शनिवार, 9 अक्तूबर 2010

दूर गगन की छाँव में

तीन दिन बाद 13 अक्टूबर को विख्यात पाश्र्व गायक एवं हरफनमौला कलाकार स्वर्गीय किशोर कुमार की पुण्यतिथि है। ऐसे समय में उन्हीं की एक बड़ी दुर्लभ फिल्म दूर गगन की छाँव में की चर्चा करना ज्यादा प्रासंगिक लगता है। इस फिल्म का प्रदर्शन काल 1964 का है। स्वर्गीय किशोर कुमार खुद ही निर्माता थे और निर्देशक भी। संगीत वगैरह बहुत से जरूरी काम खुद ही उन्होंने किए थे। नायक भी वे खुद ही थे। इसके अलावा और सब कुछ वे नहीं हो सकते थे लिहाजा नायिका सुप्रिया चौधुरी थीं। अमित गांगुली, उनका बेटा बाल कलाकार के रूप में था। नाना पलसीकर, सज्जन, राज मेहरा और इफ्तेखार थे। लीला मिश्रा थीं।

यह बड़ी मर्मस्पर्शी फिल्म है। गाँव है। एक बच्चा रोज नदी के किनारे आकर खड़ा हो जाता है। उसकी आवाज चली गयी है। हर दिन नाव से इस किनारे आकर बहुत से लोग उतरते हैं। उसको अपने पिता का इन्तजार है जो किसी न किसी दिन आयेगा। एक सफेद रंग का कुत्ता उसके साथ हमेशा रहता है, उसका अनुसरण करता है और कमोवेश हिफाजत भी। कहानी एक फौजी की है जिसने दुश्मनों का सफाया भी किया है और गोली भी नहीं खायी है। अपने गाँव लौटता है तो मालूम होता है कि घर जल गया है। माँ से के साथ पत्नी भी उस घर के जल जाने से मर गयी है। बेटा बच गया है जिसकी आवाज भयानक हादसे में चली गयी है। इस बेटे को अपने पिता का इन्तजार है।

पिता अपने बेटे से मिलकर व्यथित होता है। उसका प्रण है कि बेटे की आवाज किसी तरह वापस आये। जीवट के धनी मगर अन्दर से टूटे हुए शंकर के जीवन में बेटे रामू के सिवा कोई नहीं है। वह जले हुए घर और खाली से नजर आने वाले गाँव को छोडक़र चल देता है। रास्ते में एक पिता और उसके दो दुष्ट बेटे उसका जीना मुहाल कर देना चाहते हैं मगर मीना, डॉक्टर साहब उसके काम आते हैं। फिल्म का अन्त ही सुखद है जब बेटे की आवाज लौटती है।

दूर गगन की छाँव में, एक बोझिल अवसाद की फिल्म है जिसके साथ रहने का बड़ा मन करता है। गाँव लौटने और हादसे से रूबरू होने के बाद रात के एकान्त का गाना, कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन, मन में गहरे बैठ जाता है वहीं टूटे हुए बेटे को हिम्मत बँधाता गाना, आ चल के तुझे मैं ले के चलूँ एक ऐसे गगन के तले, सुखद और आश्वस्त करने वाले भरोसे की तरह है। शैलेन्द्र के गीत यहाँ भी अविस्मरणीय हैं। किशोर कुमार तो अभिनय में अनूठे हैं ही, सुप्रिया बड़ी खूबसूरत और सहज अभिनय में प्रभावित करती हैं।

अमित, किशोर के बेटे का काम भी प्रभावित करता है मगर सबसे ज्यादा मोहित करता है कुत्ता, पता नहीं वह किस तरह इतना सिखा-पढ़ा और निर्दिष्ट दिखायी देता है, प्रत्येक शॉट में।

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