इसी साल दो हजार बारह में सिनेमा अपनी स्थापना के सौंवे वर्ष में प्रवेश करेगा। हम ऐसे वक्त में हमारे लिए सिनेमा के एक्सीलेंस को जानने-समझने के लिए पुनरावलोकन के अनेक अवसर उपलब्ध रहेंगे। हालाँकि जहाँ एक तरफ अवसर उपलब्ध रहेंगे वहीं हमारी सुरुचि में सिनेमा के इतिहास को जानने की कितनी जिज्ञासा या जगह रहेगी यह कह पाना जरा कठिन है।
बावजूद इसके कि हर जगह डीवीडी और सीडी अनेक सुलभ-दुर्लभ फिल्मों की उपलब्ध हो जाया करती है। कुछ रसिक और रुझानी लोगों ने जखीरा खरीदकर अपने लिए इकट्ठा किया है और देख-देख कर आनंदित होते और अपना ज्ञान समृद्ध करते हैं वहीं बड़ी संख्या चालू और उपलब्ध मनोरंजन में ही खोयी हुई है। उसने अपनी सीमाएँ बांध रखी हैं या तय कर रखी हैं। लेकिन सिनेमा के यशस्वी समय और उत्कृष्ट प्रतिमानों को जरा ठहरकर धीरज के साथ थोड़ा-थोड़ा ही सही वक्त निकालकर देखा जाये तो हम अपने आपको सौ साल में रचे रचनात्मक प्रतिमानों के ऐसे हिन्द महासागर में अपने आपको पायेंगे जहाँ डूबकर अप्रतिम अनूठा सुख हासिल हो सकता है।
यहाँ किसी एक दो चार या दस नामों का जिक्र करना या दस-पच्चीस फिल्मों के उदाहरण दे देने से बात पूरी नहीं हो जाती बल्कि हमारे सामने इतना और ऐसा असमंजस है कि कितनी सारी धाराएँ हैं कितना सारा विस्तार है कितने सारे आयाम हैं सबमें जाये बगैर मन नहीं मानेगा बल्कि यदि हम कोई एक सिरा भी तरीके से छू पाये तो बड़ी लम्बी राह तय करनी पड़ेगी। लेकिन जैसा कि पहले कहा इसके सुख अनन्त हैं यदि हम सिनेमा के अर्थात को जरा सी भी संवेदनशीलता के साथ समझें।
पुरोधाओं ने इस माध्यम के महापुरुषों ने असाधारण काम किया है बड़े संघर्ष किए हैं ऐसे छोर पर जाकर ठहर गये हैं जहाँ उन्हें रास्ता खत्म होता लगा है लेकिन फिर वहीं से अपना रास्ता बनाकर बड़े आगे भी गये हैं। सिनेमा की शताब्दी की बेला को नजरअन्दाज नहीं करना चाहिए बल्कि कुछ सोचना शुरू करना चाहिए। दो महीने बाद जब पूरे सौ होंगे तब हमारे लिए आरम्भिक एक का मोल कल्पनातीत हो जायेगा......................
2 टिप्पणियां:
Aapne cinema ke shatabdi varsh per ek achchi shuruaat ki hai. badhai.
शशिप्रभा जी, आपका धन्यवाद।
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