शनिवार, 23 जुलाई 2011

सुहाना सफर और ये मौसम हसीं


प्रख्यात फिल्मकार स्वर्गीय बिमल राय का जन्मशताब्दी वर्ष दो साल पहले ही व्यतीत हुआ है। उनकी जन्मशताब्दी के समय सार्थक सिनेमा आन्दोलन से जुड़ी कुछेक संस्थाओं और दूरदर्शन ने भी उन पर केन्द्रित विशेष कार्यक्रम आयोजित किए थे जिनके कारण उनकी यादगार फिल्मों को देखने के अवसर उपलब्ध हुए थे।

यों तो बिमल राय की अधिकतम फिल्में सार्थक और सोद्देश्य हैं, इनमें मधुमति की चर्चा इस कारण से भी होती है क्योंकि इस फिल्म की कहानी ऋत्विक घटक ने लिखी थी और फिल्म का सम्पादन ऋषिकेश मुखर्जी ने किया था। दिलीप कुमार, वैजयन्ती माला, प्राण, जयन्त और जॉनी वाकर फिल्म के प्रमुख कलाकार थे। 1958 में प्रदर्शित इस फिल्म की चर्चा हम इस रविवार फिल्म की कुछ खूबियों के साथ कर रहे हैं। फिल्म का नायक देवेन्द्र चेतन-अवचेतन में एक स्त्री के रुदन को महसूस करता है। जल्द ही वह एक यात्रा पर जाता है जहाँ उसे राजा उग्र नारायण के महल में जाने का मौका मिलता है। महल में वह एक पेंटिंग में एक युवती की छबि देखता है।

नायक पूर्व जन्म की स्मृतियों, पुरानी यादों में जाने के अपने भीतर के आग्रह से मुक्त नहीं हो पाता। वह महसूस करता है कि इस युवती से उसका कोई रिश्ता रहा है, पिछली जिन्दगी में। देवेन्द्र की पिछली जिन्दगी, आनंद एक युवक है जो बस्ती की लडक़ी मधुमति से प्रेम करता है। राजा उग्रनारायण की बुरी नीयत उस पर है। इधर इस जन्म में माधवी, मधुमति की हमशक्ल है। पूर्व जन्म में राजा उग्र नारायण की वजह से ही मधुमति को अपनी जान देनी पड़ी थी। आनंद और मधुमति मिल न सके थे। राजा उग्र नारायण की उम्र ढल चुकी है लेकिन उसका आतंक बरकरार है। पेड़ों पर बैठे पंछी भी उसकी आहट से व्याकुल और भयभीत हो जाते हैं। देवेन्द्र, माधवी के साथ मिलकर उग्र नारायण को उसके किए की सजा दिलवाता है।

मधुमति एक छोटी फिल्म है, कसी हुई पटकथा और सम्पादन इसको विशिष्ट बनाते हैं। दिलीप कुमार हर उस शब्द-वाक्य, विशेषण से ऊपर हैं जो उनकी खूबी के लिए कहा जा सकता है। वैजयन्ती माला ने चंचल, निश्छल नायिका की भूमिका खूबसूरती से निभायी है। प्राण अपनी भूमिका को जिस तरह जीते हैं, दर्शक सहमा-सा महसूस करता है पूरी फिल्म में।

फिल्म के गीत शैलेन्द्र ने लिखे थे, संगीत और पाश्र्व संगीत सलिल चौधुरी का। सुहाना सफर और ये मौसम हसीं, जुल्मी संग आँख लड़ी, दिल तड़प-तड़प के कह रहा है आ भी जा, आजा रे परदेसी आदि अनेक गाने, आज भी सुहाते हैं, मधुर लगते हैं। मधुमति फिल्म को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से भी नवाजा गया था।

कोई टिप्पणी नहीं: