हर बार यही होता है कि जुल्फें जरूरत से ज्यादा बढ़ जाती हैं और उन पर कैंची चलवाने का मौका मुश्किल से आता है। इधर दो-तीन दिन से सुबह बड़े अवसर थे मगर अपनी अलाली और शिथिलताओं से गँवाते रहे। इतवार फिलहाल आखिरी मौका था। मैं यथासम्भव मैले और गन्दे कपड़े पहनकर उसकी दुकान पहुँचा तो उसको सामने एकदम फुरसत में पानी पीते हुए खड़ा देखकर एक्टिवा से ही कूद जाने को हुआ। सेठ है अपनी दुकान का। बहुत व्यस्त रहता है और हर कोई उसी से बाल कटवाना चाहता है। मुझे लगा, ऐसा न हो गाड़ी खड़ी करने से लेकर उसके पास जाने के बीच, बीच से कोई आ जाये और अपना नम्बर लगा दे। बहरहाल ऐसा हुआ नहीं और मैं भी गाड़ी में लदे-लदे ही चिल्ला दिया, पप्पू भाई, अपना नम्बर।
मुझे देखकर या मेरी बात से उसे जैसे कोई खुशी नहीं हुई, वह वाकई फ्री था सो अनौपचारिक रूप से मेरे ही अनुसरण में दुकान में अन्दर चला आया और कहने लगा, कल नहीं आये, इन्तजार करता रहा? मैंने कहा, कल कब आने वाले थे, हमने तो नहीं बताया। वह बोला, संजू भैया आये थे, वो कह रहे थे। मैंने कह दिया, मजबूरी में उत्तर दिया होगा, तुमने उनसे पूछा होगा, यह सोचकर कि कहीं और से तो हम बाल नहीं कटवा रहे। इस पर तम्बाखू खाया पप्पू ही ही करने लगा, नहीं भाई साहब, ऐसी बात थोड़े ही है।
उसने कोने की कुरसी पर मुझे बैठने का इशारा किया और इसी बीच उसके दो आशिक आ गये जो जिद करने लगे, चलो यार, चलो यार, पहले मुझे निपटा दो, मेरे बाल काट दो। उनकी छीना-झपटी के बीच पप्पू ने मेरी ओर इशारा किया, भाई साहब बैठे हैं, इनके बाद ही। मुझे पप्पू के इन्साफ पर गर्व हुआ। दूध का दूध, पानी का पानी। वे पीछे बैंच पर बैठ गये और सामने कोने पर रखे छोटे से रंगीन टीवी में नरेन्द्र चंचल के भजन देखने लगे, इधर पप्पू मुझे ओढ़ा-ढँपाकर शुरू हो गया। बीच में उसका एक नौकर आया, उसको उसने आड़े हाथों लिया, क्यों क्या चक्कर चल रहा है तेरा, सुबह पानी गरम होता रहा और तूने स्विच बन्द नहीं किया, क्या बात है, कोई माशूका पाल ली है क्या? मैं पप्पू का चेहरा शीशे में देखते हुए मुस्कुराया तो कहने लगा, हाँ भाई साहब या तो माशूका आ जाये या उधारी हो, तभी आदमी का दिमाग उलझा रहता है। मुझे लगा इसके दर्शन पर गौर करूँ, फिर सोचा, नहीं गर्व करना ठीक होगा।
बीच में पप्पू से मैंने एक परामर्श भी लिया। मैंने उससे कहा, पिछले दिनों बहन तोहफे में एक बड़ा सा डिब्बा झाग वाली शेविंग क्रीम का दे गयी है, जिन्दगी में कभी देखा नहीं, लगाकर दाढ़ी बनाना तो दूर की बात, कैसे उसका उपयोग करूँ? तब उसने सामने ही शो-केस में रखे उसी तरह के डिब्बे को उठाकर, मुझे प्रशिक्षित किया, पहले गालों में पानी लगाऊँ, फिर डिब्बे को शेक करूँ, थोड़ा हथेली में रखूँ और हल्के-हल्के रगड़कर झाग उठाऊँ, थोड़ी देर बाद दाढ़ी मुलायम हो जायेगी तब रेजर से काट लूँ। नासमझ विद्यार्थी की तरह मैंने पूरा सुना फिर समझ आ जाने वाली समझदारी के साथ उसे यह एहसास भी कराया कि जान गया हूँ।
इस बीच पप्पू ने एक बार बाल काटते हुए आधा काम छोड़कर बाहर जाकर चाय भी पी। तम्बाखू भी फटकार कर खायी और मुझे एक काम भी सौंपा, कहा इस बार मुम्बई जाऊँ तो उससे मिलकर जाऊँ क्योंकि वहाँ क्राफर्ड मार्केट में नाक के बाल कुतरने की छोटी सी इलेक्ट्राॅनिक मशीन मिलती है, वह लेकर जरूर आऊँ। मैंने उससे पूछा, जोखिम भरा उपकरण तो नहीं है, नाक के बाल कुतरने के बजाय अराजक हो जाये तो नाक ही उधेड़ दे, इस पर पप्पू ने कहा नहीं भाई साहब, विदेशी है, एकदम शानदार।
इधर पीछे दो ग्राहक कसमसाकर पप्पू को खूब जल्दी से फ्री होने को कह रहे थे लेकिन पप्पू ने आज पूरी तसल्ली से मुझे महीने-पन्द्रह दिन लायक बना दिया। सब वादे और तमाम शुक्रिया के बाद जब मैं उसके सैलून से बाहर निकला, तो सच कहूँ, बड़ा अच्छा लग रहा था। पप्पू है तो सिर शेप में है, वाकई....................
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें