बालू शर्मा यह उनका प्रचलित नाम है, वैसे वे बालकृष्ण शर्मा हैं। चिर-परिचित शिल्पकार हैं। आदमकद शिल्प सर्जना में उनका काम इधर लगभग अपनी मौलिकताओं के साथ उनके ही पास है। दूसरे उदाहरण एकदम से ध्यान में नहीं आते। कुछ वर्षों का उनसे परिचय प्रगाढ़ आत्मीयता में तब्दील हो गया है। वे उज्जैन में रहते हैं, महाकाल की नगरी। वहीं से उनकी रचनात्मकता विस्तार दूर देश तक हुआ है। मालवा अंचल का यह प्रमुख शहर अपनी विलक्षण विरासत के कारण दुनिया में जाना जाता है।
सृजनात्मकता साहित्य से लेकर अभिव्यक्ति के व्यापक आयामों का स्पर्श यहाँ देशज खूबियों के साथ करती है। पेंटिंग और शिल्पकला में यहाँ एक लम्बी परम्परा है जो वाकणकर से श्रद्धेय होती है। उसका विस्तार बड़ा है। आंचलिकता और उसके सारे रंग यहाँ सर्जना में दिखायी देते हैं। बालू शर्मा के पास अपनी अनूठी कल्पनाशीलता और रंग-समझ है। उनकी दृष्टि जीवन, रहन-सहन, हमारी उत्सवप्रियता, मांगलिक सरोकार और उसमें सदियों जीने और डूबे रहने वाली उत्कण्ठा तक जाती है। उनके शिल्पों को ध्यान से देखो, अकेले खड़े हुए या एक साथ समूह में, अलग-अलग अनुभूतियाँ छोड़ते हैं। हम उनमें मनुष्यों को ठहरे हुए देखते हैं, जो शायद उतनी देर हमारे लिए ही ठहरे हुए होते हैं। बाद में अकेले में वे जरूर कोलाहल करते होंगे, आपस में बातचीत या हँसी-खुशी बाँटते होंगे। हो सकता है दुख भी बाँटते हों लेकिन यह सब उनकी दुनिया का हिस्सा है।
बालू शर्मा के ये शिल्प देखकर इससे भी ज्यादा विचार आते हैं। प्राय: शिल्पों का आकार हमारे कद के बराबर ही है लेकिन उनको गहनता से देखो और उनमें एक-एक मनुष्य, पुरुष या स्त्री की कल्पना करो तो उनके कद का अनुमान लगाना कठिन होता है। कलाकार ने इनको बनाते हुए पता नहीं यह सब सोचा होगा कि नहीं लेकिन इतना तो है कि बालू शर्मा अपने बचपन, मेले, तीज-त्यौहार और जीवन के साथ-साथ सामने से होकर गुजर गये मगर खुद में गहरे ठहर गये लोगों को भी अपनी सर्जना का आधार बनाया है। वे किरदारों को गढ़ते हैं, यह कहा जाये तो शायद अतिश्योक्ति न हो। उनके कलाकर्म को हम दो अलग-अलग रंगतों में देखते हैं, एक स्याह सलेटी रंग और दूसरा रंग-बिरंगे परिधान, गहने, श्रृंगार प्रसाधन, पगड़ी, धोती से भरे-पूरे लोग। बहुत सारे शिल्प उन्होंने बनाये हैं, नवाचार के साथ बनाया करते हैं।
उनके शिल्प विभिन्न कला संग्रहालयों में संग्रहीत हैं जिनमें भारत भवन, कालिदास अकादमी, ललित कला अकादमी इत्यादि शामिल हैं। बालू शर्मा अपने इस विशिष्ट काम के लिए नेशनल अवार्ड भी प्राप्त कर चुके हैं। वे लेकिन अपनी इन उपलब्धियों से बेफिक्र लगते हैं, खुद कभी बताते-गिनाते भी नहीं। एक कलाकार जो अपने आप में इतना शान्त और गम्भीर है वो दरअसल कितने मुखर और हमें कम से कम अपरिचित दिखायी देने वाले शिल्पों और चेहरों में कितनी कथाएँ समावेशित कर दिया करता है, यह विस्मय का विषय है। हालाँकि बालू इन सारी धारणाओं और मनन-चिन्तन से परे हमेशा जमीन पर बने रहते हैं जो कि उनकी खूबी है।
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