शनिवार, 20 जून 2015

हृषिकेश मुखर्जी का सिनेमा : सांझ और सवेरा (1964)

जीवन में हर सांझ के बाद सवेरा होता है



हृषिकेश मुखर्जी का सिनेमा देखते हुए यह बात गौर करने की होती है कि उनके साथ अपने समय के लगभग सभी बड़े नायकों ने काम किया था। नायिकाएँ भी प्रायः सभी उनकी फिल्मों में नजर आती हैं। सांझ और सवेरा में गुरुदत्त और मीना कुमारी ने प्रमुख भूमिकाएँ निभायी हैं। मेहमूद, हृषिकेश मुखर्जी के मित्र रहे हैं, वे बीवी और मकान में भी आगे चलकर नजर आये और इस फिल्म में भी उनको अच्छी सकारात्मक भूमिका देते हुए निर्देशक ने उत्तरार्ध की फिल्म का उनको एक तरह से केन्द्र बिन्दु ही बना दिया है। 

यह फिल्म एक सहृदय वकील मधुसूदन, मनमोहन कृष्ण की उदारता से शुरू होती है जो अपने दिवंगत मित्र की अकेली बेटी गौरी मीना कुमारी को अपने साथ शहर ले आता है और अपनी बेटी की तरह ही उसे घर में जगह देता है। उनके साथ उनका भांजा प्रकाश मेहमूद उनके साथ ही रहता है जिसे संगीत का बेहद शौक है और हर समय वह गाने-बजाने का रियाज किया करता है। उसकी अपनी एक बेटी माया, जेब रहमान है जो दिल्ली में पढ़ रही है लेकिन उसका मन पढ़ने में न होकर अपने प्रेमी रमेश के साथ सपने बुनने में है। पे्रमी के मन में खोट है यह उसे नहीं पता। उसके पिता वकील उसकी शादी एक डाॅ. शंकर से तय कर देते हैं। जब माया अपने पिता के घर आती है और यह जानती है कि उसकी शादी की तैयारी है तो वह अपने प्रेमी को खत लिखकर उसके साथ चले जाने और शादी की योजना बनाती है। शादी को लेकर ही पिता-बेटी में विवाद होता है। पिता नहीं मानते और शादी का दिन नजदीक आ जाता है। इधर गौरी ने मधुसूदन के घर में अपने व्यवहार से सबका दिल जीत लिया है। वह उनसे उपकृत भी महसूस करती है। 

जिस रात शादी होने को होती है, फेरे लेते वक्त माया चक्कर आने का बहाना करके गिर जाती है और रात को सभी को बताये बिना अपने प्रेमी के साथ भाग जाती है। हालाँकि रास्ते में उसे अपने प्रेमी की नीयत का पता चलता है लेकिन तभी उनकी गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है जिसमें प्रेमी की मौत हो जाती है और वह गम्भीर घायल होकर अपनी याददाश्त खो बैठती है। उसका इलाज उसी अस्पताल में चल रहा है जहाँ शंकर डाॅक्टर है। इधर अपनी बेटी के भाग जाने से व्यथित वकील मधुसूदन बेहोश हो जाते हैं और उनकी तबियत ज्यादा खराब हो जाती है। प्रकाश स्थिति सम्हालने के लिए गौरी से माया की जगह डाॅ. शंकर की दुल्हन बनकर चले जाने को कहता है। वह मना करती है लेकिन वकील के उपकार में दबी गौरी अन्त में यह बात स्वीकार कर लेती है।

गौरी, शादी की पहली रात ही डाॅ. शंकर चैधरी को अपने व्रत की बात कहकर कुछ दिन अपने से दूर रहने की प्रार्थना करती है। इधर वकील बनारस जाकर रहने लगते हैं। डाॅ. शंकर और गौरी, वकील से मिलने बनारस जाते हैं वहीं वकील के कहने पर मन्दिर में उनका विवाह फिर होता है। अब गौरी, शंकर को अपना पति मानती है। उनके दिन अच्छे व्यतीत हो रहे होते हैं लेकिन एक दिन सारे रहस्यों का एक-एक करके खुलासा होने लगता है, शंकर को पता चल जाता है कि जिसे वो माया समझ रहा था वह गौरी है। वह मानता है कि उसके साथ धोखा हुआ है। प्रकाश, गौरी को बहन की तरह मानता है, वह गर्भवती गौरी को लेकर परेशानियाँ दूर होने तक अलग ले जाकर रहने लगता है जिस पर उसे भी लांछित किया जाता है। अन्त में वकील डाॅ. शंकर को पूरी बात बताते हैं और सच सामने आता है। शंकर, गौरी से अपने किए की माफी मांगता है और अपने साथ ले आता है। प्रकाश, राधा से प्रेम करता है, उसके जीवन में वह आ जाती है। फिल्म पूरी होती है।

इस फिल्म की कहानी जगदीश कँवल की लिखी हुई है। उन्होंने ही संवाद भी लिखे हैं। पटकथा पर तीन लेखकों ध्रुव चटर्जी, डी. एन. मुखर्जी और अनिल घोष ने काम किया है। सांझ और सवेरा फिल्म की कहानी को नाम से इस कामना के साथ जोड़ा गया है कि जीवन में हर सांझ के बाद सवेरा होता है। एक तरफ एक सहृदय वकील मित्र है जो मित्र की अकेली हुई बेटी को अपने घर ले आता है और बड़े दिल के साथ कहता है, बेटी ये सारा घर तुम्हारा है दूसरी तरह गौरी है जो इस उदारता से उपकृत है और अपनी जिन्दगी के साथ एक बड़ा समझौता करती है। मनमोहन कृष्ण अपनी इस भूमिका को मन को छू जाने वाली क्षमताओं के साथ निबाहते हैं। एक डाॅक्टर है जो भावुक है और थोड़ी-बहुत नैतिकताएँ भी साथ लेकर चलता है, जैसे एक फीस देने वाले से कहता है कि वो विधवा से पैसे नहीं लेता। जिद करने पर वह पैसा ट्रस्ट में जमा कर देने की सलाह देता है। एक मुँहबोला भाई है, मामा के यहाँ रहता है, संगीत की धुन है, स्वभाव से फक्कड़ है मगर संवेदनाओं से भरा हुआ। मेहमूद अपनी इस भूमिका में कमाल करते हैं। वह दृश्य बहुत भावनात्मक है जब खाने के लिए कुछ न होने पर गौरी के हार बेच देने पर वह शहर में गाना गाता निकल जाता है और सब उसे मांगने वाला समझकर पैसे देते हैं। मेहमूद पर अजहुँ न आये बालमा, सावन बीता जाये गाना, शुभा खोटे के साथ फिल्माया गया है, फिल्म का कर्णप्रिय गीत है जो मोहम्मद रफी और सुमन कल्याणपुर के स्वर में है। वहीं गुरुदत्त और मीना कुमारी पर फिल्माया यही है वो सांझ और सवेरा भी बहुत प्रभावित करता है। इसमें रफी के साथ आशा भोसले का स्वर भी शामिल है। लता मंगेशकर के स्वर में मनमोहन कृष्ण मुरारी भी बहुत खूबसूरत गाना है। शैलेन्द्र और हसरत जयपुरी ने गाने लिखे हैं और शंकर-जयकिशन ने फिल्म का संगीत दिया है। जयवन्त पाठारे ने सिने-छायांकन किया है। 

यह फिल्म प्रमुख रूप से मूल्याें, उपकार, नैतिकता और सहनशीलता की बात एक मर्मस्पर्शी कहानी के माध्यम से कहती है। इसमें अनावश्यक दृष्टान्त नहीं है और न ही किसी तरह का घुमाव-फिराव। हृषिकेश मुखर्जी वैसे भी कहानी को अगले प्रसंगों और दृश्यों की रोचकता से बखूबी जोड़ते रहे हैं, सांझ और सवेरा में भी वही शैली का प्रयोग उन्होंने किया है। फिल्म में गुरुदत्त की भूमिका अपनी जगह सीमित है। उनके चरित्र में उस तरह की विशेषता नहीं दिखायी गयी जो परिस्थितियों के अनुरूप उनको उनकी दक्षता के साथ निखार सके। इसमें मीना कुमारी ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया है। वे त्रासदी को जीते हुए गहरी व्यथा और परेशानी के भाव बहुत गहराई के साथ व्यक्त करती हैं वहीं विवाह के बाद के एक प्रसंग में जब वे अपने पति को अपनी बीमारी के बहाने से घर बुला लेती हैं, उस वक्त उन पर फिल्माया गाना उनके रूमानी मनोभावों को सुन्दरता के साथ व्यक्त करता है। मेहमूद के साथ शुभा खोटे की जोड़ी है। राधा शुभा खोटे के मामा के रूप में हरेन्द्रनाथ चटोपाध्याय छोटी मगर दिलचस्प भूमिका में हैं। फिल्म का सम्पादन दास धैमादे ने किया है। अपनी जगह फिल्म सधी हुई है, स्वाभाविक है, हृषिकेश मुखर्जी ने भी एक सम्पादक की तरह भी फिल्म पर ध्यान रखा है। मध्यान्तर के बाद यह फिल्म मेहमूद के अच्छे और मन को छू जाने वाले अभिनय के कारण भी जोड़े रखती है, उन्होंने यह चरित्र अपने विलक्षण हास्य-हुनर के साथ निभाया है। 

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