हिन्दी सिनेमा में लगातार इतनी आमद और प्रवाह है कि बहुत से कलाकार आते-जाते बेहतर काम करते हुए भी हमारी स्मृतियों से ओझल हो जाते हैं। कभी-कभार स्मृतियाँ ताजा होने पर हमें उनको लेकर जिज्ञासाएँ हुआ करती हैं मगर हमारे पास उस तरह की सूचना या सन्दर्भ नहीं हुआ करते जो हम उन कलाकारों के हाल जान सकें जिनके खास किस्म के किरदारों, हावभाव या अन्दाज से वे हमें याद रह गये हैं। आज का समय ऐसा नहीं है जो नयी पीढ़ी उन पुराने कलाकारों को याद कर सके। बहुत से कलाकार ऐसे हैं जो उम्र, स्वास्थ्य और अन्य कठिनाइयों के चलते मुष्किलों में हैं। कुछ संस्थाएँ ऐसी जरूर हैं जो ऐसे कलाकारों को वक्त-वक्त पर मदद करती हैं लेकिन किसी समय लाइम लाइट में रहे और चकाचैंधभरी दुनिया से दूर जा चुके ऐसे लोग अपने अकेलेपन और खासतौर पर उस समय और बाद के लोगों की उपेक्षा और भूला दिये जाने के अवसाद से ग्रस्त रहते हैं।
बीते समय के सुपरिचित गीतकार योगेश ऐसे ही गुमनाम समय में अपने समय को याद करते हैं। उन्होंने बासु चटर्जी, हृषिकेष मुखर्जी सहित अनेक फिल्मकारों के साथ काम किया और गीत लिखे। अपने मधुरतम गीतों जैसे आनंद का जिन्दगी कैसी ये पहेली हाय, मिली का बड़ी सूनी-सूनी है की वजह से उनको काफी नाम अपने समय में मिला था। धीरे-धीरे गीतों में अधकचरापन, फूहड़ता और निरर्थकता का बोलबाला हुआ तो योगेष जैसे गीतकारों की जगह भला कहाँ रहती! वे अनजान होते गये। अपने समय में जिन नये गीतकारों को उन्होंने प्रोत्साहित किया, रास्ता बताया, बाद में उनके पास ही योगेष का पता नहीं था।
चरित्र अभिनेताओं की एक पूरी पीढ़ी इस समय काम से दूर है। अच्छा लगा था जब कामिनी कौषल को एक सीन के लिए ही सही शाहरुख खान ने चेन्नई एक्सप्रेस में दिखाया। हो सकता है इस बहाने उनको मदद करने का उनका नेक ख्याल रहा हो। इसी फिल्म में निर्देषक लेख टण्डन भी इसीलिए लिए गये होंगे। आज के सफल और प्रभाव वाले कलाकार ऐसे काम कर सकते हैं। इन दिनों लम्बे समय से सईद जाफरी का कोई हाल नहीं मिल रहा। वे लगभग पचासी साल के हो चुके हैं और फिल्मों में बरसों से दिखायी नहीं दिए। अभिनेता भरत कपूर फिल्म नूरी के खलनायक के रूप में प्रसिद्ध हुए। वे रंगमंच के कलाकार हैं। इन दिनों दिखायी नहीं देते। सुलभा देषपाण्डे, रोहिणी हट्टगडी नजर नहीं आतीं। शम्मी, चरित्र अभिनेत्री हैं, बड़ी उम्रदराज हो गयी हैं उनका परदे पर आना बन्द हो गया है। रमैया वस्तावैया गाने पर नाचने वाले चन्द्रशेखर बरसों चरित्र कलाकार रहे हैं, सामाजिक कार्यों में उन्होंने अपनी सक्रियता का खासा समय लगाया है। आज भी वे सक्रिय हैं और लगभग नब्बे की उम्र में भी चल-फिर रहे हैं।
याद किया जाये तो बहुत से कलाकार याद आते हैं जिनका पता उनके बहुत सारे सहकर्मियों को भी नहीं मालूम, जैसे व्ही. एम. व्यास, बेला बोस, सुलोचना, पूर्णिमा, इन्द्राणी मुखर्जी, श्रीराम लागू वगैरह। पीढि़याँ अपने बुजुर्गों और पितृपुरुषों को भुला दिया करती हैं, ऐसी पीढ़ी आने वाले समय में खुद भी वैसी त्रासदी के सामने हुआ करती है।
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