कई बार कुछ महत्वपूर्ण निर्देशकों की विफल फिल्मों की चर्चा भी की जाना चाहिए, कहने का तात्पर्य कि देख लेनी चाहिए। हालाँकि यह मशविरा देना जोखिम भरा है, पता नहीं क्या प्रतिक्रिया हो, मगर उनके लिए गलत नहीं जो सिनेमा के बारे में एक दर्शक से ज्यादा विचार करते हैं या उस विचार को फिर दर्शक से बाँटते हैं। प्रख्यात फिल्म चिन्तक, समीक्षक मनमोहन चड्ढा अक्सर इस बात को तार्किक आधार पर कहते हैं। इसी बात के मद्देनजर इस रविवार रमेश सिप्पी की फिल्म शान की चर्चा करना मुनासिब लगा।
शान का प्रदर्शन काल 1980 का है। रमेश सिप्पी ने शान के प्रदर्शन के पाँच साल पहले शोले जैसी ऐतिहासिक फिल्म निर्देशित की थी जिसकी सफलता का आनंद वे पूरे पाँच साल उठाते रहे। पाँचवें साल उन्होंने शान का काम शुरू किया और उस वक्त के दौर के अनुकूल सितारे उसमें शामिल किए, अमिताभ बच्चन, शशि कपूर, सुनील दत्त, शत्रुघ्र सिन्हा, राखी, परवीन बॉबी, बिन्दिया गोस्वामी, जॉनी वाकर आदि। शान के लिए खलनायक लेना उनकी सबसे बड़ी चुनौती थी। गब्बर के बाद अब कौन? इस उथल-पुथल को बड़े दिनों मथकर वे शान के खलनायक शाकाल के रूप में कुलभूषण खरबन्दा को ले आये। शान को उन्होंने शहरी मसाला फिल्म की तरह बनाया।
अमिताभ बच्चन, शशि कपूर, परवीन बॉबी, बिन्दिया और जॉनी वॉकर के किरदार ठग और चोर, सुनील दत्त पुलिस अधिकारी, शत्रुघ्र सिन्हा खलनायक से ब्लेक मेल होता खाँटी निशानेबाज जो सुनील दत्त को मारने निकला है। एक साथ इतने सारे सितारों के साथ रमेश सिप्पी कहानी अच्छी नहीं गढ़ पाये। एक तनाव उनके साथ सभी लोकप्रिय सितारों को बराबर के फुटेज देने का भी था। इन सबके ऊपर गंजे सिर पर हाथ फेरता हुआ प्रभावहीन, कमोवेश जोकरनुमा शाकाल।
शान, शोले का दस प्रतिशत भी साबित नहीं हुई। लेकिन इसके बावजूद उसकी मेकिंग किसी चालू मगर लोकप्रिय अंग्रेजी फिल्म की शैली में थी बड़ी दिलचस्प। खासतौर पर शुरू के आधा घण्टा जब तक अमिताभ, शशि, परवीन, बिन्दिया और खास जॉनी वाकर फिल्म को चलाते हैं, फिल्म रोचक लगती है लेकिन बाद में फार्मूलों में उलझकर भटक जाती है।
फिल्म का बैकग्राउण्ड स्कोर, खास राहुल देव बर्मन का संगीत कई गानों की आज तक याद दिलाता है। दोस्तों से प्यार किया, दुश्मनों से बदला लिया, जो भी किया हमने किया, शान से, हेमा मालिनी, ऊषा उत्थुप और आशा भोसले की आवाजों के साथ बहुत आकर्षित करता है, फिल्म में यह गाना आरम्भ में नामावली में आता है। इस फिल्म के असफल होने पर रमेश सिप्पी की निन्दा करने वालों ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी, मगर शान वाकई एकदम बुरी फिल्म नहीं थी।
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