सोमवार, 7 जुलाई 2014

टा टा का सुख

बच्चों के लिए घर से जाते हुए माता-पिता को खुशी-खुशी टा टा करना एक बड़ा ही सुखदायी काम होता है जो दोनों ओर बड़ा आनंद प्रदान करता है। प्राय: तो यह होता है कि छोटे बच्चों को घर छोड़कर माता-पिता के लिए घर से बाहर जाना ही आसान नहीं होता, उनका पीछे लगना, दौड़ना, जिद करना और रोना बड़े प्रासंगिक मसले हैं और हर बच्चे, माता-पिता के पास ऐसे दिलचस्प किस्से-कहानी होंगे।

अपन भी किया करते रहे हैं। हमारा स्कूल 12 बजे का होता था। पापा दफ्तर दस-सवा दस बजे के बीच निकला करते थे। दरवाजे के बाहर सीढ़ी उतरते ही और आगे फाटक से आगे जाते ही अपन टा टा किया करते थे। उसका उत्तर भी पापा देते। फिर वो आगे बढ़ जाते तो अपन फाटक के बाहर खड़े हो जाते, पीछे से आवाज लगाते, पापा टा टा, पापा मुड़कर हाथ हिलाकर उत्तर देते। बड़े आगे सड़क तक मुड़ते हुए वे दो-तीन बार मुड़कर देखते, मुझे खड़ा पाते, टा टा का आदान-प्रदान होता, सड़क से सीधे हाथ मुड़ जाने के बाद अपन अन्दर भाग आते........

शाम को उनके लौटने की बेसब्र प्रतीक्षा होती। फाटक के बाहर पुलिया पर बैठा रहता और दूर मोड़ से उनका आना निहारता रहता। वे आते दीख जाते तो आँखों में चमक आ जाती। जब वे बिजली घर के बराबर तक आ जाते तब मैं घर के अन्दर काम करती हुई मम्मी की नजर बचाकर पापा की तरफ दौड़कर जाता। पास पहुँचकर हाथ पकड़ लेता और साथ-साथ वापस आते।

कई बार वे न्यूमार्केट से सब्जी लेते हुए आते थे। उनकी जेब में हमेशा रूमाल हुआ करता था। उसी रूमाल में वे सब्जी ले आते। रूमाल के चारों कोनों को वे तिर्यक तरीके से बांधकर उसमें कई सब्जियाँ ले आते, आलू, भिण्डी, टमाटर, मिर्च, नीबू आदि। घर में रूमाल की गाँठों को खोलकर सब्जी डलिया में निकाली जाती। मुझे सजा-जमाकर रखने में मजा आता..............उसके बाद रूमाल को धुलवाना और अगले दिन सुबह सुखाकर उनको सौंपना एक जिम्मेदारी का काम हुआ करता था, शायद मैं नहीं किया करता था, वो काम मम्मी का रहा, हमेशा............

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