शनिवार, 23 नवंबर 2013

रंगमंच, गिरीश कर्नाड और उत्सव


वे दरअसल अपने को अपनी सम्पूर्ण सृजनात्मक समग्रता में रंगकर्मी कहाना ही पसन्द करते हैं इसलिए विख्यात रंगकर्मी गिरीश कर्नाड बावजूद सिनेमा में अपनी बड़ी प्रतिष्ठा के रंगमंच की अपनी दुनिया में ही लीन रहते हैं। उनका बड़ा समय अध्ययन में व्यतीत होता है। अभी पिछले ही साल बरसों बाद वे यशराज फिल्म्स की एक था टाइगर में दिखायी दिए थे तब भी उन्होंने अनौपचारिकता में यही कहा था कि सिनेमा को लेकर बात नहीं करना चाहता। वास्तव में उनका संसार रंगमंच है, सक्रियता रंगकर्म है। फिल्मों को लेकर उनके मन में स्वतः कोई आकर्षण नहीं है, वे अधिक सशक्त माध्यम और विशेषकर जो उनको रचनात्मक संतृप्ति दे, रंगमंच में अपनी सन्तुष्टियाँ और बहुधा असन्तुष्टि भी तलाश करते हैं।

लेकिन हाल ही में सुखद विस्मय तब हुआ जब गिरीश कर्नाड नई दिल्ली में एक बड़े समारोह में मुख्य वक्ता के रूप में एक लम्बा उद्बोधन देने जिस विषय पर आये वह सिनेमा से ही जुड़ा हुआ था। उन्होंने भारतीय सिनेमा और राष्ट्र निर्माण पर एक लम्बा उद्बोधन दिया। उन्होंने इस बात को कहा कि हिन्दी सिनेमा ने अपनी स्वाभाविक गति और प्रभाव से राष्ट्र निर्माण के काम में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। यह दिलचस्प था उनका कहना कि भारतीय सिनेमा में गीत और संगीत की वो शक्ति रही है कि उसने हमारे यहाँ हॉलीवुड को निष्प्रभावी बनाये रखा। वे यह मानते थे कि हमारी फिल्मों में गीत-संगीत और नृत्य का होना अहम था। यदि हम महान फिल्मकार सत्यजित रे की तरह बिना गानों की फिल्में बनाते रहते तो हॉलीवुड का वर्चस्व यहाँ स्थापित हो जाता। इसके पक्ष में वे कहते हैं कि हॉलीवुड के प्रभाव के कारण ही इतालवी सिनेमा, फ्रांसीसी सिनेमा और जापानी सिनेमा अपनी खूबियों और श्रेष्ठताओं के बावजूद अपने अस्तित्व के साथ दिखायी नहीं देता।

गिरीश कर्नाड भारतीय सिनेमा की सफलता-विफलता की तुलना पश्चिमी सिनेमा की सफलता-विफलता से करना उचित नहीं मानते। ऑस्कर को लेकर हमारे यहाँ पायी जाने वाली ललक को भी उन्होंने व्यर्थ बताया और कहा कि हमारे लिए वह कोई मील का पत्थर नहीं है। हिन्दी सिनेमा के वजूद को ज्ञानपीठ सम्मान और पद्मभूषण से सम्मानित गिरीश कर्नाड ने सकारात्मक रूप से अपने विचारों के साथ समर्थन दिया और कहा कि इसके माध्यम से हिन्दी गैर हिन्दी भाषी क्षेत्रों तक पहुँची है।

अनेक महत्वपूर्ण नाटकों के रचयिता और निर्देशक गिरीश कर्नाड को हिन्दी क्षेत्र के दर्शक फिल्म स्वामी से पहली बार जान पाये जिसका निर्माण जया चक्रवर्ती, हेमा मालिनी की माँ ने किया था। इस फिल्म में शाबाना आजमी ने भी प्रमुख भूमिका निभायी थी। हिन्दी की कई फिल्मों में उन्होंने अभिनय किया जैसे श्याम बेनेगल की निशान्त, भूमिका, मंथन और सम्सकारा, उम्बरठा, सुर संगम, चेलुवी, इकबाल आदि अनेक। गिरीश कर्नाड ने सत्यदेव दुबे, श्यामानंद जालान, इब्राहिम अल्काजी, विजया मेहता, अमाल अल्लाना, ब.व. कारंत के साथ अपनी रंगयात्रा में अनेक महत्वपूर्ण स्थापनाएँ की हैं। कर्नाड ने ही शशि कपूर के लिए क्लैसिक एपिक मृच्छकटिकम पर केन्द्रित फिल्म उत्सव का निर्देशन किया था। इस फिल्म के निर्माण को इस साल बीस वर्ष पूरे हुए हैं।

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