सोमवार, 8 अप्रैल 2013

अपने साज को वाणी प्रदान करने वालीं कमला शंकर


गिटार वादन के क्षेत्र में शास्त्रीय संगीत के सरोकारों और अनुशासन की परिधि में नवोन्मेष तथा आश्वस्त प्रयोगधर्मिता से अपनी महती पहचान स्थापित करने वाली कलाकार डॉ. कमला शंकर की प्रतिष्ठा समकालीन परिदृश्य में एक ऐसी साधिका के रूप में है जो कला और जीवन के बीच एक अनूठी गम्भीरता का निर्वाह प्रशान्त भाव से करती आ रही हैं। उन्होंने गिटार जैसे पश्चिमी साज को भारतीय शास्त्रीय पारम्परिकता में जिस खूबसूरती के साथ स्वभाव-सम्मत बनाया है, उसने उनको एक अलग ही पहचान दी है। यही कारण है कि युवा कलाकारों, विशेषकर वादकों के बीच क्षमता के मान से अत्यन्त गुणी और स्वभाव के मान से अत्यन्त विनम्र उपस्थिति के कारण वे जानी जाती हैं। 

डॉ. कमला शंकर को मध्यप्रदेश सरकार ने हाल ही अपने प्रतिष्ठा अलंकरण राष्ट्रीय कुमार गंधर्व सम्मान से विभूषित किया है। यह सम्मान उन्हें देवास में कुमार गंधर्व संगीत समारोह के अवसर पर प्रदान किया गया। इस सम्मान के अंतर्गत उन्हें एक लाख पच्चीस हज़ार रुपये की राशि, सम्मान पट्टिका, शाल और श्रीफल प्रदान किया गया।

डॉ. कमला शंकर का जन्म 5 दिसम्बर 1966 को वाराणसी में संगीत को समर्पित घराने में हुआ। उनके पिता डॉ. आर. शंकर और माँ विजया शंकर ने उनको आरम्भ से ही संगीत की अभिरुचियों से जोड़ने का काम किया। उन्होंने चार वर्ष की उम्र से अपनी माँ से गायन सीखा। सात वर्ष की उम्र में उनको गायन की शिक्षा प्राप्त करने का सौभाग्य पण्डित अमरनाथ मिश्रा से प्राप्त हुआ। आठ वर्ष तक उन्होंने उनका सान्निध्य ग्रहण किया और संगीत प्रभाकर करने के पश्चात कर्नाटक संगीत की विलक्षण गायिका भारत रत्न एम.एस. सुब्बलक्ष्मी से प्रभावित होकर अपनी साधना का परिष्कृत करने का काम किया।

गिटार से उनका सरोकार, अपनी पहचान स्थापित करने की गहरी लगन और परिवेश की प्रेरणाओं से हुआ। डॉ. कमला शंकर की माँ पश्चिम बंगाल के निकट आसनसोल की हैं और गिटार का सम्बन्ध रवीन्द्र संगीत से बड़ा गहरा है, लिहाजा गायन में महान गुरुजनों के ज्ञान और प्रेरणाओं से आश्वस्त होकर उन्होंने गिटार को अपने हाथ में थामा और साधना और परिमार्जन से धीरे-धीरे अपनी अलग पहचान बनानी शुरू की। गिटार वादन में डॉ. कमला शंकर ने अपने गायन-अनुभवों को भी सम्प्रेषित किया और एक तरह से अपने वादन को श्रोताओं के सम्मोहन से इस प्रकार जोड़ा कि उनका वादन सुनने वालों को लगता था, जैसे उनके साज को वाणी प्राप्त हो गयी हो। निश्चय ही इस सृजन में उनके गुरुजनों का बड़ा योगदान रहा जिनमें वाराणसी के डॉ. शिवनाथ भट्टाचार्या और किराना घराने के विख्यात गायक पण्डित छन्नूलाल मिश्र शामिल हैं। 

यह डॉ. कमला शंकर की ही विशेषता है कि जिस साज को उन्होंने साधा उसे अपने स्वभाव और अनुशासन में समरस कर उसे शंकर गिटार के रूप में पहचान और प्रतिष्ठा दी और उसके प्रति अपना गहरा अनुराग प्रमाणित किया। उनके सन्दर्भ में यह भी उल्लेखनीय है कि उन्होंने वादन के साथ-साथ शास्त्रीय और उप-शास्त्रीय संगीत भी सीखा और ठुमरी, भजन, कजरी, चैती और रवीन्द्र संगीत में भी प्रभावी अभिव्यक्ति के गुण प्राप्त किए।

डॉ. कमला शंकर ने प्रयांग संगीत समिति से बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के डॉ. गोपाल शंकर मिश्र के मार्गदर्शन में डॉक्टरेट की उपाधि भी प्राप्त की। आकाशवाणी एवं दूरदर्शन के राष्ट्रीय प्रसारण में वे लगभग दो दशकों से प्रस्तुति देने वाली एक महत्वपूर्ण कलाकार हैं। देश-दुनिया के प्रतिष्ठित संगीत आयोजनों में आपने माधुर्य प्रदान करने वाले अपने गरिमापूर्ण वादन से सुधि श्रोताओं और रसिकों को अत्यन्त प्रभावित किया है। डॉ. कमला शंकर को अब तक अनेक मान-सम्मान और पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है जिनमें सुर सिंगार संसद, मुम्बई से सुरमणि की उपाधि, कलाश्री सम्मान, सारस्वत सम्मान आदि शामिल हैं। आडियो संगीत की प्रतिष्ठित कम्पनियों ने आपके गिटार वादन के अनेक अलबम भी जारी किये हैं। 





2 टिप्‍पणियां:

shashiprabha.tiwari ने कहा…

jitni achchi kalakar utni hi achchi rachna ki hai, Sunilji aapko kotishah dhanayavad

सुनील मिश्र ने कहा…

abharee hoon aapka shashi jee.