हिन्दी सिनेमा में बाजार के खतरे जितने ज्यादा बढ़ गये हैं उतना ही ज्यादा असुरक्षित हो गये हैं हमारे फिल्मकार। जितनी बड़ी पूँजी फिल्म बनाने में लगती है, उतना हासिल कर पाना अब आसान नहीं रहा। निर्माण घराने सिमट गये हैं। एक फिल्म बनाने के लिए एक साथ कई संसाधनों पर अवलम्बित रहना पड़ता है। इसके बावजूद नीरस विषय, खराब पटकथा, थके हुए कलाकार और फिल्मकार मिलकर जिस तरह की फिल्में बनाते हैं उनका विफल होना लाजमी है। इन्हीं सारे यथार्थों के बीच प्रियदर्शन की फिल्म तेज देखने का अपना अनुभव रहा है। प्रियदर्शन चूँकि एक महत्वपूर्ण निर्देशक हैं और उनके काम को लेकर अन्ततः यह उम्मीद बची रहती है कि पूरी तरह कूड़ा काम नहीं करेंगे, सो तेज देखने का भी मन हो गया, हालाँकि पिछले एक दशक में हेराफेरी से लेकर बिल्लू और राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म कांचीवरम बनाने वाले प्रियदर्शन ने एक साल से ज्यादा समय पूरी तरह इस फिल्म के लिए लगाया।
तेज को बनाने में भी कई लोगों का हाथ लगा है, भरत शाह, इरोज इन्टरनेशनल, वीनस-यूनाइटेड सेवन जैसे प्रत्यक्ष और अनेक अप्रत्यक्ष लोग। इरोज को छोड़ दें तो अन्य निर्माण घरानों से सफलता रूठी हुई है और कुछ साल से चलन से बाहर भी हैं वे लिहाजा चालीस करोड़ की तेज सबने मिलकर बनायी मगर यह फिल्म आशाओं पर खरी नहीं उतरती। यह फिल्म लन्दन में बनी है। एक युवा लन्दन में अपनी पसन्द की लड़की से शादी करके वहाँ व्यावसाय करके बस जाना चाहता है। नागरिकता का सवाल आता है। कानूनी प्रक्रियाएँ पूरी नहीं की गयी हैं लिहाजा उसे भारत जाने का हुक्म होता है। प्रतिशोध और आर्थिक सुरक्षा की मनःस्थितियों में वह एक अपराध रचता है जिसमें उसका एक मित्र और एक युवती शामिल होते हैं। षडयंत्र रचकर ट्रेन में बम लगा दिया जाता है, जिसके तार नहीं जोड़े गये हैं यह खुलासा बाद में होता है।
पूरी फिल्म इसी बदहवासी में रची गयी है। रह-रहकर परदे पर एक सौ दस मील प्रति घण्टे की रफ्तार से ट्रेन चली जा रही है, गति धीमी की गयी तो बम फट जायेगा। रेल महकमा, पुलिस, अपराधी सब एक-दूसरे में गुंथे हुए हैं। भारतीयों को शक की निगाह से देखने का एंगल भी इस फिल्म में मौजूद है क्योंकि पुलिस अधिकारी अनिल कपूर पर लन्दन मूल की पुलिस का एक अधिकारी अविश्वास करता है। अजय देवगन अपराध की ओर प्रवृत्त युवा जिसके साथी जायद खान और समीरा रेड्डी हैं जो एक बड़ी फिरौती यूके सरकार से हासिल करना चाहते हैं। फिल्म में एक-एक करके तीनों अपराधी मारे जाते हैं लेकिन अन्त में दर्शक को तार्किकता के आधार पर यह फिल्म कुछ दे नहीं पाती। कंगना राणावत चार दृश्यों की हीरोइन हैं लेकिन समीरा रेड्डी ने बीस मिनट के पुलिस को छकाने वाले दृश्य में कमाल कर दिया है।
प्रियदर्शन ने वाकई फिल्म की गति तेज रखी है। कुछ समीक्षकों ने इस फिल्म को स्पीड और द बर्निंग ट्रेन से प्रेरित बल्कि कमजोर नकल माना है। यह फिल्म अपने एक्शन दृश्यों और भव्य सिनेमेटोग्राफी के कारण बांधे रखती है। जहाँ तक प्रभाव की बात है, इसे तीन सितारों वाली फिल्म की श्रेणी में रखा जा सकता है क्योंकि तकनीकी पक्ष बहुत प्रबल हैं। अनिल कपूर को बड़े समय बाद एक अच्छी भूमिका मिली है लेकिन अजय देवगन अपने किरदार के प्रति अन्त तक आश्वस्त नहीं दिखे। जायद की भूमिका छोटी है मगर वह दृश्य महत्वपूर्ण है जिसमें अनिल कपूर उनका पीछा करते हैं। गीत-संगीत सामान्य हैं। विशेष रूप से इस फिल्म में प्रियदर्शन ने अपने बचपन के मित्र और मलयाली सिनेमा के महान अभिनेता मोहनलाल को जाया किया है। उनको इतने सामान्य किरदार में शामिल नहीं किया जाना था। एक जीनियस निर्देशक को अपने जीनियस कलाकार मित्र के साथ ऐसी मैत्री नहीं निभानी चाहिए थी.......................
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