शनिवार, 16 अक्तूबर 2010

सीधे रस्ते की एक टेढ़ी चाल

इससे पहले कि पिछले दो-तीन साल से फूहड़ टाइप की गोलमालनामा फिल्मों की श्रृंखला एक अच्छी गोलमाल को हमारी स्मृतियों से बाहर ही न कर दे, ऐसा महसूस हुआ कि इस रविवार प्रख्यात फिल्मकार हृषिकेश मुखर्जी की यादगार फिल्म गोलमाल को याद कर ही लिया जाये। गोलमाल का निर्माण हृषिकेश मुखर्जी ने 1979 में किया था। उस समय वे दो स्तरों पर सफल, पसन्दीदा और प्रभावशाली फिल्में बना रहे थे जिनमें से एक में अमिताभ बच्चन, राखी, धर्मेन्द्र, शर्मिला टैगोर आदि हुआ करते थे और दूसरी तरफ अपेक्षाकृत आये-आये से अमोल पालेकर, बिन्दिया गोस्वामी, राकेश रोशन जैसे कलाकार। वे अपने साथ उत्पल दत्त जैसे विलक्षण हास्य अभिनेता को बड़ा अपरिहार्य मानते थे। उस समय को याद करके सचमुच गुदगुदी सी होने लगती है।

हृषिकेश मुखर्जी की गोलमाल, सचमुच एक दिलचस्प फिल्म है जिसे निर्देशन की फिल्म तो जरूर ही कहा जायेगा, साथ ही परिस्थितिजन्य हास्य की भी वो एक अलग तरह की मिसाल थी। यह फिल्म एक बेरोजगार चार्टर्ड एकाउन्टेन्ट के साथ एक प्रौढ़ उम्र भवानी शंकर के बीच रोचक घटनाक्रमों के साथ घटित होती है। रामप्रसाद बेरोजगार है और एक अच्छी नौकरी की तलाश में है। वह क्रिकेट और हॉकी मैच देखने का शौकीन है। एक पारिवारिक हितैषी डेविड उसकी मदद करना चाहते हैं। भवानी शंकर से उनकी मित्रता है। भवानी शंकर की अपनी शर्तें और सनकें हैं। मूँछकटे आदमियों से नफरत है। हिन्दी बेहतर न जानने और न बोल पाने वालों से चिढ़ है। ऐसे में किसी तरह रामप्रसाद, भवानी शंकर की रुचियाँ जानकर नौकरी पाने में सफल होता है।

रामप्रसाद की नौकरी और जिन्दगी में चैन की शुरूआत होती भर है, कि वह एक नयी मुसीबत में फँस जाता है। वह जिस बनावटी चेहरे, भाषा और कायिक उपस्थिति के साथ भवानी शंकर से परिचित होता है, उससे उलट उसको भवानी शंकर तुरन्त देख लेते हैं तब रामप्रसाद, अपने एक भाई लक्ष्मण प्रसाद का खुलासा करता है, जो वह खुद ही है। अब उसे दो किरदार जीने होते हैं। स्मार्ट लक्ष्मण प्रसाद को उर्मिला भी पसन्द करती है। लेकिन गलत काम, झूठ आदि को एक दिन पकड़ा ही जाना है, स्थितियाँ खुलकर हँसाने वाली हैं, आखिरकार सब भेद खुलता है। अन्त में हम भवानी शंकर को भी सफाचट मूँछों में देखकर अपने घर जाते हैं।

सहज मानवीय रुचियों-अरुचियों के धरातल पर यह फिल्म एक अलग ही मनोरंजन पेश करती है। उत्पल दत्त और अमोल पालेकर की दिलचस्प केमेस्ट्री गोलमाल की जान है। रोचक घटनाक्रम और दिलचस्प संवाद के साथ एक व्यक्ति के सामने जतनपूर्वक खड़े किए गये भ्रम बेहद हँसाते हैं। उत्पल दत्त, अमोल पालेकर द्वारा बोली जाने वाली शुद्ध हिन्दी के फेर में जिस तरह उलझकर अभिव्यक्त होते हैं अनूठा है। फिल्म की सशक्त पटकथा सचिन भौमिक ने लिखी थी और संवाद थे डॉ. राही मासूम रजा के।

राहुल देव बर्मन फिल्म के संगीतकार थे, जिन्होंने फिल्म का टाइटिल गीत, गोलमाल है, भई सब गोलमाल है, गाया था। एक और अच्छा गीत किशोर कुमार ने गाया था, आने वाला पल जाने वाला है।

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