि अमिताभ बच्चन वक्त निकालकर इस फिल्म के पुनरावलोकन में शामिल हुए।
सुयोग है कि अनवर अली ने फिल्म में ड्रायवर की भूमिका की थी और मेहमूद कण्डक्टर बने थे। दोनों के नाम दिलचस्प थे, अनवर भाई का राजेश और मेहमूद साहब का खन्ना। अमिताभ बच्चन फिल्म के नायक थे, रवि कुमार नाम था, अरुणा ईरानी नायिका। इस फिल्म को देखते हुए यह सफर दिलचस्प लगता है, किस्म-किस्म के किरदारों के साथ जिनमें मनोरमा, ललिता पवार, राजकिशोर, बब्बन, मुकरी, सुन्दर, केश्टो मुखर्जी, युसुफ खान, बीरबल नजर आते हैं। बस से बाहर कलाकारों में शत्रुघ्न सिन्हा, मनमोहन, नजीर हुसैन, दुलारी, आगा, असित सेन, जूनियर मेहमूद आदि भी फिल्म का हिस्सा होते हैं।
फिल्म में किशोर कुमार मेहमान कलाकार की तरह अपने ही किरदार में हैं और शूटिंग स्थल पर जाने के लिए बस में बैठते हैं, एक गाना गाते हैं। मेहमूद और किशोर कुमार में बड़ी मित्रता थी, मेहमूद अपने लिए उनको हमेशा भाग्यशाली मानते थे, साधू और शैतान और पड़ोसन फिल्में इस बात का प्रमाण हैं। किशोर कुमार साथ हों, इसके लिए उनका हर मूड, हर बात उन्हें मंजूर थी, सुनते हैं कि पड़ोसन में काम करने का मेहनताना किशोर कुमार ने उतने से एक रुपया ज्यादा लिया था, जितना उस समय मेहमूद अपने लिए निर्माताओं से लिया करते थे।
एस रामनाथन ने इस फिल्म का निर्देशन किया था। कहा जाता है कि निर्देशक ने मेहमूद और अनवर अली से इस फिल्म के बारे में बात करते हुए, अनवर अली के घर से अमिताभ बच्चन को निकलते देख, परिचय प्राप्त किया था और तय किया था कि हमें जो हीरो की जरूरत है, वो ये ही होंगे।
मेहमूद साहब की दसवीं बरसी पर उनके भाई की ओर से यह विचार बहुत मायने रखता है। वे स्वयं बड़े अस्वस्थ रहते हैं मगर उनकी इस ख्वाहिश को अंजाम देने का काम उनकी पत्नी मोना जी और बेटे ने किया। यह सम्भावना है कि दसवीं बरसी के इस साल में यह परिवार मुम्बई में मेहमूद साहब की कुछ और महत्वपूर्ण फिल्मों के प्रदर्शन आयोजित करे।
मेहमूद के बारे में यह सच ही कहा जाता है कि वे अपनी क्षमताओं में बहुआयामी कलाकार थे। आमतौर पर कहा यही जाता था कि उनकी उपस्थिति फिल्म के नायक को भी मुश्किल में डाल दिया करती थी। वे हीरो के बराबर पारिश्रमिक प्राप्त करने वाले कलाकार थे। वे बहुत बड़े उपकारी भी थे। अपने समय में राहुल देव बर्मन से लेकर अमिताभ बच्चन, विनोद मेहरा, अरुणा ईरानी और कितने ही कलाकारों के लिए उनका सहयोग और प्रोत्साहन का भाव रहा है। एक बार मन्ना डे साहब ने बताया था कि मेहमूद, राजकपूर, मेरे और हृषिकेश मुखर्जी के पक्के दोस्त थे।
मेहमूद का स्मरण्ा सचमुच भावुक करता है, मित्रों को वक्त मिले तो कभी उनकी फिल्में मस्ताना, नौकर, भूत बंगला, कुँवारा बाप, पारस, छोटे नवाब, जौहर मेहमूद इन गोवा, हमजोली, पड़ोसन आदि में से एकाध फिल्में जरूर देखें। वे हास्य अभिनेता थे मगर करुणा की अभिव्यक्ति में उनका कोई सानी नहीं। कुँआरा बाप के गाने में जब हिजड़े पूछते हैं कि ये बगर माँ का बच्चा कहाँ से लाये, बोलो न, बोलो न तब वे जिस तरह बच्चे के मिलने की दास्तान बतलाते हैं और उस लाइन को रोते गाते हैं, मैं वापस लौटा, फिर बच्चे को उठाया, गले से यूँ लगाया...........अपना कलेजा भी हिल जाता है.....
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