सोमवार, 28 मई 2012

आमिर खान, सत्य की ऊर्जा और सत्य के प्रयोग


सत्यमेव जयते का मतलब सत्य की विजय होती है, यह पीढिय़ों ने, पीढिय़ों को, पीढिय़ों से सम्प्रेषित किया है। जब आमिर खान का इस नाम शीर्षक शो शुरू नहीं हुआ था, उसके पहले से इसके बारे में विधिवत प्रचार होने लगा था और आमिर खान खुद इसके बारे में बहुत सारी जो बातें बताया करते थे, उनमें एक बात थी, इसका नाम सत्यमेव जयते रखा जाना। आमिर खान ने कहा था कि कई तरह के नाम दिमाग में सूझ रहे थे, कई तरह के मशविरे भी इसके लिए आ रहे थे। बड़े सोच-विचार के बाद जब सत्यमेव जयते शीर्षक पर सोचने लगे तो विधिक परामर्शदाताओं और जानकारों ने उनको बताया कि इसका कोई कॉपीराइट नहीं हो सकता है। इस नाम से शो शुरू करने के बाद भी यह नाम आपका नहीं कहलायेगा और बाद में कोई भी इस नाम से कार्यक्रम बना ले या कोई दूसरा उपक्रम करने लगे तो उसको चुनौती भी नहीं दी जा सकेगी।

आमतौर पर इस तरह की सावधानियों के विषय में व्यावसायिक तौर पर बहुत सोचा-समझा और विचार किया जाता है। अपना अधिकारी, अपनी पट्टेदारी बड़ी अहम होती है लेकिन अपने असाधारण को लेकर आश्वस्ति और खुद का आत्मविश्वास इन सब चीज़ों को खारिज भी करता चलता है। यही कारण था कि आमिर खान सत्यमेव जयते नाम रखने के पक्ष में बने रहे। उनका यह कदम भी बहुत महत्वपूर्ण था कि इसका प्रसारण समानान्तर रूप से दूरदर्शन से भी हो क्योंकि दूरदर्शन आज भी गाँव-गाँव तक जाता है। आमिर खान की यह दृष्टि उस सन्दर्भ में रेखांकित है जहाँ चैनलों के दो-तीन दशक पूर्व आक्रमण और बढ़ते घमासान के बीच बिना कुछ जतन किए ही यह प्रबल और सबल माध्यम ध्वस्त हो गया है। दर्शक चैनलों को उनकी लोकप्रियता के क्रमानुपात में ताश के पत्ते की तरह जमाये हुए है और उसमें दूरदर्शन शायद सबसे पीछे भी नहीं है। हालाँकि बीच-बीच में दूरदर्शन में कुछ ऐसे मुख्य अधिकारी आये भी जिन्होंने इस शक्तिसम्पन्न संसाधन में ऊर्जा भरने की कोशिश की मगर सीमाएँ और किसी भी कार्य के प्रतिरोधियों, जिनकी उपस्थिति अब हर एक जगह है, होने ही नहीं दिया वैसा कुछ जैसा सोचा और चाहा गया होगा।

बहरहाल इस बात के लिए भी श्रेय आमिर खान को ही दीजिए कि घर के ऊपर छतरी जहाँ नहीं है, केबल का तार जिन घरों के टीवी के पीछे नहीं लगता है, वहाँ भी सत्यमेव जयते जा रहा है। एक एन्टीना के सहारे यदि जागरुकता अंचलों में दूरदर्शन के माध्यम से सम्प्रेषित हो रही है, तो वह एकदम निरर्थक तो नहीं जायेगी। आमिर खान का यह शो बहुत लोकप्रिय हो गया है। मुद्दे अपनी मौलिकता और ज्वलन्त परिप्रेक्ष्य के हर काल में प्रासंगिक हैं। जब व्ही. शान्ताराम ने दुनिया न माने फिल्म बनायी थी, तब और आज समय वही है जहाँ लडक़ा, लडक़ी पर भारी है। काम कुण्ठित आज भी भोले और मासूम बच्चों को अपना शिकार बनाने के लिए बड़े शातिर और कमीन इरादों के साथ अपना काम कर रहे हैं। दहेज नाम की फिल्म भी पचास साल पहले बनी थी और आज भी दहेज की लालसा उन सब मनुष्यों को निर्मम बनाकर रखती है जो अपने घर में पूजा-पाठ करते हैं, व्रत-उपवास करते हैं, मन्दिर जाते हैं, आँख मूँदकर प्रार्थना करते हैं, मिलकर त्यौहार मनाते हैं, हँसते-खिलखिलाते हैं लेकिन जब ब्याह तय करते हैं तो जैसे उनके पेट में मूर्छित नरभक्षी अँगड़ाइयाँ लेने लगता है। घटनाएँ होकर रह जाती हैं। हम अखबार में पढ़ते हैं और चैनलों में देखते हैं। दस-पन्द्रह-बीस सालों में कभी कोई मुकदमा निर्णय पर आता है तब फैसला हमें चाहकर भी उस घटना से जोड़ नहीं पाता क्योंकि हम सब कुछ भूल चुके होते हैं। 

दरअसल यह हमारी भूल भी है और भूलचूक भी। आमिर खान की संगत में हम एक-सवा घण्टा बैठकर कुछ आपबीतियाँ सुना करते हैं। हम सबकी आँखें छलछला आती हैं, आमिर खान भी आँख के किनारे अपने आँसू पोंछकर सुखाने की कोशिश करते हैं। सामने बैठे लोग भी रोने लगते हैं। वास्तव में हमने अपने आसपास दूसरे के दुख-सुख के लिए समय बचाकर रखा ही नहीं है। क्यों पूछे जाने पर कह देंगे कि हमें अपने ही रोने से फुरसत नहीं है, कहाँ वक्त है, इन सबके लिए। हर आदमी यही सोच रहा है, यही कारण है, कि मुसीबत में हर वो आदमी अकेला है, जिसकी ऐसी मनोवृत्ति है। हमने अपनी दुनिया का सीमांकन कर रखा है वह भी अपने घर के बन्द किवाड़ों में। इसीलिए हमें न रोता हुआ कोई दिखायी देता है और न ही सिसकता हुआ कोई सुनायी देता है। आमिर खान केवल फिल्मों से पैसा कमाने वाले कलाकार नहीं हैं बल्कि वे शायद ऐसे कलाकार हैं जो अपने कैरियर या फिल्मों को उस तरह से नहीं लेते जिसमें साल में कितनी फिल्में करना है, कितना पैसा कमाना है, कितनी जगह उसको सुरक्षित करना है, देश-दुनिया में कितने शो करना है, धन-प्रदाता आयोजनों में शिरकत करना है, जैसे प्रश्रों से दूर रहते हैं। यही कारण रहा कि सत्यमेव जयते को उन्होंने अपनी पूरी हो चुकी फिल्म तलाश के प्रदर्शन से ज्यादा प्राथमिकता दी। अब वह फिल्म 30 नवम्बर को प्रदर्शित हो रही है। 

सत्यमेव जयते हमारे लिए एक जरिया बना है अपने अन्तर्आकलन का जिसको लम्बे समय से हम खारिज किए हुए थे। हम हमेशा कहते रहेंगे कि कमबख्त मँहगाई में जीना मुहाल है मगर हमारी शान-शौकत में कहाँ कोई फर्क आया है? जि़न्दगी की मौज-मस्ती और सपने थोड़ी देर के लिए हमें सब भुला देते हैं। हम वैभव के ऐसे लोक में भटकर सज-सँवर रहे हैं, जी रहे हैं जहाँ इस बात का एहसास ही नहीं है कि हमारे नियंत्रण से कुछ भी बाहर है। यह एक अलग तरह का भ्रम और नीम-बेहोशी सी है, सत्यमेव जयते हमारे गाल पर आमिर खान की ऐसी थप है जिससे चौंककर आँख खुलती है। सत्य के साथ अपने भीतर जाना वाकई कठिन काम है। एकाएक बहुत सारे लोगों ने आमिर खान के इस उपक्रम का अपने-अपने ढंग से प्रतिवाद किया है। राजस्थान के स्वास्थ्य मंत्री ने शायद यह भी कह दिया है कि आमिर खान इसके जरिए खूब कमाई कर रहे हैं। ठीक है, आमिर खान की जो स्टार वैल्यू है, आज के समय का सबसे बिकाऊ सितारा सलमान खान भी जिनकी बौद्धिकता का बड़ा आदर करता हो, ऐसा कलाकार आमिर खान, बेशक इस प्रस्तुतिकरण का भी मानदेय प्राप्त कर रहे होंगे मगर वे यह काम जनता की आँखों में धूल झोंककर नहीं बल्कि झुँकी हुई धूल साफ करके या आँखें खोलकर प्राप्त कर रहे हैं। 

महात्मा गांधी ने सत्य के प्रयोग नामक अपनी आत्मकथा में आत्मालोचन के सम्बन्ध में ही कुछ बातें कहीं हैं। जैसे यह कि यह मार्ग तलवार की धार पर चलने जैसा है तो भी मुझे यह सरल से सरल लगा है। इस मार्ग पर चलते हुए मुझे अपनी भयंकर भूलें भी मुझे नगण्य सी लगी हैं क्योंकि वैसी भूलें करने पर भी मैं बच गया हूँ और अपनी समझ के अनुसार आगे बढ़ा हूँ। सत्य के शोध के साधन जितने कठिन हैं उतने ही सरल भी हैं। वे अभिमानी को असम्भव मालूम होंगे लेकिन एक निर्दोष बालक को सम्भव लगेंगे। सत्य की अपनी ऊर्जा होती है जो हमेशा निद्र्वन्द्व और निर्भीक रखती है। सत्यमेव जयते वास्तव में सत्य की विजय की विस्मृत विश्वसनीयता को भी पुनर्जाग्रत करने का एक उपक्रम है। यह कम नहीं है कि लोग अब कम से कम इस बात के लिए इतवार को दिन में भी खास उस वक्त के लिए जागे रहते हैं जब सत्यमेव जयते का प्रसारण होता है। यहाँ जागे रहने का मतलब कायिक अर्थों में नहीं बल्कि अपनी चेतना में जाग्रत रहने से है और यह आमिर खान ने कर दिखाया है।
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8 टिप्‍पणियां:

Uma Dogra ने कहा…

sahi kha Sunilji, Show bahut hi charchit aut behtareen tareh se banaya hai Amir saheb ne. Agar aapki shakhsiyat sachhi hai tu kaam jhalak hi jati hai. Amir ji ka Desh ki samsyaon ko mehsoos karna, kuch karne ki achha rakhna, unke is serial se bakhubi samjh aata hai. He is basically Hindustan ke ek Jagruk Insaan hain, aap ka lekh khoobh hai, sahi kha aapne, Hindustan ke os kone mei bhi log isko dekhte hain jahan insaan zindagi ki lardai lard raha hai.Amir saheb Badhai ke patr hain. Uma

Uma Dogra ने कहा…

Iska shirshak bhi aapne khoob rakha hai "आमिर खान, सत्य की ऊर्जा और सत्य के प्रयोग"

सुनील मिश्र ने कहा…

उमा जी, आपने बड़े अच्छे से अपनी बात कही है। अच्छा लगेगा जो आप अपने कुछ वैचारिक मित्रों को भी इसकी लिंक भेज दें। मुझे लगता है कि ऐसी छबि बन जाए जब आप देश के इतने प्रिय हो जाएँ तो कम से कम कुछ अच्छी और सकारात्मक बातें लोगों तक पहुँचाने का काम कर दें। सब सुनते हैं, समर्थन करते हैं, कहते हैं कि हमारे दिल और जीवन की बात कही गई है। इसका बड़ा फर्क पड़ता है।
गांधी जी की आत्मकथा का नाम "सत्य के प्रयोग" था। उसी से प्रेरित होकर यह शीर्षक सोचा गया। इसे भी पसंद करने के लिए कृतज्ञ हूँ।

बेनामी ने कहा…

SARITA SHARMA sunil jee, is aalekh se sahmati to sabkee hogee hee, lekin is "satyamev ..." par aapkee post aapke apne sarokaar ko bhee bakhoobee saamne laatee hai. aap ek jaagrook kalamkaar kaa daayitv nirvahan karne me kabhee peeche nahee rahte. banee rahe, bachee rahe aapkee yah jaagrooktaa, samvedna aur manushyataa. mushkil yahee hai ki ham jad, samvedanheen hote jaa rahe hain. swayam kendrithote jaa rahe hain...aapko bahut saadhuvaad... shubhkaamna.

सुनील मिश्र ने कहा…

सरिता जी, आपने आमिर और रावत जी वाले दोनों ही आलेख पढ़े हैं और अपनी बात काही है। आमिर वाला लेख अख़बार के लिए था फिर मुझे लगा कि यह जल्दी छप न पाये इसलिए यहाँ दे दिया। आप सब सुधिजनों का पढ़ा हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। रावत जी को तो बचपन से अपने शहर में जाना है, बहुत गहरे रचनाधर्मी थे। उनकी एक कविता "सुनों हीरामन" (तीसरी कसम से प्रेरित) बहुत मर्मस्पर्शी है।
आमिर का काम बहुत बड़ा है मेरी नज़र में लैंडमार्क। ये शख्स वाकई अपने जीवन की सार्थकता का पर्याय है। आमिर की संवेदना और सरोकारों को किसी के प्रमाण पत्र की ज़रूरत नहीं है, यह उनके आलोचक ज़रा समझें। हीनता बुरी चीज़ नहीं है, बस कटखना नहीं होना चाहिए...
सरिता जी, आपका बहुत बहुत आभार।

बेनामी ने कहा…

एक एन्टीना के सहारे यदि जागरुकता अंचलों में दूरदर्शन के माध्यम से सम्प्रेषित हो रही है, तो वह एकदम निरर्थक तो नहीं जायेगी।..... :):)
very nice ...

nice write up ..

बेनामी ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
सुनील मिश्र ने कहा…

chetna jee, yah mera sochna hua. amir khan ne yah mana ki doordarshan aaj bhee sudoor anchalon ko sarvadhik bimbeey manoranjan hai, is taaqat ko unhone apne anushthan ke liye sakaratmak dhang se istemal kiya yah unkee ek badee samajhdaree bhee hai.