गुरुवार, 26 सितंबर 2013

तमीज़-तमीज़ की हँसी


हमेशा ही परिवारों, मुहल्लों और इससे हटकर लोकप्रियता का आलम बढ़ने पर वाचालपन को अलग से ही रेखांकित किया जाता रहा है। प्रायः परिवारों में कोई बच्चा ऐसा होता है जो अपने हिसाब के तमाम गुणों के विपरीत होता है। अक्सर स्कूलों में जहाँ एक साथ बड़ी संख्या में विभिन्न स्वभाव और गुण-दक्षता के विद्यार्थी होते हैं, एकाध प्रतिभासम्पन्न अलग ही दिखायी देता है। प्रतिभा सकारात्मक और नकारात्मक सभी आयामों में आँक ली जाती है। शैतान, बदमाश, शरारती, चपल और वाचाल जैसे शब्द निश्चित ही सकारात्मक आकलन के विपरीत जाने वाली चीजें हैं लेकिन किसे पता रहता होगा कि ऐसे गुण भी आगे चलकर मनुष्य को ज्यादा लोकप्रिय और किंचित मुग्धप्रभाव के धनी रूप में पहचान बना देने का काम करते हैं।

कपिल शर्मा, जो कि खैर इन दिनों राजू श्रीवास्तव से भी आगे निकल गये और राजू श्रीवास्तव की तरह ही उनके रास्ते लोकप्रियता और धनअर्जन के रास्ते में जाने वाले पन्द्रह-बीस कलाकारों ने भी अपनी-अपनी जगहें बना ही ली हैं, कुछेक को बड़े सम्मानपूर्वक कुछ फिल्म निर्देशकों ने अपनी फिल्मों में भी काम किया जैसे रोहित शेट्टी ने बोल बच्चन में कृष्णा को मौका दिया तो उन्होंने अपने सरकस में जाना छोड़ दिया और सितारा बन गये। उस समय कपिल जरा खिसियाये से रहते थे। रेडी में सुदेश लाहिड़ी को मौका मिला पर बाद में वो कम दिखायी देने लगे। भारती सिंह एक-दो धारावाहिकों में दिखायी दीं मगर ज्यादा प्रतिभा न दिखा पाने के कारण अपनी ही दुनिया में खुद को बनाये रखने के लिए संघर्ष कर रही हैं।

दरअसल हास्य की मौजूदा स्थितियों और आम आदमी के जीवन में उसकी जरूरत को ये सभी कलाकार एक ऐसी विचित्र सी कारगर दवा बनाकर लाये हैं जिसने फूहड़ता को शिष्ट और कुलीन समाज में अलग सी मान्यता दे दी है। अब सभी हँसोड़ों की जमात में शामिल हैं और भदेस पर भी शर्मसार होने के बजाय ठहाका लगाते हैं या खिलखिलाते हैं। हास्य के सरकसों और दूसरे तथाकथित शो में एक बड़ी खेंप ऐसे कलाकारों की आकर पुरानी पड़ गयी है। आपको शायद दिमाग पर जोर डालना पड़ेगा तब कुछ कलाकार याद आयें।

इधर कपिल शर्मा उस बड़ी खेंप के लगभग आखिरी प्रतिनिधि दिखायी दे रहे हैं मगर यह भी कम बड़ा आश्चर्य नहीं है कि कल तक अपने लिए काम मांगने जाने वाले इस हँसोड़ के दरवाजे तमाम बड़े कलाकार आ जाया करते हैं। कपिल ने फूहड़ता और सस्ते सेंस ऑफ हृयूमर को यहाँ अपनी लोकप्रियता का आधार बनाया है। उनके शो में उनको छोड़कर सभी पुरुष कलाकार स्त्रियों के वेश में हैं। एक उपासना सिंह लम्बे समय सिनेमा में अवसर तलाशते और हताश होते यहाँ खिल्लियों के बाजार का हिस्सा बनी हुई हैं। कुल मिलाकर यह सारा का सारा प्रस्तुतिकरण निहायत ही हल्का और निराशाजनक है। हम सब इसे खूब देखते हुए हँस रहे हैं और ताली बजा रहे हैं यह और भी निराशाजनक है। लगता है कि हँसी को भी अलग-अलग तमीज़ में देखा जाना चाहिए। कपिल की प्रतिभा और हँसाने की दक्षता के स्रोतों की तमीज़ पर खासतौर पर शिष्टतापूर्वक विचार किया जाना चाहिए।

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