सोमवार, 25 मई 2015

भोपाल पत्रकारिता इतिहास के शलाका पुरुष मदन मोहन जोशी


शीर्षक में नाम के पहले स्व. जोड़ते हुए एक बार फिर अपने पर जिद करके भरोसा करना पड़ा है। भोपाल में पत्रकारिता के इतिहासपुरुष मदन मोहन जोशी का जाना, उनकी सक्रिय और सार्थक उपस्थिति के अनेक पहलुओं का स्मरण कराता है। पिछले पन्द्रह बीस सालों में वे पत्रकारिता से दूर थे लेकिन खासी पत्रकारिता के दौर में जवाहरलाल नेहरु कैंसर अस्पताल का जो स्वप्न उन्होंने देखा और साकार किया था, उसके मुखिया के रूप में वे अपनी अहम और उत्तरदायी भूमिका का निर्वाह कर ही रहे थे। यह सार्थक स्वप्न ही उनको अमर करता है, एक भयावह और असाध्य बीमारी से जूझने के लिए मानस तैयार करना, बड़ा समूह बनाना। इस अस्पताल को जस्टिफाय करते हुए उन्होंने आरम्भ में एक वाक्य भी प्रसारित किया था, कैंसर से डरिए नहीं, हमारे साथ लडि़ए...........
एक पत्रकार के रूप में, सम्पादक के रूप में उनका आभामण्डल बहुआयामी रहा है। उनके बारे में कहा जाता था कि वे पत्रकारों में आय ए एस हैं। हमेशा अच्छे सन्दर्भों से समृद्ध, खूब पढ़ने वाले, न केवल देशकाल बल्कि विश्वकाल के भी खासे जानने और अपडेट बने रहने वाले जोशी जी की भाषा, व्यवहार और अपनी टीम के साथ बरताव में अनुशासन अपनी सारी सात्विकताओं के साथ रहा करता था। मेरे वे पहले गुरु थे। 1985-86 के आसपास पंचायत विभाग की अधूरी कच्ची और छोटी सी नौकरी करते हुए लिखने का शौक रखते हुए एक दिन सुबह उनके घर चला गया था, यह कहने की चार दिन बाद रवीन्द्र भवन में एक फिल्म समारोह हो रहा है सात दिन का, उसकी समीक्षा नईदुनिया के लिए लिखना चाहता हूँ। उन्होंने तत्काल अनुमति दी, यह कहते हुए कि करो, हम देख भी लेंगे, कैसा लिखते हो। तब नईदुनिया का क्षेत्रीय दफ्तर प्रोफेसर्स काॅलोनी में था और फेसीमाइल से समाचार टाइप होकर जाया करते थे। पेज 3 भोपाल का होता था। सात दिन समीक्षा लिखी, नाम से छपी, उसके कुछ महीने बाद कहीं मिले, नमस्कार के उत्तर में कहने लगे, कहाँ हो, तब से आये नहीं, भाई अच्छी भाषा है, हमारे साथ जुड़ो। मैंने खिसिया कर कहा कि सर पंचायत में नौकरी भी करता हूँ तब कहने लगे कि शाम को 7 बजे आ जाया करो रोज, जिस दिन कार्यक्रम हों, कवर कर लिया करो। ऐसे में नईदुनिया का हिस्सा बना। याद आता है, उस समय एक महती काम उन्होंने नईदुनिया सामाजिक वार्षिकी तैयार करने का भी किया था जिसमें कहीं कार्यक्रम न होने पर मैं भी काम करता था। कई आर उनका डिक्टेशन मुझ सहित वहाँ काम करने वाली टीम को भी लेना पड़ता था, उनका काॅलम - राजधानी में आजकल।
उस समय के अनेक अनुभव हैं, वहाँ वरिष्ठ पत्रकार जो जोशी जी के साथ काम करते थे, कुछ जो नये शामिल हुआ करते थे। बहुत सारे नाम हैं जो नईदुनिया स्कूल से निकले और आज बड़ी जगहों पर हैं। जोशी जी ने सबकी काॅपी जाँची, सबकी काॅपी में संशोधन भी किए जो बड़े वाजिब और तार्किक भी होते थे। नईदुनिया की परम्पराओं को लेकर वे बहुत सजग और संवेदनशील भी रहते थे। उनकी उपस्थिति के शाम के तीन घण्टे जिस सक्रियता, एकाग्र किए रहने वाली चुप्पी और एक लक्ष्य लेकर 9 बजे तक सारी खबरों को इन्दौर पहुँचा देने का टास्क गजब का होता था। कई बार वे बाद की आकस्मिक घटनाओं और घटने वाली परिस्थितियों की जानकारी मिलते ही रात-बिरात लौट भी आते थे तब वे अकेले ही काम को अंजाम देकर जाते थे। हमें याद है कई बार घण्टों बिजली चली जाने पर हाॅटलाइन पर इन्दौर नईदुनिया दफ्तर में समाचार बोलकर भी लिखवाये जाते थे। जोशी जी के भाषण, उद्बोधन के हम सभी कायल थे। अपनी बात की पुष्टि में वे प्रायः कुछ अच्छे उदाहरण या उद्धरण भी दिया करते थे, वे बड़े प्रेरणीय होते थे।
जोशी जी ने सांस्कृतिक पत्रकारिता और विशेषकर समीक्षा को लेकर नईदुनिया में जो जगह अन्य सारी खबरों के साथ, चिन्ता के साथ रखी, वह भी भूल नहीं सकता। एक पेज से अधिक खबरों के पहुँच जाने के बाद छँटने में कला-संस्कृति की खबर प्रभावित न हो, इसका भी उन्होंने ध्यान रखा। हर महत्व के काम की शुरूआत करते हुए इन्दौर में अभय जी से, राहुल जी से, सेठिया जी से एप्रूवल ले लेने का काम बड़े ध्यान से करते थे। जोशी जी स्वयं अपनी व्यस्तताओं के बावजूद शहर के कला परिदृश्य पर गहरी निगाह रखते थे। मुझे याद है जब भारत भवन में एम एस सुब्बलक्ष्मी को संगीत का कालिदास सम्मान मिला था तब उन्होंने आधे पेज का लेख लिखा था, सम्पादकीय पेज पर। उस लेख में एक महान गायिका की सर्जना को जिस तरह वे अपनी भाषा में अलंकृत कर रहे थे, वह प्रेरणीय था।
जोशी जी को व्यक्तिशः असाधारण जीवट का धनी मानता हूँ। मेरे लिए वे मन ही मन बड़े हौसले का जीते-जागते प्रमाण बने रहे हैं जिनको तीन-चार हृदयाघात हुए जिससे वे जूझे और जीते। कुछ माह पहले ही दोपहर में मुम्बई से आये विमान से उनको व्हील चेयर पर लाया गया तो मालूम हुआ कि हृदय की सर्जरी हुई है और ठीक हैं। उनका दरअसल आत्मविश्वास, हौसला, जीवट और निरन्तरता का मानस स्तुत्य है जो हर कमजोर और हताश हो जाने वाले इन्सान के लिए प्रेरणीय है। जोशी जी ने हमेशा अपनापन बनाये रखा जो कभी भूल नहीं सकता हूँ। लिखने-पढ़ने के संसार में वे प्रथम गुरु, मार्गदर्शक और प्रोत्साहक थे मेरे, स्वाभाविक है मुझसे बेहतर और भी वरिष्ठजनों और सहकर्मियों के वे ऐसे ही सम्माननीय थे।
हम जैसे लोगों की चेतना में जोशी जी सदैव उसी तेवर, अपनेपन और साफगोई के साथ उपस्थित रहेंगे जो हमने प्रत्यक्षतः उनके साथ काम करते हुए महसूस की। पत्रकारिता में उनकी लम्बी शिष्य परम्परा उनको याद करते हुए जरूर अपना आदर देगी। भोपाल में जवाहरलाल नेहरु कैंसर अस्पताल उनके सच्चे पुरुषार्थ का साक्ष्य हमेशा बना रहेगा...............
Madan Mohan Joshi, Bhopal - a Tribute

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