रविवार, 10 जुलाई 2011

बिमल राय की अनूठी परख


सामाजिक सरोकारों का सिनेमा बनाने में स्वर्गीय बिमल राय जैसी प्रतिष्ठा दूसरे किसी फिल्मकार को नहीं मिली। दो वर्ष पहले ही उनका जन्मशताब्दी वर्ष मनाया गया। वे फिल्मकार नहीं, बल्कि उत्कृष्ट सिनेमाई दृष्टि और प्रेरणा का एक स्कूल थे, जिनसे उनके समय में अनेक सृजनधर्मियों ने बहुत कुछ सीखा था। रविवार को उनकी एक अविस्मरणीय फिल्म परख की चर्चा करना समीचीन लगता है। इस फिल्म का प्रदर्शन काल 1960 का है। इक्यावन साल पुरानी यह फिल्म विषयवस्तु और समकालीनता की दृष्टि से आज भी उतनी ही प्रासंगिक है।

परख का कथ्य अत्यन्त मौलिक था, खासतौर से इस कहानी में लोभसंवरण की मानवीय विफलता को रेखांकित किया गया था। इस तरह यह फिल्म अपने आसपास के बनावटीपन और मन, मस्तिष्क और चेहरे के दुहरपन को भी व्यक्त करती है। गाँव का पोस्टमास्टर एक सुबह गाँव के पाँच प्रभावशाली लोगों को बुलाकर कहता है कि वह रात को सो नहीं पाया। उसे पाँच लाख रुपए का चेक मिला है। जिसने भेजा है उसकी मंशा यह है कि यह चेक गाँव के सबसे अच्छे आदमी को दे दिया जावे। जमींदार, महापण्डित, मजदूरों का नेता, स्कूल का मास्टर और गाँव का डॉक्टर सामने हैं। पोस्टमास्टर की बात सुनकर अब सभी अपने आपको अच्छा प्रमाणित करना चाहते हैं।

चुनावी राजनीति और सरगर्मियों के बीच गाँव कोलाहल में डूब गया है। जमींदार ऐलान करवा रहा है कि सबके कर्ज माफ कर दिए गये हैं। साहूकार एक इंजीनियर को बुलाकर गाँव में नलकूपों की खुदाई शुरू करवा रहा है। मास्टर रजत पहले भी निष्ठा से अपना काम कर रहा था, अब भी करता है। डॉक्टर अपने दवाखाने से मुफ्त में दवा देने की बात कहते हैं तो महापण्डित गाँव के कल्याण की भविष्यवाणी कर-करके सबको लुभाता है। गाँव के लोग चकित हैं, शोषक अचानक संवेदनशील कैसे हो गया? क्यों ऐसे लोगों के हृदयपरिवर्तन हो गये? अब सबका पाँच लाख रुपयों पर दावा है मगर तभी खुलासा होता है कि पोस्टमैन हरधन ने पाँच लाख रुपए का खेल रचा था।

उसका इरादा सबको आइना दिखाने का था। यह रुपया मास्टर रजत को दे दिया जाता है जो पोस्टमास्टर की बेटी सीमा को चाहता है और उससे विवाह करने वाला है। इस फिल्म में दिग्गज चरित्र कलाकारों ने काम किया है, नजीर हुसैन, मोतीलाल, जयन्त, कन्हैयालाल, असित सेन, लीला चिटनीस आदि। स्कूल मास्टर की भूमिका बसन्त चौधरी ने निभायी है। साधना, नायिका सीमा की भूमिका में हैं। परख के संवाद गीतकार शैलेन्द्र ने लिखे थे और संगीत सलिल चौधरी का था।

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