बीसवीं शताब्दी की महान कला सिनेमा को लेकर सभी के मन में हमेशा ही कौतुहल रहा है। हमें पूरी तरह शायद पता न हो मगर यह एक बड़ी सुखद घटना है कि 2013 का साल हमारे देश में सिनेमा की शताब्दी का साल है अर्थात भारत में सिनेमा की उम्र सौवें वर्ष में प्रवेश कर गयी है। 21 अप्रैल 1913 को मुम्बई के ओलम्पिया सिनेमा में भारतीय सिनेमा के जनक दादा साहब फाल्के ने चुनिंदा मेहमानों के लिए बड़े जतन से बनायी अपनी पहली फिल्म राजा हरिश्चन्द्र का प्रदर्शन किया था। यह फिल्म वहाँ तेरह दिन तक चली थी और इतिहास रचा था, इतिहास इस तरह रचा था कि जनता परदे पर जीती-जागती मानवाकृतियाँ देखकर अचम्भित रह गयी थी। यह चमत्कार ही सिनेमा के जन्म की कहानी है। भारत में सिनेमा की शताब्दी की शुरूआत 3 मई से मानी जाती है क्योंकि इसी दिन यह फिल्म कोरोनेशन थिएटर में लगायी गयी जो तेईस दिन तक चली। यह एक रिकॉर्ड था।
सिनेमा की यात्रा बड़ी लम्बी है। अब तक हम सभी इस मान्यता से काफी बाहर आ चुके हैं कि सिनेमा सिर्फ उतने ही लोगों का सृजन है जो परदे पर नजर आते हैं। वाकई सिनेमा सिर्फ एक कहानी और भूमिकाएँ करने वाले हीरो-हीरोइन, खलनायक, चरित्र अभिनेता, एक्स्ट्रा, गीत-संगीत के ही मेलजोल या उन सबको एक परिकल्पना में अवस्थित कर देने का परिणाम नहीं है। वास्तव में सिनेमा एक साथ सैकड़ों हजारों प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष लोगों के अथक सृजनात्मक योगदान का नतीजा है।
यह अत्यन्त सुखद है कि सिनेमा की शताब्दी की बेला में हिन्दी में एक महत्वपूर्ण किताब इन्दौर से प्रकाशित हुई है। बीते कल के सितारे नाम की इस पुस्तक के लेखक हैं, वरिष्ठ सिने-विश्लेषक श्रीराम ताम्रकर। श्रीराम ताम्रकर की प्रतिष्ठा समकालीन फिल्म पत्रकारिता के क्षेत्र में एक ऐसे अलग मगर विलक्षण साधक के रूप में है जिन्होंने ताजिन्दगी सिनेमा पर काम किया, सिनेमा को जिया और कंठस्थ किया। वे अपनी बातचीत में अक्सर एक्सटम्पोर शब्द का प्रयोग करते हैं, वाकई सिनेमा के मामले में जानकारियाँ, उन्हें बताना, उन पर बात करना और समझाना, ऐसा है कि आपके पास सुनने, समझने की सुरुचि और समय है तो उनका सान्निध्य कमाल है। ऐसे श्रीराम ताम्रकर जो पिछले तीन दशकों में महत्वपूर्ण संग्रहणीय सिनेमा विशेषांकों परदे की परियाँ, सरगम का सफल, नायक-महानायक, दूरदर्शन-सिनेमा, फिल्म और फिल्म, भारत में सिनेमा, विश्व सिनेमा के संचयन और सम्पादन से देश भर में जाने गये हैं, जिन्होंने फिल्म पत्रकारिता का पाठ पिछले तीस सालों में तीन युवा पीढिय़ों को पढ़ाया और पारंगत किया, उन्होंने बीते कल के सितारे किताब लिखकर एक अनूठा काम किया है।
बीते कल के सितारे किताब ऐसे वक्त में अत्यन्त मूल्यवान और संग्रहणीय है जब हमारे यहाँ हिन्दी सिनेमा पर हिन्दी में ही अच्छी, शोधपरक-सुरुचिपूर्ण किताबों का प्रकाशन नहीं होता। तीस साल पहले मनमोहन चड्ढा ने हिन्दी सिनेमा का इतिहास नाम की एक बहुमूल्य किताब लिखी थी। हिन्दी सिनेमा का सारा कारोबार, बातचीत-व्यवहार अंग्रेजी में होता है। आज की कलाकार पीढ़ी को हिन्दी में बात करना सबसे ज्यादा तकलीफदेह लगता है, ऐसे भाषायी संक्रमण में बीते कल के सितारे का प्रकाशन एक सुखद रचनात्मक घटना है। दो सौ बीस पृष्ठों की इस किताब में एक सौ तेईस कलाकारों का उनके योगदान के साथ इस तरह स्मरण किया गया है कि कोई भी पाठक इसे पढ़ते हुए हिन्दी सिनेमा को शताब्दी के यश तक पहुँचाने में अपना अनमोल अवदान करने वाले कलाकारों को जान सकें। इस किताब की खासियत यह है कि इसमें नायक-नायिका, चरित्र अभिनेता, हास्य कलाकार, सशक्त पाश्र्व उपस्थिति वाले कलाकारों पर एक तरह से बड़े ही सुरुचिपूर्ण पाठ लिखे गये हैं। श्रीराम ताम्रकर का लेखन सुबोध और सम्प्रेषणीय है। एक साथ इतने सारे कलाकारों के बारे में जान पाना अपने आपमें रोमांचक अनुभव की तरह है और वह तब होता है जब हम इस किताब को पढ़ते हुए समापन तक जाते हैं।
बीते कल के सितारे में प्रमुख रूप से अशोक कुमार, अजीत, बलराज साहनी, बाबूराव पेंटर, बेगम पारा, भगवान दादा, भालजी पेंढारकर, भारत भूषण, दादा साहब फाल्के, दुर्गा खोटे, देविका रानी, डेविड, गजानन जागीरदार, गोप, गौहर मामाजी वाला, हिमांशु राय, हरिकृष्ण प्रेमी, जद्दन बाई, जुबैदा, जानकी दास, जोहरा सहगल, कन्हैयालाल, कामिनी कौशल, कानन देवी, किदार शर्मा, कुक्कू, कुन्दनलाल सहगल, के. एन. सिंह, ख्वाजा अहमद अब्बास, ललिता पवार, मधुबाला, मास्टर निसार, मीना कपूर, मुबारक बेगम, मुमताज अली, निम्मी, मेहबूब खान, मोतीलाल, नरगिस, नलिनी जयवन्त, नाडिया, नितिन बोस, नूरजहाँ, ओमप्रकाश, पन्नालाल घोष, प्रदीप, प्रमथेश चन्द्र बरुआ, पृथ्वीराज कपूर, सितारा देवी, सुरैया, सुुचित्रा सेन, सुरेन्द्र, सोहराब मोदी, श्याम, शशिकला, शशधर मुखर्जी, शाहू मोडक, शान्ता आप्टे, शोभना समर्थ, शेख मुख्तार, त्रिलोक कपूर, उदय शंकर, वनमाला, विजय भट्ट, विष्णुपंत पगनीस, याकूब इत्यादि कलाकार शामिल हैं। यह उल्लेखनीय है कि इनमें से सर्वाधिक कलाकार अब इस दुनिया में नहीं हैं मगर जो कुछ कलाकार जैसे निम्मी, जोहरा सहगल, सितारा देवी, सुचित्रा सेन, शशिकला आदि जो शताब्दी की इस बेला में हमारे बीच हैं, गौरवशाली उपस्थिति की तरह हैं।
बीते कल के सितारे पुस्तक के लिए लेखक ने दुर्लभ फोटो भी जुटाये हैं जो उनके बरसों के संग्रह का नतीजा है। श्रीराम ताम्रकर ने इस किताब को अपने व्यक्तित्व के अनुरूप ही विनम्रता के साथ प्रस्तुत किया है। हमारे यहाँ प्रकाशनों के वितरण का तंत्र उतना सुगम नहीं है जितनी अपेक्षा की जाती है। यह किताब अपनी रफ्तार से किताबों की दुकान तक पहुँचेगी। लेखक की आकाँक्षा यही रहती है कि ऐसे महत्वपूर्ण काम को देश तक पहुँचाया जाये। पाँच सौ रुपए मूल्य की इस पुस्तक को प्राप्त करके पढऩे के उत्सुक जिज्ञासु पाठक श्रीराम ताम्रकर से सम्पर्क कर सकते हैं। उनका पता - 2 संवाद नगर, इन्दौर - 1 है। किताब के बारे में उनसे प्रतिदिन सुबह 8 से 10 एवं शाम 4 से 6 बजे के बीच उनके फोन नम्बर 0731-2401744 पर बात भी की जा सकती है।
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