अजय देवगन अपने समकालीन अभिनेताओं की तरह ही उम्र के ऐसे पड़ाव में हैं जहाँ उनको कुछ न कुछ जल्दी ही बेहतर और उत्कृष्ट कर दिखाने की चाहत बलवती हो रही है। राजनीति में प्रकाश झा से झटका खाये अजय देवगन ने बाद में आरम्भिक रूप से आरक्षण के लिए हाँ करके न कर दी थी। यदि वे आरक्षण में काम कर रहे होते तो फिर शायद सैफ की जरूरत न पड़ती लेकिन राजनीति में उनके रोल पर हुई कतर-ब्यौंत और अपेक्षाकृत अधिक फुटेज मनोज वाजपेयी को मिल जाने से आरक्षण तक आते-आते एक अच्छे निर्देशक और एक अच्छे अभिनेता का पुराना रिश्ता टूट गया।
लगभग इसी वक्त में राजकुमार सन्तोषी की पावर से भी अजय देवगन बैकआउट हुए। यह बात महत्वपूर्ण थी कि दोनों ही निर्देशक अजय को बहुत पसन्द करते थे और उनके साथ फिल्में बनाया करते थे। राजकुमार सन्तोषी तो सनी देओल का दामन छोडक़र अजय देवगन के बूते ही खड़े हुए थे। अजय देवगन ने कैरियर और उम्र के इस मोड़ पर अपने दो प्रिय निर्देशकों को न कहकर अपनी धारा अलग दिशा में मोडऩे का संकेत दिया। गोलमाल का तीसरा भाग उनके लिए आशाजनक इसलिए रहा कि फूहड़ता के तमाम आरोपों के बावजूद रोहित शेट्टी की यह फिल्म आर्थिक रूप से खासी सफल हो गयी।
दो सप्ताह में ही रोहित खुशी-खुशी सारे आर्थिक जोखिमों से उबर गये और कुछ ही दिनों में उन्होंने अजय देवगन को लेकर दक्षिण की एक सुपरहिट एक्शन फिल्म को हिन्दी में तत्काल बनाना चाहा। यह फिल्म अब प्रदर्शन की कगार पर है। अजय देवगन इस समय अपनी इस फिल्म सिंघम से बहुत खुश हैं। जानकारों का कहना है कि रोहित शेट्टी ने यह फिल्म जिस तरह बनायी है, वितरक व्यावसायियों ने उनके साथ फिल्म को लेकर किए जाने वाले सौदे में एक तरह से जोखिम के बाहर निकाल दिया है। सिंघम फिल्म के माध्यम से अजय देवगन अपनी पुरानी छबि में फिर लौटेंगे जिसे दर्शक पिछले कुछ समय से उनकी हास्य भूमिकाओं वाली फिल्मों के कारण भूल गये थे।
अजय देवगन इस बात में विश्वास करते हैं कि दर्शक बदलाव को पसन्द करता है। अजय देवगन को जिस रूप में दर्शक देखना चाहते हैं, उस तरह वे सिंघम के जरिए आ रहे हैं। हिन्दी फिल्मों में एक बार फिर दक्षिण की फिल्मों के रीमेक का दौर सफलता की गारण्टी बन गया है। आमिर खान गजनी, सलमान खान वाण्टेड और रेडी से यह बात साबित कर चुके हैं।
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