मध्यप्रदेश सरकार का इस साल का शासकीय कैलेण्डर सभी सरकारी अधिकारियों और
कर्मचारियों के घर और दफ्तर की दीवार की शोभा बढ़ा रहा है। आपका ध्यान क्या इस बात
पर गया है कि इस बार के कैलेण्डर का विषय कुछ खास है, जी हाँ यह साल पर्यटन वर्ष के रूप में मनाते हुए मध्यप्रदेश
देश-दुनिया के सैलानियों को अपने यहाँ की कला विरासत को देखने और नजदीक से उसका
चाक्षुष अनुभव करने के लिए आमंत्रित कर रहा है।
यदि आपके पास इस समय यह कैलेण्डर है तो आप जनवरी से लगाकर एक-एक करके पन्ने
पलटना शुरू कीजिए, महसूस कीजिए कि
आप हवाई जहाज या हैलीकाॅप्टर में मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक परिक्रमा कर रहे हैं,
एक-एक करके आपकी आँखों के सामने भारत के इस
हृदयप्रदेश का इतिहास, अनमोल कला विरासत
और सदियों पुरानी सांस्कृतिक चेतना के साक्ष्य रहे स्थान आते चले जायेंगे।
ये स्थल हैं, अमरकंटक जहाँ
आपको कपिलधारा दिखायी देगी फिर विश्व धरोहर स्थल खजुराहो, ओरछा की छत्रियाँ, ग्वालियर स्थित मोहम्मद गौस का मकबरा, बौद्ध स्तूप सांची, उज्जैन की पुण्य
सलिला शिप्रा, भोपाल की ताजुल
मसाजिद, जहाज महल माण्डू, भेड़ाघाट जबलपुर का धुँआधार मारबल राॅक्स,
खरगोन महेश्वर का अहिल्या घाट, प्रागैतिहासिक शैलाश्रय भीमबैठका, पचमढ़ी का चैरागढ़। इस छबियों को पहली बार एक
बिल्कुल नये अन्दाज में प्रस्तुत किया गया है। इस तरह के बर्ड आई व्यू से आमतौर पर
हम अपने प्रदेश को नहीं देख पाते। ये छबियाँ हमारी परिचित जगहों को एक नये कोण,
एक नये सौन्दर्यबोध के साथ सामने लाती हैं।
यह साहसिक काम प्रदेश के दो वरिष्ठ कलाकारों ने बड़े साहस के साथ सम्पन्न किया
है, ये हैं ख्यात फिल्मकार,
सिनेमेटोग्राफर और छायाकार राजेन्द्र जांगले और
कलाकार-पेंटर हेमन्त वायंगणकर। जांगले, मध्यप्रदेश माध्यम में सिनेमा प्रभाग के निदेशक हैं। उन्होंने एक फिल्मकार तथा
सिनेछायाकार के रूप में विगत चार दशकों में समय-समय पर मध्यप्रदेश को गौरवान्वित
किया है, राज्य का नाम रोशन किया
है। राजेन्द्र जांगले, पुणे फिल्म
संस्थान से प्रशिक्षित हैं। अपने सृजन के श्रेष्ठ परिणामों के लिए उनका जतन बहुत
प्रभावित करता है। हमारे समय में बहुधा ऐसा कम देखने को आता है जब प्रतिभाएँ
लगातार काम करते हुए अपनी सर्जना में उत्कृष्ट को लेकर चिन्तित रहा करती हों।
आमतौर पर संघर्ष के समय में अथवा स्थापित होेने तक दिखायी देने वाले श्रेष्ठ
सर्जना में आगे कई बार ठहराव ही इसी वजह से आता है कि सृजनधर्मी अपने आपमें
संतुष्ट हो चुकता है, उसकी पहचान,
प्रतिष्ठापना भी हो चुकती है, फिर कहीं न कहीं यदि उसकी गम्भीरता, प्रतिबद्धता प्रभावित हुई तो नवोन्मेष की
अनुपस्थिति, नवाचार की ऊर्जा
का अनुपस्थित होना ठहराव को प्रमाणित करता है।
राजेन्द्र जांगले के व्यक्तित्व में,
इससे अलग, परफेक्शन को लेकर चिन्ता देखना बहुत सुखद लगता है। अनेक
अवसरों का साक्षी हुआ हूँ जब वे बड़ी देर में अपनी प्रस्तुति, अपने प्रदर्शन से संतुष्ट हुए हैं। जांगले अपने
किए गये कार्य को भी एक सृजनात्मक वातावरण में प्रदर्शित कर संतुष्ट होते हैं।
उनकी यही चेतना समकालीनों से उनको अलग रखती है। उनकी बनायी अनेक लघु फिल्मों को
नेशनल अवार्ड मिला है जिनमें तत्काल तो बैगा आदिवासियों पर बनायी गयी फिल्म याद
आती है। कुछ समय पहले ही राजेन्द्र जांगले ने नर्मदा नदी पर एक खूबसूरत फिल्म
बनायी है जो उसके उद्गम अमरकंटक से भरुच तक समुद्र में मिलने तक की अनुपम यात्रा
को प्रदर्शित करती है। फिल्म देखते हुए सचमुच नर्मदा के पथगामी होने का अनुभव होता
है। शासकीय कैलेण्डर में उनके दस छायाचित्र शामिल हैं।
इसी प्रकार उप महाप्रबन्धक के रूप में मध्यप्रदेश माध्यम में ही कार्यरत
हेमन्त वायंगणकर मालवा की सांस्कृतिक परम्परा से आये एक ऐसे चित्रकार हैं जिनका
काम उनके प्रशान्त व्यक्तित्व के अनुरूप ही सुहावना और मनभावन है। अस्सी के दशक
में जब मध्यप्रदेश में कला-संस्कृति के क्षेत्र में रचनात्मक जागरुकता का एक
उत्साहजनक दौर शुरू हुआ था, भारत भवन का
निर्माण शुरू हुआ था और स्थापना हुई थी, हेमन्त वायंगणकर उसी समय इन्दौर से परिचित हुए थे। वे निरन्तर सृजनात्मक श्रम
करने वाले युवा चित्रकारों के समूह का सक्रिय हिस्सा रहे हैं। उनकी सहभागिता वाली
सामूहिक प्रदर्शनियाँ देश के अनेक शहरों में आयोजित हुई हैं। अनेक कार्यशालाओं में
विषय विशेषीकृत की अभिव्यक्ति और परिकलपना के साथ उन्होंने काम किया है।
हेमन्त एक
कुशल परिकल्पनाकार और आकल्पक तो हैं हीं कुछ वर्ष पहले छायांकन में उनका रुझान
उनके सृजनधर्मी आयाम का विस्तार करता है। दोनों ही कलाकारों की स्वतंत्र पहचान और
कलाजगत में अपना नाम है। कैलेण्डर में हेमन्त वायंगणकर के दो छायाचित्र शामिल हैं।
इस कैलेण्डर के लिए दोनों ही कलाकारों ने हैलीकाॅप्टर से लगभग सात-आठ दिन
अलग-अलग योजनाओं के साथ उड़ान भरी। उनके साथ इस सांस्कृतिक प्रकल्प को पूरा करने
में कैप्टन वी के सिंह एवं संजय श्रीवास्तव का अहम योगदान रहा है। जांगले और
हेमन्त इस यात्रा को गहरे अनुभव से भरी और खूब रोमांचक बतलाते हुए इसका सारा श्रेय
मुख्य सचिव अॅन्टोनी डिसा और जनसम्पर्क आयुक्त एस के मिश्रा को देते हैं। वे बताते
हैं कि यह सांस्कृतिक ख्याल मुख्य सचिव का अपना मौलिक विचार था जिसे चर्चा में
उच्चस्तर पर लोकतांत्रिक समर्थन और प्रोत्साहन मिला। दोनों का ही कहना था कि मुख्य
सचिव और जनसम्पर्क आयुक्त ने इसके लिए जिस उदारता के साथ काम करने के संसाधन
प्रदान किए, उनके साथ ही यह
काम सम्भव हो सकता था।
1 टिप्पणी:
suneel ji vivran aur phot dekh kar annand aa gaya.
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