जोहरा सहगल का नहीं रहना, अकल्पनीय और अविश्वसनीय इसलिए लगता है कि वे हमारी पिछली स्मृतियों तक बड़ी सचेत थीं। उनका सचेत होना किसी चमत्कार से कम न था। उनमें एक पूरी की पूरी सदी स्पन्दित होती थी। एक शख्सियत किस तरह आपको सुखद तरीके से हतप्रभ कर देती है, वैसा उनको देखना होता था। उनके बारे में सोचते हुए अस्सी-नब्बे साल पीछे दौड़कर ठहरना होता है, तब के देशकाल की कल्पना करनी होती है, सामाजिक वातावरण और स्थितियों के बारे में कल्पना करनी होती है, परतंत्र भारत में भारतीयता का एक खाका बुनना होता है और फिर उस पूरे सन्दर्भ में जोहरा जी के व्यक्तित्व की कल्पना होती है। दरअसल पूरा का पूरा परिवेश हमारे सामने अनेक तरह के पिछड़ेपन, परिमार्जनहीनता और मूल्यों के धरातल पर डाँवाडोल होते विश्वास का प्रकट होता है।
ऐसे वातावरण में एक शख्सियत पन्द्रह-सत्रह साल की उम्र में किस तरह तमाम विरोधाभासों के बीच एक सांस्कृतिक धरातल की कल्पना करती होगी, एक युवती किस तरह यह निश्चय अपने आपमें करती होगी कि आने वाले समय में इस देश में मनुष्यता और भारतीय अस्मिता में सांस्कृतिक मूल्यों की स्थापना और उससे ऊर्जा, शक्ति तथा सामर्थ्य अर्जित कर के एक बड़ी भूमिका का सूत्रपात किया जाना बेहद जरूरी है।अंग्रेजों की पराधीनता के सालों में अनेक विरोधाभासों, दमन और प्रतिकूलताओं के बावजूद साहित्य, कला और संस्कृति, नाटकों ने जो भूमिका अदा की है, उसका समय-समय पर प्रबुद्धजनों ने श्रेष्ठ आकलन किया है। वास्तव में सुप्त मन:स्थिति और सोयी चेतना को अभिव्यक्तियों ने ही जाग्रत करने का काम किया। जोहरा जी की सक्रियता और उपस्थिति की जरा उस धरातल पर कल्पना कीजिए।
जोहरा जी तो भारतीय स्वतंत्रता के साल में परिपक्व उम्र और सजग चेतना में थीं। उनकी भूमिका को देश के सांस्कृतिक पुनरुत्थान के परिप्रेक्ष्य में सोचकर जरा देखा जाये जब वे अल्मोड़ा में उदयशंकर की अकादमी में भारतीय बैले की अवधारणा के बीज मंत्रों के साथ अनूठे और असाधारण प्रयोग कर रही थीं। सोचा जा सकता है उनका पृथ्वीराज कपूर जैसे यायावर रंगकर्मी और उनके समूह का हिस्सा बनकर देश के कोने-कोने में जाना, तमाम मुसीबतें और परेशानियों में साथ बने रहना और रंगमंच की बुनिया की स्थापना में अपना योगदान करना। जानकारों को उनकी सक्रियता और उनके योगदान के बारे में बहुत कुछ पता होगा। जोहरा जी के कृतित्व और व्यक्तित्व को केवल बीस साल के हाल के सिने-कैरियर से बहुत पीछे जाकर जरा देखें और अपने सारे संवेदनात्मक आग्रहों के साथ विचार करें तो बहुत दूर तक साफ-धुंधला-मिलाजुला नजर आयेगा, जिसे दृष्टि को और साफ करके देखने से इस महान कलाकार, एक विलक्षण प्रतिभा के होने का अर्थ समझ में आयेगा।
....................उनका जाना एक बड़ी सांस्कृतिक विरासत में अब तक उनके रूप में बने रहने वाले सम्बल का हमारे बीच से खत्म होना भी है।
ऐसे वातावरण में एक शख्सियत पन्द्रह-सत्रह साल की उम्र में किस तरह तमाम विरोधाभासों के बीच एक सांस्कृतिक धरातल की कल्पना करती होगी, एक युवती किस तरह यह निश्चय अपने आपमें करती होगी कि आने वाले समय में इस देश में मनुष्यता और भारतीय अस्मिता में सांस्कृतिक मूल्यों की स्थापना और उससे ऊर्जा, शक्ति तथा सामर्थ्य अर्जित कर के एक बड़ी भूमिका का सूत्रपात किया जाना बेहद जरूरी है।अंग्रेजों की पराधीनता के सालों में अनेक विरोधाभासों, दमन और प्रतिकूलताओं के बावजूद साहित्य, कला और संस्कृति, नाटकों ने जो भूमिका अदा की है, उसका समय-समय पर प्रबुद्धजनों ने श्रेष्ठ आकलन किया है। वास्तव में सुप्त मन:स्थिति और सोयी चेतना को अभिव्यक्तियों ने ही जाग्रत करने का काम किया। जोहरा जी की सक्रियता और उपस्थिति की जरा उस धरातल पर कल्पना कीजिए।
जोहरा जी तो भारतीय स्वतंत्रता के साल में परिपक्व उम्र और सजग चेतना में थीं। उनकी भूमिका को देश के सांस्कृतिक पुनरुत्थान के परिप्रेक्ष्य में सोचकर जरा देखा जाये जब वे अल्मोड़ा में उदयशंकर की अकादमी में भारतीय बैले की अवधारणा के बीज मंत्रों के साथ अनूठे और असाधारण प्रयोग कर रही थीं। सोचा जा सकता है उनका पृथ्वीराज कपूर जैसे यायावर रंगकर्मी और उनके समूह का हिस्सा बनकर देश के कोने-कोने में जाना, तमाम मुसीबतें और परेशानियों में साथ बने रहना और रंगमंच की बुनिया की स्थापना में अपना योगदान करना। जानकारों को उनकी सक्रियता और उनके योगदान के बारे में बहुत कुछ पता होगा। जोहरा जी के कृतित्व और व्यक्तित्व को केवल बीस साल के हाल के सिने-कैरियर से बहुत पीछे जाकर जरा देखें और अपने सारे संवेदनात्मक आग्रहों के साथ विचार करें तो बहुत दूर तक साफ-धुंधला-मिलाजुला नजर आयेगा, जिसे दृष्टि को और साफ करके देखने से इस महान कलाकार, एक विलक्षण प्रतिभा के होने का अर्थ समझ में आयेगा।
....................उनका जाना एक बड़ी सांस्कृतिक विरासत में अब तक उनके रूप में बने रहने वाले सम्बल का हमारे बीच से खत्म होना भी है।
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