तय नहीं कर पाया कि इसे गुलाब का गाँव कहूँ या विश्व। गुलाब है इसलिए गाँव कहने में सहज महसूस नहीं किया। गुलाब का विश्व ठीक है। ऐसा ही एहसास करने की भी कोशिश की जब सतह से तेज भागती ठण्डी हवा ने मुट्ठी भर महक भी उस सड़क पर उड़ेल दी, जहाँ से होकर जा रहा था। दायीं ओर निगाह गयी तो सड़क किनारे गाड़ियों को कतार में खड़ा पाया। बड़ा सा बगीचा था जिसमें सफेद कनातों से घिरा वह विश्व था, जिसे गुलाबों का विश्व कहा जा सकता है। महक का रास्ता वहीं से होकर आया था, चेतना झंकृत सी हो गयी।
गुलाब के फूल का अपना महत्व है। अपने स्वभाव का वह अलग सा ही फूल है, जितना ही खूबसूरत, उतना ही पल भर में बिखर जाने वाला। उसको सहेजना कठिन है और छूना जितना सुखद उतना ही जोखिम भरा। गुलाब की खूबसूरती के चारों तरफ उसकी हिफाजत करने वाले सख्त काँटों को देखकर मन सिहर उठता है पर फिर भी गुलाब से आँख कहाँ हटती है! राजकपूर की फिल्म मेरा नाम जोकर में वे शायद अपनी टोपी के अन्दर गुलाब ही छुपाकर रखते थे, नायिका को देने के लिए।
गुलाब बहुत सारे रंगों, आकारों और विन्यासों में देखा। वर्षों पहले शहर के ही एक अखबार के लिए ऐसी प्रदर्शनी देखकर, सम्पादक जी की चाहत अनुसार कविताई रिपोर्टिंग करने का काम मिला था, वह याद आ गया। उस समय यह प्रदर्शनी बड़ी झील के किनारे लगी थी, अब वह अस्पताल के सामने लगने लगी है। मन कहता है कि इतने सारे गुलाबों की महक से अस्पताल में उन तक महक पहुँचती होगी तो उन्हें बहुत अच्छा लगता होगा, जिनकी तबियत खराब होती होगी।
शहर में दिन शुरू होते ही प्रेमी-प्रेमिका चेहरा बांध-बूँधकर मोटरसायकिल में जाने कहाँ-कहाँ घूमने निकल जाते हैं। वे तालाबों के किनारे या बाग-बागीचों में आबोहवा या प्रकृति के प्रति अनुराग के वशीभूत होकर अपना समय नहीं बिताते होंगे, ज्यादातर झुँझलाते या बहस करते दीखते हैं या उलाहने देते हुए। घण्टे भर गुलाब विश्व में रमते हुए ऐसा कोई जोड़ा नहीं दीखा जो गुलाब की खूबसूरती देखने-दिखाने आया हो।
गुलाब की खूबसूरती को सराहने वालों का अन्दाज दिलचस्प होता है। रमण करने वालों को सभी के सभी गुलाब सुन्दर, खूबसूरत, ब्यूटीफुल और वाओ लगते हैं। वास्तव में इस फूल की प्रकृति अचम्भित करके रख देती है। गुलाब का विभिन्न रंगों में यहाँ व्यक्त होना, उनका विन्यास चकित करके रख देता है। मुख्य रूप से तो सुर्ख-रक्ताभ गुलाब की खूबसूरती का शायद ही कोई पर्याय हो। लाल गुलाब से ध्यान मुश्किल से हटता है। आमतौर पर गुलाब, नाम के अनुरूप गुलाबी और गुलाबी में भी गहरे और हल्के रंगों की अनेक छायाओं में दिखायी देते हैं। पीला गुलाब देखना बहुत सुहाता है। यदि कहें कि सुर्ख लाल रंग का गुलाब मादकता का बोध कराता है तो पीला गुलाब मद्धम मुस्कुराता-लजाता सा महसूस होता है। सफेद गुलाब की शालीनता को उसके अनूठेपन में परिभाषित किया जा सकता है।
प्रयोगधर्मी समय में गुलाब उपरोक्त प्रमुख रंगों के अतिरिक्त नीले, हरे, बैंगनी आदि अनेक रंगों में दिखायी देते हैं किन्तु मूलभूत रूप से लाल, गुलाबी, पीला और सफेद गुलाब सीधे हमारे संज्ञान से जुड़ा है। गुलाब के फूलों की अनुभूति सीधे अनुराग से जुड़ी है। हमारे सिनेमा में ऐसे कितने ही दृश्य यादगार हैं जिसमें नायिका या तो स्वयं अपने बालों, जूड़े में गुलाब लगा रही होती है या उसका नायक प्रेम में भरकर मुस्कुराते हुए उसके बालों में गुलाब लगाता है। ऐसे दृश्य बहुत से एहसासों का पुनर्स्मरण कराते हैं। गुलाब पेश करना और उसका स्वीकार लिया जाना किसी के भी जीवन का दुनिया जीत लिए जाने जैसी अनुभूति रहा होगा, निश्चित ही। स्मृतियों में किताब में रखे-रखे सूख गये गुलाब भी याद आते होंगे जो देना थे मगर दे नहीं पाये। गुलाब का फूल शाहजहाँ की तस्वीर में उनके हाथों में हमेशा रहा है।
आज शायद ही किसी को गुलाब के सहारे अपनी ख्वाहिशों की दुनिया जीतने का ख्याल कभी आता हो..........
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