शनिवार, 26 मई 2012

भगवत रावत कविता कहते थे..............


हमारे समय के अत्यन्त महत्वपूर्ण कवि-साहित्यकार भगवत रावत का निधन हो गया है। यह सदी धीरे-धीरे हमारे बीच से ऐसे मूर्धन्य सृजनधर्मियों को दूर करती जा रही है जिनका बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। भगवत रावत ऐसे ही कवि थे जिन्होंने समय सापेक्ष सृजन की ऊर्जा और चिन्ता को अपने से कभी विलग होने नहीं दिया। उनका जन्म 13 सितम्बर 1939 को बुन्देलखण्ड के ग्राम ढेहरका, जिला-टीकमगढ़, मध्यप्रदेश में हुअ था। बचपन से स्नातक तक उनकी पढ़ाई झाँसी में हुई। 1957 में 18 वर्ष की आयु में रावत जी का विवाह हुआ। उन्होंने 1959 से प्राइमरी स्कूल के प्राध्यापक के रूप में काम करते हुए एम.ए., बी.एड. तक की शिक्षा भोपाल में पूरी की।

रावत जी भोपाल में ही 1966 में रीज़नल स्कूल में हिन्दी के व्याख्याता नियुक्त हुए। बीच में 1972 से 1975 तक तीन साल वे मैसूर (कर्नाटक) में कार्य करने के बाद 1975 में पुनः भोपाल आ गये। 1983 से 1994 तक रीजनल कॉलेज भोपाल में हिन्दी के रीडर पद पर कार्य किया। इसी साल वे मध्यप्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी के संचालक भी बने। रावत जी रीजनल इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन, भोपाल में समाज विज्ञान तथा मानविकी विभाग के अध्यक्ष भी रहे। उनका बचपन से ही लेखन के प्रति रुझान रहा। गंभीरता से लेखन की शुरुआत उन्होंने 1957 से आरम्भ की। लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में उनकी 500 से अधिक कविताएँ प्रकाशित हुई हैं। इसके साथ ही उनकी कविताएँ मराठी, बंगला, उड़िया तथा मलयालम में अनूदित हुईं जो अहम बात है। 1960 से 1970 के बीच कहानी, नई कहानियाँ, अपर्णा, नवलेखन आदि में कहानियाँ प्रकाशित होती रहीं तथा समीक्षात्मक गद्य तथा अनुवाद भी विभिन्न साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए।

सुदीर्घ सृजनात्मकता के समय में उनके अनेक काव्य संकलन प्रकाशित हुए जिनमें समुद्र के बारे में, दी हुई दुनिया, हुआ कुछ इस तरह, सुनो हीरामन, सच पूछो तो, बिथा कथा शामिल हैं। इसके साथ ही कविता का दूसरा पाठ (समकालीन हिंदी कविता पर आलोचनात्मक गद्य) पुस्तक का भी प्रकाशन हुआ। रावत जी मध्यप्रदेश साहित्य परिषद् के ‘दुष्यंत कुमार सम्मान’ तथा मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन के ‘वागीश्वरी सम्मान’ से सम्मानित भी हुए तथा 1997 में मध्यप्रदेश सरकार ने रावत जी को साहित्य के शिखर सम्मान से सम्मानित किया। वे 1989 से 1994 तक मध्यप्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष भी रहे तथा 1981 से 1994 तक ‘वसुधा’ का सम्पादन भी किया।

रावत जी की कविताएँ आज के समय में त्रासद सच को उद्घाटित करने वाली हैं। हिंदी कविता में जब यथार्थ के नाम पर लगभग मृतप्राय विचारों का प्रत्यारोपण अपने चरम पर था तब भगवत रावत ने हिन्दुस्तानी जनता के दुख को बहुत ही सादगी और गहरी आत्मनिष्ठा के साथ व्यक्त किया। उन्होंने उस ‘‘दी हुई दुनिया’’ की मुखालफत की जिसमें उत्पीड़न ही उत्पीड़न है। पहले काव्य संग्रह ‘‘समुद्र के बारे में’’ से लेकर ‘‘बिथा कथा’’ की कविताओं का ग्राफ बताता है कि उन्होंने असंगत व्यवस्था के विरुद्ध विरोध की संस्कृति सृजित की। वे तोड़-फोड़, रद्दोबदल के नहीं बल्कि श्रम के मूल्यांकन के कायल रहे। भगवत रावत मूलतः गहरे राग के कवि थे। इंसानी गर्मजोशी और इंतजार उनकी कविता के प्राण-तत्व हैं। वास्तव में ये तत्व उन्हें बुन्देलखण्ड और मालवा की माटी से मिले। रावत जी कविता लिखते नहीं, वरन् कविता कहते थे। यही वजह है कि ‘‘सुनो हीरामन’’, ‘‘कुछ हुआ इस तरह’’, ‘‘सच पूछो तो’’ और ‘‘बिथा कथा’’ संग्रहों में वे निम्न मध्यवर्ग से लेकर निम्न वर्ग की पीड़ा को अपनी जुबान देते हैं, विद्रूप को नामंजूर करते हैं जो इंसानियत को हकाल रहा है। वे मालवी करुणा के कवि थे। आज के मारक समय में जहां सब कुछ वस्तु में तब्दील हो रहा है करुणा के जरिए उन्होंने मानव-विरोधी मूल्यों के खिलाफ एक नकार दर्ज कराया था। यथार्थ की जमीन पर खड़ी उनकी कविताओं में एक ऐसी ज़मीनी आस्था है जो हार कर भी उठ खड़े होने और सतत संघर्षशील रहने का प्रत्याख्यान रखती है।

रावत जी की काव्य भाषा में एक निश्छल, ईमानदार सादगी है। वह बोलियों, लोककलाओं और छंदों की अन्तर्छवि तथा आधुनिक जीवन को पेंच को उघाड़ने और उसकी शिनाख्त के लिए सक्षम है। अपनी इसी पारदर्शिता के चलते वे समकालीन कविता में अपनी अलग पहचान बनाने में कामयाब रहे। पिछले कुछ सालों से उनका स्वास्थ्य निरन्तर गिर रहा था। सात-आठ वर्ष पहले वे मध्यप्रदेश की साहित्य अकादमी के निदेशक और वहाँ की साक्षात्कार पत्रिका के सम्पादक भी रहे। उनमें गजब का जीवट था। हाल के महीनों और दिनों में भी किडनी की बीमारी और निरन्तर डायलिसिस के बावजूद साहित्य और संस्कृति के आयोजनों में वे आ जाया करते थे। उनकी हिम्मत-हौसला चकित करता था। कुछ ही दिन पहले उनके कविता पाठ का एक आत्मीय आयोजन भी भोपाल में हुआ था। कुछ समय पहले उनके आत्मीय मित्र साहित्यकार कमला प्रसाद का निधन हुआ था, जिससे वे बहुत व्यथित हुए थे और उनका जाना भोपाल के सृजनात्मक समाज को व्यथित कर गया है। साहित्य जगत की अपूरणीय क्षति है उनका निधन।

7 टिप्‍पणियां:

कला रंग ने कहा…

Sunilji aapne achaa likha hai. aise kavi aur lekhak dheere- dheere kam hote jaa rahe hain

ma dogra ने कहा…

Sunilji, jab ye dukhad news aapne FB par de tu mann sochne par majboor hua ki dharti par se aisi mahan hastiyon ka jaana achha nahi lag raha hai. bechaini hai ki aage kya hoga.
Par aapne Rawat ji ki sunder smritiyon ko ujagar kiya hai. dhanyawad.

सुनील मिश्र ने कहा…

abharee hoob babli aapka. aapka kahna sahee hai, achchha laga, aapne padha aur apnee ray dee.........

सुनील मिश्र ने कहा…

uma jee, aapka krutagy hoon, shayad bhagwat rawat jee ko aap naheen jantee raheen hongee par aapne kal bhee apna shok vyakt kiya aur yah tribute lekh bhee poora padha. aap sachchi kala-sahity anuragee hain. abharee hoon.

बेनामी ने कहा…

हमारा प्रदेश सचमुच खदान है साहित्यकारों की .... रावत जी के बारे इतना ज्यादा पहली बार जाना..

बेनामी ने कहा…

हमारा प्रदेश सचमुच खदान है साहित्यकारों की .... रावत जी के बारे इतना ज्यादा पहली बार जाना..

सुनील मिश्र ने कहा…

aapka abharee hoon chetna. rawat jee ka srujan utkrisht hai aur yogdan, sthan, samman mahatvpoorn par bhopal ke akhbaron men un par char gambheer tippaniyan tak dikhayee na deen....