सोमवार, 2 मार्च 2015

बौर-झूमर का क्षरण

शनिवार का पूरा दिन ठण्डी हवाओं के प्रभाव में ऐसा रहा कि सूरज देवता जैसे आसमान की ओट में ही छुपे रहे। एक दिन पहले तक दिन खूब गरम होने लगा था। कल देर रात या कह लें उत्तरार्ध में बूंदों की ध्वनियाँ नींद भरी चेतना को जगाती सी लगीं। थोड़ी देर में ही ऐसा लगा कि बूंदों का यह अचानक आना नम्रतापूर्वक नहीं है। एक ही तीव्रता में इस बरसते पानी के साथ ही सुबह हुई जिसने पूरा दिन ही अपने नियंत्रण में किए रखा।
सोच रहा था कि यह एक गति से भिगोता-बरसता पानी सीधे जमीन में जा रहा है, गहरे जाकर ठहर जायेगा और फिर उस तरह से फायदा देगा जैसे फायदे की अपेक्षा ऐसी बरसात से की जाती है। होली आने को है, कुछ वर्ष पहले का स्मरण हो आता है जब उस रात ही बहुत तेज पानी अचानक बरस गया था जब होलिका दहन हो रहा था।
इस बार कल रात से बरस रहे इस पानी ने और पता नहीं क्या किया हो, क्या न किया हो लेकिन जो मुझे नजर आया उस पर सोचकर एक तरह का दुख ही व्याप्त हो गया। इस चोरी-छिपी बूंदा-बांदी के साथ ही घर और आसपास के तमाम आम के पेड़ों से बड़ी मात्रा में वो आम के बौर झरकर जमीन पर गिरने लगे जिनको कल तक देखकर मन प्रसन्न हुआ जा रहा था। लग रहा था कि इस बार आम अच्छा आयेगा। ये बौर जल्दी ही नन्हें-नन्हें हरे नगों की तरह अपने जन्म का साक्ष्य खुद हो जायेंगे। धीरे-धीरे फलेंगे, बड़े होंगे, गुच्छों में दूर ऊँचाई से ललचायेंगे।
कैरी, हरे आम से लेकर पके आम तक इनकी कितनी उपयोगिता होगी! कितने ही व्यंजनों को ये स्वादिष्ट बना देंगे, आप कितनी तरह के स्वादों के साथ मिलकर हमें लुभाये रहेंगे। साल भर का अचार होंगे। दाल की स्वादिष्ट खटास से लेकर चटनी का चटखारा होंगे, लू का पक्का इलाज पना होंगे, जलजीरा होंगे, पकेंगे तो अप्रतिम स्वाद से जी भर देंगे।
इतना सब कुछ सोचकर फिर निगाह अपने आँगन, सामने की सड़क और आगे ज्यों-ज्यों बाहर आता गया, हर जगह जमीन पर पड़ी तो मन उदास हो गया, अच्छा नहीं लगा। झूमर और झालर की तरह लहलहाते आम के बौर इस बेतरतीब बरसात का किस तादात में शिकार हो गये, कामना और आकलन करना मुश्किल है। प्रकृति अपनी असहजताओं, नियंत्रण के बाहर होने पर, सन्तुलन के बिगड़ने पर किस-किस तरह के नुकसान करती है, इसका यह एक संवेदनशील उदाहरण है। हो सकता है, आपके जहन में इस तरह का दृश्य न आया हो, आप इसके साक्षी न बने हों लेकिन हमारे-आपके पैरों के नीचे आते, ये गिरे-बिखरे आम के बौर आपमें क्या भाव जगाते हैं, जरा सोचिएगा.....................

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