गुरुवार, 3 जनवरी 2013

रतन थियम : आन्दोलित परिवेश का उद्वेलित रंग-सर्जक


भारतीय रंगमंच वर्तमान में अपनी श्रेष्ठता के चरमोत्कर्ष की खोज कर रहा है। हमारे सामने ऐसा परिदृश्य उपस्थित है जहाँ शीर्ष स्तर पर एक किस्म की बेचैनी है और अपनी साधना भूमि के पुनरावलोकन की छटपटाहट भी। साठ के आसपास और उसके उत्तरार्ध की उम्र अपनी निधियों को देख रही है। कड़ी स्पर्धा और लगातार उत्कृष्टता का प्रश्न जीवन के साथ लगा रहा है। बहुत सारा शोध, सावधानियाँ और श्रेष्ठों के बीच श्रेष्ठता प्रमाणित करने के रोमांच से एक धारा निकलकर आयी है, पीछे दो दशक के अन्तर से दृश्य कुछ दूसरा है। बहुत सारा काम दिखायी दे रहा है मगर मापदण्ड और परख दोनों ही स्तरों पर बहुत सारी असहमतियाँ हैं। देखने का धीरज और संयम बिना देखे आकलन का पारंगतेय हो गया है। ऐसा लगता है कि वर्क आॅफ एक्सीलेंस समय-समय पर अपनी निगाहों के सामने होते रहना इस समय को बेहतर करने के लिए आवश्यक है, धीरज और संयम की फिर स्थापना भी जरूरी है।

ऐसे ही परिपे्रक्ष्य में भोपाल में 5 जनवरी से नये साल के पहले सप्ताह संस्कृति विभाग विख्यात रंगकर्मी रतन थियम की रंगदृष्टि का पुर्नआकलन करने जा रहा है। रतन थियम देश के शीर्ष रंग निर्देशक हैं जो अपने स्वप्न और सर्जना का रंगमंच पिछले चार दशकों में रचते आ रहे हैं। वे आन्दोलित परिवेश के उद्वेलित व्यक्तित्व हैं जो निरन्तर उस अशान्त समय का रचनात्मक प्रतिवाद करते आ रहे हैं जो उनके सिरहाने उनको लगातार विचलित करता रहा है। मणिपुर में रतन थियम को अपनी जमीन और उसकी नब्ज का पता है, वे वहाँ बिताये अपने पूरे जीवन के एक तरह से सम्वेदनशील साक्ष्य की तरह हैं जो अपने आसपास से अत्यन्त विचलित रहते हुए, तमाम खतरों में रहते हुए भी रंगकर्म की लौ को बचाये हुए हैं।


रतन थियम नाटकों की समीक्षा करते हुए नाटक करने लगे थे। उनके पिता मणिपुरी नृत्य शैली के प्रतिबद्ध कलाकार थे। रतन थियम पेंटिंग करते थे, लघु कहानियाँ, कविताएँ और नाटक भी उन्हांेने लिखे। नाट्य समीक्षक होते हुए ही उन्हांेने इस बात को महसूस किया कि पूर्णकालिक रंग-शिक्षा की उनको जरूरत है। यही जरूरत उनको राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय पढ़ने के लिए ले गयी। सत्तर के दशक के आरम्भ में वे दिल्ली आये और पाँच-छः वर्षों में ही उन्होंने अपनी क्षमताओं की एक बड़ी लकीर खींची। रतन थियम की यहाँ तारीफ यह कि वे यह समय व्यतीत करके फिर अपनी जमीन, मणिपुर लौट गये और अपनी खुद की थिएटर रेपर्टरी कोरस की स्थापना की। रतन थियम अपनी जरूरत के लिए दो एकड़ की पर्याप्त जमीन का इन्तजाम किया और कलाकारों के साथ यहीं अपनी दुनिया खड़ी की। एक थिएटर, तीन सौ लोगों के नाटक देखने के लिए और कलाकारों के लिए उगाने-बनाने-खाने और रहने का बन्दोबस्त। इस ढंग की परिकल्पना शायद सबसे पहले उन्होंने ही की।

रतन थियम जहाँ से अपनी सक्रियता के लिए पहचाने जाते हैं वो मणिपुर, भूटान, बंगलादेश और म्यांमार से घिरा पहाड़ी क्षेत्र है। यह विश्व के सबसे अलग-थलग अनजाने क्षेत्रों में से एक है। यह शताब्दियों से नृत्य, कला, संगीत और युद्धकलाओं के लिए जाना जाता है। इस परिवेश ने अनेक वर्षों तक अशान्ति के माहौल को देखा है। रतन थियम इस माहौल में एक उत्तरदायी नागरिक की भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं। उनके भीतर-बाहर निरन्तर एक द्वन्द्व चल रहा है जो अपने आसपास अस्तित्व, जीवन और पीढि़यों की दिशाहीनता के जोखिम से बाबस्ता है मगर बहुत सारे अनुत्तरित प्रश्नों के साथ वे हमारे सामने सार्थक रूप में उपस्थित हैं। एक जगह पर रतन थियम कहते हैं कि विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में तेज गति से विकास करने के बावजूद हम उसी तेजी से पीछे जा रहे हैं। परिणाम यह है कि हमारा आध्यात्मिक और मानसिक सन्तुलन खोता जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र तथा मानव अधिकारों के लिए लड़ने वाली संस्थाओं की उपस्थिति के बावजूद हिंसा और युद्ध निरन्तर बढ़ रहे हैं। मानव के भीतर बुरे गुण, शान्ति और धैर्य जैसे अच्छे गुणों को पराजित करने में सफल हो रहे हैं। 


रतन थियम के नाटकों में भाषा कथ्य के बाहर जाती हुई प्रतीत होती है। उन्होंने मणिपुरी रंगजगत में अपनी एक तरह से अविकल्प रंग-उपस्थिति दर्शायी है। शब्द उनकी कर्णज शक्ति के लिए उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितने वे अपने वास्तविक अर्थ के लिए। रतन थियम कहते हैं कि मैंने हमेशा मानवीय शक्ति को ही ज्यादा विश्वसनीय माना है, खासकर जब उसका शारीरिक चित्रण किया जा सके और देह में लय हो। वे इस बात पर भी जोर देते हैं कि तकनीकी और शारीरिक नियंत्रण पर ध्यान होने के कारण पात्रों को अपनी शारीरिक शक्ति को खींचकर आगे ले जाने की क्षमता होनी चाहिए। रतन थियम के नाटकों के कलाकारों का मार्शल आर्ट का सघन प्रशिक्षण, एक तरह का गहरा अभ्यास बड़े मायने रखता है। देहगतियों के साथ-साथ शारीरिक सौष्ठव-कौशल और वार करने-वार बचाने का शौर्य और चातुर्य पूरी तरह जाग्रत मस्तिष्क का परिचय देता है। रतन थियम प्रस्तुति में प्रकाश का उपयोग विशेष रूप से नाटकीय प्रभाव को समृद्ध करने के लिए करते हैं। रंगों के प्रति भी उनका विशेष आग्रह हुआ करता है। वे कहते हैं कि मेरे काम में रक्त जैसा लाल रंग सबसे महत्वपूर्ण है। वे कहते हैं कि मैं अपने नाटकों में स्थायी पृष्ठभूमि का उपयोग नहीं करता हूँ। प्रत्येक दृश्य के लिए भिन्न पृष्ठभूमि होती है जो दृश्य को भव्य बनाती है।

रतन थियम के रंग अवदान पर केन्द्रित यह समारोह रंग सोपान उन अर्थों में महत्वपूर्ण है जिसमें सबसे पहला तो यह कि लगभग दस दिन रतन थियम भोपाल में रहेंगे, अपने छः नाटकों के मंचन के साथ जिसमें उरुभंगम, किंग आॅफ द डार्क चेम्बर, अंधा युग, व्हेन वी डेड अवेकन, नाइन हिल्स वन वैली और उत्तर प्रियदर्शी शामिल हैं, दूसरा बीच में एक दिन उन पर निर्मित एक फिल्म का प्रदर्शन होगा और उनके लम्बे सृजन-सक्रिय रंग-अवदान पर बातचीत की जायेगी। एक बड़ी प्रदर्शनी उनके काम पर तथा कुछ महत्वपूर्ण प्रकाशन भी रतन थियम पर किये जा रहे हैं जिनमें उनसे लम्बी बातचीत, उनकी दुर्लभ और अब तक सम्भवतः प्रकाशित-प्रसारित नहीं हुई कविताओं के चयन भी शामिल हैं।



8 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

अद्वितीय और अद्भुत शख्सियत से परिचय करवाने के लिए बहुत-बहुत आभार

सुनील मिश्र ने कहा…

vasudha jee, aapne yahan aakar padha, bahut achchha lagaa. prashansa ke liye bahut abharee hoon.

RUCHI... ने कहा…

thanks sir......

सुनील मिश्र ने कहा…

ruchi, aapka dhanyvad.

Punj Prakash ने कहा…

ज्ञानवर्धक लेख के लिए आभार.

Punj Prakash ने कहा…

ज्ञानवर्धक लेख के लिए आभार.

सुनील मिश्र ने कहा…

पुंज प्रकाश जी, आपको लेख अच्छा लगा, मुझे भी आपको धन्यवाद कहना है। इस ब्लॉग में आते रहिएगा।

Samata kumar ने कहा…

अच्छा लगा पढ़कर