आरम्भिक रूप से सिनेमाघरों में थोड़ी भीड़ बुड्डाह होगा तेर्रा बाआप में नजर आयी है, सो लगता है ओपनिंग दुरुस्त है मगर शुक्रवार को लगने वाली फिल्मों की हैसियत सोमवार का पहला शो जाहिर कर दिया करता है। समीक्षाओं में सितारा बाँटने में समीक्षकों का हृदय बहुत उदार हो जाता है, अक्सर। अंग्रेजी अखबारों का दिल जरा ज्यादा मुलायम होता है, सो वहाँ मुम्बई से जो समीक्षा चलती है वो भले पूरे देश में पढ़ी नहीं जाती मगर फिल्म बनाने वाला उसी को सिर-माथे लगाये घूमता है और चार-पाँच दिन बाद श्रेष्ठता और सफलता के दावे में उसे इस्तेमाल भी करता है।
समीक्षा हिन्दी में भी किंचित विरोधाभासों के प्रमाण दिया करती है। सत्तरवें साल में बच्चन का परदे पर विजु बनकर आना, इतना चीखना-चिल्लाना और कुल मिलाकर निहायत गुस्सैल और अस्थिर मन:स्थिति के आदमी की तरह अपनी उम्र, अपनी पहचान को स्थापित करना नागवार लगता है। स्वभाव से लम्पट और बे-वफा व्यक्ति के किरदार को निभाते हुए अमिताभ बच्चन आखिरकार वास्तविकता से दो बालिश्त पीछे ही रह जाते हैं। दर्शक देखता है कि किस तरह महानायक अपने बैनर की फिल्म को पूरी तरह अपने पक्ष में इस्तेमाल करता है।
क्लायमेक्स में खलनायक प्रकाश राज का महानायक से सम्वाद ही अमिताभ बच्चन के फिल्म में मुकम्मल हस्तक्षेप और छोटी उम्र के, खासकर अच्छे हिन्दी सिनेमा और उसके दर्शकों के मिजाज से नितान्त अनुभवहीन निर्देशक पुरी जगन्नाथ की स्थितियों को रेखांकित कर देता है। हेमा मालिनी की मेहमान उपस्थिति, रवीना टण्डन की निरर्थक उपस्थिति, तीन दृश्यों में राजीव वर्मा, व्यर्थ का शोर-शराबा और सत्तर के दशक की अपनी खास सफल फिल्म के टुकड़ों से झुँझलाहट में भरे देने वाली यह फिल्म बुड्डाह होगा तेर्रा बाआप वाकई गजब है। फिल्म का नाम इस तरह यूँ लिखा जा रहा है क्योंकि अंग्रेजी में फिल्म के नाम की स्पेलिंग यही उच्चारण प्रदान करती है।
महानायक को मोह-मुक्त होना चाहिए। सलमान खान जैसी सफलता हासिल करने के अरमान बहुतों के ध्वस्त हो रहे हैं। ये तेवर अब की अवस्था, वरीयता, सम्मान और जगह वाले महानायक के लिए उपयुक्त नहीं हैं। तार्किक रूप से यह एक खारिज की जाने वाली फिल्म है। अमिताभ बच्चन ने आरक्षण में अपने किरदार और प्रचार से हासिल माहौल में इस फिल्म को अधिक तवज्जो देकर बड़े कम समय में पूरा करके प्रदर्शित किया है। इसकी सफलता-विफलता का प्रभाव भी आरक्षण पर अगले माह पड़ेगा, इसकी सम्भावना है। हाँ, इसमें ज्यादा फुटेज और आकर्षण तो प्रकाश राज और शाहवर अली पा गये, अपनी यथास्थितियों में भी।
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