सोमवार, 29 अप्रैल 2013

नरसिंहगढ़ की आंचलिकता

नरसिंहगढ़ भोपाल से अस्सी किलोमीटर दूरी पर है। ऐतिहासिक जगह, किला, विरासत, मन्दिर, सरोवर बहुत कुछ। दो दिन वहाँ जाने के योग बने, कल रात वहीं थे देर तक, नरसिंहगढ़ महोत्सव के माहौल में। आयोजन स्थल मेले के रूप में था, स्कूल ग्राउण्ड था, बरसों बाद वे सब दुकानें दिखीं जो बचपन में स्कूल के आसपास लगा करती थीं, जैसे उबले मसालेदार बेर और इमली का ठेला, धोयी-तौली-काटी और खिलायी जाती ककडि़याँ, उबले बेर और ककडि़यों में बड़े मटमैले प्लास्टिक के डिब्बे से जब नमक-मिर्च गिरायी जाती, इधर अपनी भी लार बहने लगी, सब खाया, सोचा तबियत खराब होगी तो देखा जायेगा पर अभी तो खाओ बाबू.................उबले बेर बड़े चटाखेदार, पाँच रुपए में बहुत सारे मिल गये, मैदान घूम-घूमकर खाये....................

दस-बारह चाट, पानी पूरी के ठेले भी थे, पापड़ भी एक तल कर बेच रहा था, किसी एक ने भेल का भी ठेला लगाये था, सभी की अपनी आंचलिकता, यहाँ भी मन किया कि चाट के हर ठेले का पानी टेस्ट करेंगे, दो-दो फुल्की खायीं सब जगह, कुल शायद पन्द्रह-बीस..............ज्यादातर दुकानों में पानी अपनी कानखोलू खटास के साथ था, मजा आया, हमारे एक मित्र अमूमन चाट के ठेले-ठिलियाओं को देखकर हैजे वाली चाट का नाम देते हैं, हमने सोचा होता हो तो हो जाये, अपन अभी तो खाओ.................

ये जिन्दगी के दुर्लभ आनंद हैं, जमीन पर बने रहकर इनका मजा लेना, लुत्फ उठाना अच्छा लगता है, ऐसे अवसर अपन कभी नहीं छोड़ते................और हाँ महाराजी(मिठाई खाने को हमारे एक अग्रज ने महाराजी का विशेषण दिया था, बरसों पहले तभी से) का तो बताया नहीं, मिष्ठान की दुकान भी ढूँढ़ निकाली, मावे की मिठाइयों की सजी ट्रे ने उकसाना शुरू किया, दुकानदार ने कहा, बंगाली मिठाई ले लीजिए, दूध की है, एकदम ताजी, मैंने कहा पहले सौ ग्राम बरफी दो ये बादामी सी................शायद कुछ दिन की बनी हुई, वो खायी उसके बाद वो बंगाली मिठाई भी......................

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