पिछले लगभग दो दशक से स्वप्र सुन्दरी हेमा मालिनी सक्रियता के एक दूसरे आयाम में अपनी प्रतिष्ठा को समृद्ध करने का काम कर रही हैं। निश्चय ही इसमें उनको सफलता भी मिली है, लेकिन उनकी खासियत यह है कि वे सफलता या बड़ी उपलब्धियों को अपने व्यक्तित्व की तरह ही नियंत्रित करती हैं। भरतनाट्यम, अभिनय से अलग उनकी रचनात्मकता के मूल में बरसों से रहा है। उन्होंने उसकी विधिवत तालीम भी हासिल की है। एक अभिनेत्री के रूप में हिन्दी सिनेमा में चार दशक से भी ज्यादा लगातार सक्रियता ने उनको कुछ ज्यादा ही जस का तस रखा है। यही कारण है कि उनकी पर्सनैलिटी पर सभी मुग्ध रहते हैं।
बागवान के प्रदर्शन और सफलता के भी कुछ वर्षों बाद जब एक समारोह में अमिताभ बच्चन, वहाँ उपस्थित हेमा मालिनी के बारे में बोल रहे थे तब उन्होंने कहा कि मैं चकित हूँ कि हेमा जी आज भी हमेशा की तरह खूबसूरत हैं। उनके पास क्या जादू है, किसी को मालूम नहीं है। अमिताभ बच्चन ने अनेक फिल्मों में उनके साथ काम किया है और उनके मन में हेमा जी के लिए बड़ा आदर रहा करता है। वैजयन्ती माला के बाद हेमा मालिनी अकेली ऐसी अभिनेत्री रही हैं जो दक्षिण भारत से भरतनाट्यम में दीक्षित होकर फिल्मों में आयीं और अपना स्थान बनाया। उनका अपना एक लम्बा कैरियर ग्राफ है जिसमें बहुत सारी सफल फिल्में शामिल हैं।
वे रमेश सिप्पी की सीता और गीता से लेकर शोले तक, गुलजार की किनारा, खुश्बू, लेकिन से लेकर मीरा तक, प्रमोद चक्रवर्ती की नया जमाना से लेकर ड्रीम गर्ल तक, विजय आनंद की जॉनी मेरा नाम से लेकर तेरे मेरे सपने और राजपूत तक, कमाल अमरोही की फिल्म रजिया सुल्तान सहित अनेक उन महत्वपूर्ण फिल्मों के माध्यम से स्थापित हैं, जिनका जिक्र एक साथ यहाँ नहीं हो पा रहा है। स्वप्र सुन्दरी की उपमा उनको हिन्दी सिनेमा में इन्हीं सक्रियताओं और उपलब्धियों के बीच मिली है जब 1977 में प्रमोद चक्रवर्ती ने ड्रीमगर्ल फिल्म ही बनायी। उन्होंने बासु चटर्जी के निर्देशन में एक बहुत अच्छी फिल्म स्वामी का निर्माण भी किया था जिसमें गिरीश कर्नाड और शाबाना आजमी ने काम किया था।
नृत्य और नृत्य नाटिकाएँ उनको लगातार स्फूर्त और तरोताजा रखती हैं, ऐसा उनका कहना भी है और परमविश्वास भी। चार दिन पहले वे खजुराहो में भी, बेटियों के साथ उन्होंने मंच पर नृत्य किया। बाद में अपने उद्बोधन में जितने विनम्र भाव से अपनी सहभागिता को लेकर कृतज्ञता व्यक्त करते हुए उन्होंने खजुराहो नृत्य समारोह के मंच के महत्व की व्याख्या की वह, बड़े महत्व की है, उनका कहना था हर नृत्याँगना का स्वप्र इस मंच पर नृत्य का होता है, मेरा भी रहा है। यहाँ नृत्य करके साधना को पूर्णता प्राप्त होती है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें