गुरुवार, 18 जून 2015

हृषिकेश मुखर्जी का सिनेमा : बीवी और मकान (1966)

और दोस्तों में कोई एहसान नहीं होता.... 



बीवी और मकान एक सरल सी हास्य फिल्म है और इसे बनाया भी बेहद सहजता के साथ गया है। महानगरीय जीवन में रोजी-रोटी की आपाधापी, घर का सपना और घर बसाने का ख्याल तथा इन सबके बीच आने वाली मुश्किलों को दिलचस्प ढंग से प्रस्तुत करने का काम हृषिकेश मुखर्जी ने बतौर निर्देशक किया है। उन्होंने शैलेष डे की कहानी को फिल्म का आधार बनाया और हास्य कलाकारों के साथ इस फिल्म को रचा जिनमें मेहमूद, केश्टो मुखर्जी, विश्वजीत, आशीष कुमार आदि शामिल हैं। बीवी और मकान सितारा सजी फिल्म न होने के बावजूद अपनी सुरुचि को नहीं खोती और आकर्षण बना रहता है। गायक, संगीतकार हेमन्त कुमार ने अपने दायित्वों को निबाहते हुए इस फिल्म के निर्माण का बीड़ा भी उठाया था।

बीवी और मकान पाँच दोस्तों की कहानी है जो विभिन्न जगहों से मुम्बई आकर एक साथ रह रहे हैं। इनमें एक गाँव-देहात में अपनी ब्याहता को माता-पिता की सेवा में छोड़ शहर में नौकरी कर रहा है। दूसरा चित्रकार है। तीसरा एक अच्छा गायक है। चैथा नौकरी की तलाश कर रहा है और पाँचवा अपनी सेहत बनाया करता है। सबमें आपस में खूब प्रेम है और वे हमेशा साथ रहना चाहते हैं। अब तक वे जिस छोटे से लाज में रह रहे थे, उसका मालिक एक दिन उन सबको भगाने में सफल हो जाता है। वे एक दूसरा घर किराये पर लेते हैं मगर बुजुर्ग बीमार मकान मालिक की एक अजीब सी शर्त में फँस जाते हैं जिसमें उसका आग्रह यह होता है कि वह विवाहितों को ही घर किरायेपर देना चाहेगा। मित्रों का नेतृत्व करने वाला पाण्डे मेहमूद एक युक्ति निकालता है, अपने दो मित्रों अरुण विश्वजीत और किशन केश्टो मुखर्जी को औरत बनने के लिए प्रेरित करता है। इसके बाद औरत बने केश्टो को अपनी तथा विश्वजीत को चित्रकार शेखर आशीष कुमार की पत्नी बताकर मकान मालिक के सामने प्रस्तुत होता है। उनको रहने के लिए घर मिल जाता है लेकिन कुछ समय बाद उनके लिए इस झूठ का निर्वाह कर पाना मुश्किल हो जाता है। 

दोनों औरत बने उनके साथी तंग हो जाते हैं। इधर मकान मालिक की बेटी गीता कल्पना और भांजी लीला शबनम आ जाती हैं। वे औरत बने दोनों से मेलजोल बढ़ाती हैं लेकिन औरत बना अरुण गीता को चाहने लगता है और शेखर लीला से प्रेम करता है लेकिन परिस्थितियों के चलते वे जाहिर नहीं कर पाते। वे कुछ युक्ति करते हैं। पहले पाण्डे, औरत बने केश्टो और अरुण को मायके भेज देने का चक्कर चलाता है फिर औरत बने अरुण की मायके में मौत की खबर फैलाता है। इसी बीच गाँव से पाण्डे के पिता का नौकर उसको मिलने आता है तो उसकी पत्नी बने केश्टो को देखकर चकरा जाता है, लौटकर उसके पिता को बताता है। इस पर पिता अपने विवाहित बेटे के शहर में फिर ब्याह कर लेने की बात पर आगबबूला होकर उसकी पिटायी करने शहर पहुँचता है। जब पाँचों दोस्त बुरी तरह से उलझ जाते हैं तो फिर पाण्डे सब सच्चाई बतला देता है। फिल्म पूरी होती है। 

बीवी और मकान फिल्म का प्रस्तुतिकरण बिना किसी अतिरेक के जिन्दगी की बहुत सी बातों को सादगीपूर्वक स्थापित करता है। मसलन ऐसे समय और समाज में जब दोस्ती में संवेदना और अपनत्व का संकट खड़ा रहता हो, पाँच दोस्त एक कमरे में भी रहने को तैयार हैं मगर एक-दूसरे का साथ नहीं छोड़ना चाहते। इसी तरह बेरोजगार दोस्तों के गिरते मनोबल और निराशा को सम्हालने के लिए सब मिलकर तैयार हो जाते हैं। संगत में कोई उदास नहीं रह सकता। आपस में सबके स्वभाव अलग-अलग हैं पर कोई विरोधाभास नहीं है। एक-दूसरे की ताकत और कमजोरी दोनों को सब मिलकर समझते हैं और जिन्दगी में हार नहीं मानना चाहते। फिल्म में घूम-घूमकर किराये के मकान की तलाश करने, होटल मालिक के क्षुद्र से षडयंत्र और उसको सबक सिखाने का तरीका, दो मित्रों को औरत बनने के लिए राजी करना और आखिरी में व्यर्थ के तमाम सन्देहों से घिर जाने वाले प्रसंग दिलचस्प हैं। 

यों तो यह फिल्म पूरी तरह मेहमूद के हाथ में रहती है लेकिन बड़ी के रूप में औरत बने केश्टो मुखर्जी और छोटी के रूप में औरत बने विश्वजीत ने खूब अच्छे से फिल्म को रोचक बनाया है। विश्वजीत का औरत के वेश में लोच-लचक के साथ चलना, स्त्री आवाज में बात करना और खास बात सुन्दर दिखना बहुत असरदार है वहीं केश्टो औरत बनकर अजीब सी बदहवासी का परिचय देते हैं। दोनों का मित्रों के बीच उसी भेस में बैठकर सिगरेट पीना, सिर खुजाने के लिए नकली बाल सिर से हटा लेना खूब हँसाता है। किशन केश्टो मुखर्जी जो बड़ी अर्थात पाण्डे की पत्नी बना है, को मकान मालिक की पत्नी बच्चा न होने के कारण गण्डा आदि बांधती है, वह दृश्य भी हास्य पैदा करता है। इस फिल्म में कल्पना और शबनम दो नायिकाएँ हैं। दोनों ही अपने नायकों के बीच घालमेल का शिकार हैं मगर उनको सच की जानकारी नहीं है इसलिए उनका बेवकूफ बनना फिल्म के आनंद को बढ़ाता है। इसके अलावा पाण्डे मेहमूद की देहाती बीवी के रूप में गाँव में रहने वाली पद्मा खन्ना ने भी अच्छा काम किया है। 

मेहमूद के पिता की भूमिका निभाने वाले कलाकार का परिचय नहीं है, वह तो अपनी उपस्थिति के दृश्यों में सहज अदायगी के कारण आप दृश्य में बने रहते हैं। फिल्म में हृषिकेश मुखर्जी की फिल्मों के चिर-परिचित कलाकार ब्रम्ह भारद्वाज और बिपिन गुप्ता भी मकान मालिक मिश्रा और होटल मालिक की भूमिकाओं में नजर आते हैं। बीवी और मकान में खूब गाने हैं और खूब गायकों की भागीदारी है, मोहम्मद रफी, मुकेश, तलत मन्नाडे, हेमन्त कुमार, लता, आशा, ऊषा मंगेशकर आदि। सभी गानों में परिस्थितियाँ हैं, विडम्बनाएँ हैं, मुसीबतें हैं। इन गानों की रचना गुलजार ने की है। इस फिल्म के संवाद राजिन्दर सिंह बेदी ने लिखे हैं, पटकथा सचिन भौमिक की है। सिने-छायांकन टी. बी. सीताराम ने किया है। हृषिकेश मुखर्जी ने इस मनोरंजक फिल्म का निर्माण अनुपमा को बनाते हुए साथ-साथ किया था। फिल्म में वे एक दृश्य में पाण्डे मेहमूद से रूबरू भी होते हैं जब वो शहर में गाना गाते हुए मकान ढूँढ़ रहा होता है। बड़ी सफलता न मिलने के बावजूद दर्शकों में इस फिल्म को पसन्द किया गया था। 

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