कोई होता जिसको अपना, हम अपना कह लेते यारों, पास नहीं तो दूर ही होता, लेकिन कोई मेरा अपना, गाना किशोर कुमार ने बड़े गम्भीर भाव से गाया है। यह एक उपेक्षित और कमोवेश परिवेश से एकतरहा स्थगित से व्यक्ति का अन्त:संलाप है। मेरे अपने (1971) फिल्म में यह गाना विनोद खन्ना पर फिल्माया गया था। यह जानना दिलचस्प है कि इस फिल्म के दो मुख्य सितारे विनोद खन्ना और शत्रुघ्र सिन्हा, दोनों के कैरियर की शुरूआत नकारात्मक भूमिकाओं से हुई थी लेकिन दोनों ही आगे चलकर सकारात्मक भूमिकाएँ करते हुए नायक बनकर फिल्मों में आने लगे।
मेरे अपने, गुलजार की फिल्म है। वे महान फिल्मकार स्वर्गीय बिमल राय के सहायक रहे हैं। गुलजार की शुरू की फिल्मों की बुनावट में बिमल दा के सिनेमाई सृजन के हल्के प्रभाव रह-रहकर नजर आते रहे। हालाँकि मेरे अपने में ऐसा कोई प्रभाव दिखायी नहीं देता क्योंकि उसको गुलजार ने सचमुच अपनी पहली फिल्म की तरह ही कुछ जोखिम रचकर खड़ा किया था। यह फिल्म छेनू और श्याम नाम के दो ऐसे युवकों की कहानी है, जो कभी आपस में दोस्त थे मगर अब एक-दूसरे की जान के दुश्मन। कॉलेज का माहौल है। अराजकता है। नियंत्रण के बाहर स्थितियाँ हैं। अनुशासनहीन युवाओं ने छेनू और श्याम के साथ अपने को बाँट लिया है और हर वक्त एक-दूसरे को सबक सिखाने का मौका देखा करते हैं।
यहीं एक बुजुर्ग स्त्री का किरदार है, जिसको एक शहरी अपने घर भ्रामक रिश्तों का हवाला देकर ले आता है और घर पर नौकरानी से बदतर जिन्दगी देता है। एक दिन प्रताडऩा से तंग यह स्त्री उस घर को छोडक़र बाहर आती है तो एक छोटा बच्चा उसे श्याम के पास ले आता है। श्याम के अड्डे पर यह स्त्री सबकी नानी माँ हो जाती है। नानी माँ इन युवकों से हमेशा बुरे रास्तों को छोड़ देने की बात कहती है। बढ़ते झगड़ों में एक दिन जब छेनू और श्याम आमने-सामने होते हैं, छेनू की पिस्तौल से नानी माँ की मौत हो जाती है।
नानी माँ की मौत बड़े सवाल खड़े करती है। अराजक और गुण्डे युवक जेल जा रहे हैं मगर सबकी आँखों में आँसू हैं, एक भयानक गुनाह के। मेरे अपने, समकालीन स्थितियों, राजनैतिक हस्तक्षेप और अराजकता के बीच दिशाहीन पीढ़ी के अंधकार और भटकाव को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करती है। अन्तिम दृश्य में मृत नानी माँ की देह पर कैमरा रुकता है और उसकी नसीहतें सुनाई देती हैं। मीना कुमारी इस भूमिका में गहरी छाप छोड़ती हैं। बीती जिन्दगी, पति के साथ संवाद, पूर्वदीप्ति (फ्लैश बैक) मेंं बड़े अच्छे दृश्य रचते हैं। उनके भी अन्तिम समय की यह एक अहम फिल्म थी।
डैनी, असरानी, पेंटल, दिनेश ठाकुर, देवेन वर्मा, योगेश छाबड़ा फिल्म में अपनी भूमिकाओं में ऐसा प्रभावित करते हैं कि वे याद रहते हैं। गुलजार ने इस फिल्म की पटकथा और गीत भी लिखे थे।
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