धर्मेन्द्र बीते 8 दिसम्बर को अस्सीवें वर्ष में प्रवेश कर गये हैं। साल दर साल बढ़ती उम्र का एहसास रोमांचक है, तब जब वर्षों से हर जन्मदिन पर उनके साथ होने का सान्निध्य रहा हो। इस साल का जन्मदिन सक्रियता और व्यस्तताभरा है क्योंकि वे शूटिंग कर रहे हैं। शूटिंग में ही उनका यह विशेष जन्मदिन मनाया जायेगा। अपने हर जन्मदिन पर वे अपने चाहने वालों से दिन भर मिलते हैं। सबसे पुराने रिश्ते निबाहने वाले इस खूबसूरत और विनम्र इन्सान को बधाई देने दिन भर साथ के कलाकार आते हैं, वे कलाकार भी आते हैं जो बेटों के मित्र हैं, वे भी जिनके साथ काम किया है, निर्देशक आदि सभी। इसके अलावा वे थोड़ी-थोड़ी देर में बड़ी चिन्ता और जिम्मेदारी से मुख्य दरवाजे के बाहर भी चले जाया करते हैं जहाँ भीड़ भर चाहने वाले उनसे मिलने की ललक लिए खड़े रहते हैं। वे सभी से मिलते हैं। बाहर गये तो फिर मुरीदों के होकर रह जाते हैं। सबके मन की इच्छा पूरी करते हैं। मन की इच्छा फोटो खिंचवाना, दूरदराज से साथ लेकर आये तोहफों को प्रेमपूर्वक स्वीकार करना। धर्मेन्द्र किसी को निराश नहीं करते। मिलने वाले सुखद स्मृतियाँ लेकर जाते हैं। सुरक्षा गार्डों को वे कह देते हैं किसी पर जोर-जबरदस्ती बिल्कुल नहीं करना है। कोई कहता है कि धर्मेन्द्र का सीना बहुत बड़ा है, कोई फीता नहीं ऐसा जो नाप सके।
बात वाकई सही है। एक बात बड़ी स्वाभाविक और एक सी ही देखी है। धर्मेन्द्र की इण्डस्ट्री में सभी तारीफ करते हैं। इसकी वजह यह है कि वे सबको प्रोत्साहित करने वाले कलाकार हैं। उन्होंने अपने बेटों के साथ काम करने वाली पीढ़ी की भी पीठ थपथपायी और उनके साथ काम किया। सेट पर शूटिंग के वक्त उनका काम के प्रति समर्पण अलग सा है। वे पूरी तरह निर्देशक के मित्र हो जाते हैं। सहायक निर्देशक जो दृश्य के बारे में बतलाने आते हैं उनके साथ भी उनका व्यवहार बड़ा आत्मीय होता है। सेट पर उनके होने को अनुशासन की तरह भी लिया जाता है। धर्मेन्द्र मिल रहे आदर को अपनी पूँजी मानते हैं वे कहते हैं कि ये सब बच्चे लोग इतनी इज्जत देते हैं, इतना प्यार करते हैं, मुझे लगता है कि पचास साल से ज्यादा समय जो इस संसार को दिया है वह व्यर्थ नहीं गया है।
धर्मेन्द्र को अपने सब निर्देशक याद आते हैं। वे उस स्वर्णिम काल को याद करते हैं जब बड़ी ही स्वस्थ स्पर्धा के साथ अच्छी-अच्छी फिल्में बना करती थीं। एक साथ पाँच-छः निर्देशक अपनी-अपनी फिल्मों के साथ सक्रिय रहा करते थे। एक साथ अनेक नायक अपनी-अपनी फिल्मों में काम करते हुए अपना श्रेष्ठतम देने का प्रयास करते करते थे। फिल्में चलती थीं, एक-दूसरे की सराहना होती थी। परिवारों की तरह मिलना-जुलना हुआ करता था। अवार्डों-समारोहों की आब देखते ही बनती थी। अवार्ड मिलना-नहीं मिलना एक बात होती थी लेकिन काम किसने अच्छा किया, इस बात को लेकर श्रेय देने से पीछे कोई हटता नहीं था। धर्मेन्द्र कहते हैं कि मेरा सौभाग्य रहा कि बहुत गुणी डायरेक्टरों के साथ काम किया, बिमल राय, हृषिकेश मुखर्जी, रामानंद सागर, असित सेन, रघुनाथ झालानी, मोहन कुमार, जे. ओमप्रकाश, बी. आर. चोपड़ा, यश चोपड़ा, ओ. पी. रल्हन, रमेश सिप्पी आदि कितने ही अलग दृष्टि और सिद्धान्तों के फिल्मकार जिन्होंने अपनी फिल्में मनोयोग से बनायीं, उनकी पटकथा पर गम्भीरता से काम किया, गीत-संगीत को देखा और यहाँ तक कि सहायक कलाकारों, एक्स्ट्रा तक को साथ लेकर चले।
परदे पर धर्मेन्द्र के होने का मतलब दर्शक जानते हैं। उनकी फिल्मों के नाम सभी को याद हैं। सबने वे फिल्में कई-कई बार देखी हैं। दर्शकों ने ही उन्हें मर्द, इण्डियन जेम्सबाॅण्ड, सदाबहार, ही-मैन आदि विशेषणों से स्थापित किए रखा है। दर्शकों ने उन्हें हर दौर में पसन्द किया है। ऐसा अनेक बार हुआ होगा जब एक वक्त में किसी नायक-महानायक विशेष का वर्चस्व रहा होगा लेकिन अचानक से उसी बीच धर्मेन्द्र की कोई फिल्म ऐसी आ गयी कि सबका ध्यान उस फिल्म की ओर मुड़ गया और फिल्म सुपरहिट हो गयी। ऐसे दौरों को धर्मेन्द्र ने खूब आजमाया और उस वक्त की लोकप्रियता का सुख उठाया है। धर्मेन्द्र अपनी फिल्मों में किस्म-किस्म के किरदार करते रहे हैं। उन्हें खलनायक डाकुओं से लड़ने वाले बहादुर युवा के रूप में भी पसन्द किया गया है और जब वे खुद डाकू बनकर आये तब भी सराहा गया। वे पुलिस इन्स्पेक्टर भी खूब जमे और पाॅकेटमार के रूप में भी। दर्शकों धर्मेन्द्र को चोर के रूप में देखकर खुशी से फूला नहीं समाते थे, ऐसा चोर जो पुलिस की आँखों में धूल झोंककर बड़ी से बड़ी चोरी कर लेता है, कीमती से कीमती हीरा चुरा लेता है। वे छुपे रुस्तम की तरह पुलिस अधिकारी, सी बी आई और सी आई डी अधिकारी बनकर भी बहुत प्रभावित करते रहे हैं।
धर्मेन्द्र जैसा नायक देश के दुश्मनों से लड़ता है तो उनके प्रति मुग्ध हुआ दर्शक धीरज छोड़ देता है। किसी जमाने में खलनायक शेट्टी से धर्मेन्द्र का फाइट सीन प्रायः हर फिल्म में रहा है। ऐसी अनेक फिल्में आयीं हैं जिनमें धर्मेन्द्र की सीधे शेर से लड़ाई के रोमांचक दृश्य फिल्माये गये हैं। खूँखार, कद्दावर विलेन से धर्मेन्द्र सीधे जा भिड़े हैं, क्षमताओं में पत्थर सा वज्र लिए यह हीरो रोमांटिक दृश्यों में कितना शर्मीला हो जाता है। कई बार वो नायिका से अपने दिल की बात नहीं कह पाता। कई बार दिल की बात इस तरह कहता है कि मैं जट यमला पगला दीवाना गाते हुए बेसुध जमीन पर लोट लगा देता है। भावुक और संवेदनशील दृश्यों में धर्मेन्द्र की आँखों में बिना ग्लिसरीन के आँसू आ जाते हैं। ऐसे दृश्यों में जब वे बिछुड़ कर मिली माँ, पिता, बहन या भाई से मिल रहे होते हैं, परदे पर गंगा-जमुना बह चलती है। धर्मेन्द्र हमारे समय के ऐसे नायक हैं जिनके व्यक्तित्व से उन्हीं की फिल्म का एक नाम फूल और पत्थर बड़ा मिलता सा लगता है। उनकी उदारता के अनेक किस्से हैं, वे ऐसे इन्सान हैं जो अपने घर चोरी की नीयत से कूदे चोर को भी खाना खिलाकर और कुछ नकद देकर यह नसीहत देकर विदा करते हैं कि आइन्दा चोरी मत करना.................।
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