सोमवार, 29 अप्रैल 2013

घरौंदे के शिल्पी

जोखिम के विरुद्ध जिन्दगी का विस्मयकारी फलसफा कभी-कभी देखने को मिलता है। कुछेक दिन से यही कुछ देख रहा हूँ। देश-दुनिया में बड़ी-बड़ी अट्टालिकाएँ, बहुमंजिला इमारतें, बंगले और फ्लैट बन रहे हैं। मेरे घर के सिरहाने पर भी गैमन इण्डिया का निर्माण कार्य द्रुत गति से चल रहा है, रात में तमाम आवाजें और उनसे उपजे व्यवधानों से जाग जाया करता हूँ।

बहरहाल इतने बड़े-बड़े कामों के परस्पर ही एक अनुपम घटना को अपने सामने घटित होते हुए देख रहा हूँ। वास्तव में आकर्षण ऐसा है कि मेज और रखे कम्प्यूटर पर काम रोककर उसे देखकर बड़ा सुख महसूस होता है। देखते हुए समय इतना अच्छा बीत जाता है कि पता ही नहीं चलता। यह घटना है एक चिडि़या जोड़े का कुछ दिनों से पास ही बाहर के दरवाजे से लगे बिजली के मीटर के ऊपर घोसला बनाने के काम का। इनकी चहचहाहट ने कुछ दिन से करते हुए काम से ध्यान हटाने का पुनीत उपक्रम किया है।

सुबह से लगभग दस-ग्यारह बजे तक मैं यह सब देखता हुआ आनंदित होता हूँ। चिडि़या अक्सर अपना घोसला बिजली के जानलेवा मीटर के सिर पर ही बनाती है, पता नहीं यह किस तरह का आकर्षण है, यहाँ भी देख रहा हूँ। घास के एक-एक तिनके लाने का काम सुबह से शुरू होता है। पहले दोनों साथ जाया करते थे, थोड़ी देर में चोंच में घास का तिनका दबाये आते और बैठकर पीछे की तरफ खोंसते, फिर चले जाते, फिर जरा देर में उसी तरह आते। यह क्रम कुछ दिनों चलता रहा। अपने काम में वे बड़े एकाग्र और जीवट के साथ जुटे हैं, इतने कोमल और छोटे पंछी बड़े नाजुक भी होते हैं, उन्हें देखकर वैसा ही अनुराग मन में हुआ करता है।

चार-पाँच दिन पहले देखने में आया कि चिडि़या अकेली उड़कर जाती है और तिनका उठाकर, ले आकर घोसले को पूरा करती है, उसका जोड़ीदार मीटर के ऊपर निगरानी की मुद्रा में है। एक-दो बार में यह भी हुआ कि आते-जाते चिडि़या ने अपना काम हल्काकर उससे चहचहाकर कुछ बात भी की, उत्तर भी पाया, फिर उड़ गयी। एक-दो बार यह भी हुआ कि वो अपने साथ अपने संगी को भी लेकर तिनके खोजकर लाने के लिए गयी।

आज सुबह मुझे मीटर के पीछे दूर से घास का जो ढेर जमा-जमाया नजर आया उससे लगा कि उनका घर अब करीब-करीब पूरा हो गया है। हालाँकि अभी भी अकेली चिडि़या पुरुषार्थ में लगी है, उसका संगी उसके काम का अवलोकन कर रहा है, कुछ जरूरी हस्तक्षेप भी जो उसे जरूरी लगते हैं। मन में कल्पना होती है कि कुछ दिन बाद चिडि़या अपना आना-जाना बन्द करेगी तब बाहर की दौड़-भाग, सुरक्षा, भोजन आदि की जवाबदारी उसके संगी सम्हालेंगे। एक दिन चिडि़या प्यारे-प्यारे अण्डे देगी और कुछ दिन बाद उनके भीतर से जीवन का संगीत गूँजेगा। नन्हें बच्चे चहचहायेंगे और मद्धिम, न थमने वाला एक मनभावन कोरस सुनायी देगा।

घर आते-जाते वह घोसला आकर्षण बन गया है, चिडि़या और उसके संगी हम सबसे जरा भी बाधित नहीं होते। शायद वे समझते होंगे या कहीं न कहीं संवेदना के धरातल पर उनकी चिन्ताएँ या आग्रह उन्हें हम तक स्वतः सम्प्रेषित महसूस होते होंगे। मैं थोड़ा अतिरिक्त सजग होता हूँ करुणा के स्तर पर और बिल्ली आदि से बचाव के लिए खुद को तैयार भी करता हूँ।

ऐसी दुनिया जिसमें हम रहते हैं, पता नहीं क्या कुछ चल रहा है, मित्र पूछते हैं, क्या चल रहा है, पता करते हैं, और क्या खबर, चल रहा है जो और खबर है जो वो अब सब चैनलों के हवाले है। इधर अपनी दिनचर्या में नितान्त औपचारिकताओं से सुबह जागना और औपचारिकताओं के ही आदान-प्रदान में शाम का हो जाना बहुत सारी निराशाएँ देता है। ऐसे में ये नन्हें, नव-दम्पत्ति प्यारे पक्षियों की दुनिया में रोज कुछ समय काटना वास्तव में जिन्दगी से बड़े अनुराग के साथ रूबरू होने की तरह महसूस होता है.............प्रकृति की यह अनुपमा सचमुच विलक्षण है......................

कोई टिप्पणी नहीं: