शनिवार, 13 नवंबर 2010

रस्किन बॉण्ड की कहानी - ब्ल्यू अम्ब्रेला

हालाँकि विशाल भारद्वाज ने संगीत निर्देशक से निर्देशक होते हुए आज अपनी ख्याति के व्यापक विस्तार में हैं मगर आरम्भ में गुलजार की फिल्म माचिस के संगीतकार के समय से उनको देखते हुए यह महसूस किया है कि उनकी रचनात्मक दृष्टि और चयन प्रक्रिया दोनों समकालीन युवा फिल्मकारों से काफी अलग हैं। अपने लिए बाद में उन्होंने विविधतापूर्ण फिल्में चुनीं मगर बच्चों के लिए शुरू में उन्होंंने एक के बाद एक जो दो फिल्में मकड़ी और ब्ल्यू अम्ब्रेला बनायी उनको देखते हुए, उस दुनिया में होना, एक अनूठा अनुभव है। खासतौर पर ब्ल्यू अम्ब्रेला बड़ी दिलचस्प और कहीं-कहीं सीधे मन को छू जाती है।

रविवार को हम एक फिल्म पर बात करते हैं जो अपने वक्त की उल्लेखनीय और प्रभाव छोडऩे वाली फिल्में होती हैं। बाल दिवस, इस बार इस रविवार को है लिहाजा बच्चों के लिए ब्ल्यू अम्ब्रेला की चर्चा ज्यादा समीचीन और सार्थक लगती है। अब हमारे यहाँ फिल्में प्राप्त करना और देखना कठिन प्रक्रिया नहीं है, सीडी और डीवीडी में सब उपलब्ध है, लिहाजा बच्चे इस फिल्म को देखकर बाल दिवस मना सकते हैं।

विशाल भारद्वाज ने रस्किन बॉण्ड की कहानी को फिल्म का मूल और मुख्य आधार बनाकर अपनी टीम के साथ पटकथा का हिन्दुस्तानी परिवेश में परिष्कार किया है। फिल्म में हम इस कहानी को हिमाचलप्रदेश के खूबसूरत आंचलिक सौन्दर्य और ठण्ड के खुशगवार मौसम में घटित होते देखते हैं। कहानी एक लालची दुकानदार, उसका नौकर और एक बच्ची के आसपास घूमती है। यह बच्ची जापानी सैलानियों के एक समूह को अपनी गाँव की खूबसूरती दिखा रही है। वह एक सुन्दर जापानी युवती की नीली खूबसूरत छतरी पर मोहित हो जाती है और जापानी युवती उस बच्ची के अनुष्ठानिक कण्ठहार पर। मासूम प्रस्ताव पर दोनों में छतरी और हार की अदल-बदल हो जाती है। अब बच्ची शान से पूरे गाँव में नीली छतरी लगाकर खेलती-घूमती है।

इस छतरी पर एक लालची दुकानदार की नीयत खराब हो जाती है और वह येन-केन-प्रकारेण इसे चुराने की फिराक में लग जाता है। एक दिन वह अपने इरादे में सफल हो जाता है लेकिन वह बच्ची, अपनी अक्ल और चतुराई से चोरी का पता लगाती है और दुकानदार पकड़ा जाता है। बाद में दुकानदार प्रायश्चित भी करता है। कुल मिलाकर एक बड़ी रोचक कहानी है जिसमें श्रेया शर्मा ने बच्ची की भूमिका अच्छी निभायी है मगर सबसे श्रेष्ठ साबित होते हैं लालची दुकानदार की भूमिका में पंकज कपूर। नंदू का यह किरदार एक पूरी मन:स्थिति और मनोविज्ञान को समझने में आनंद भी प्रदान करता है। यह एक एकाकी किरदार है जिसे गाँव के बच्चे खूब तंग करते हैं और वह भी अपने प्रतिवाद में उतना ही बुरा है, जितना एक बच्चों की फिल्म में किसी नकारात्मक चरित्र को होना चाहिए।

कोई टिप्पणी नहीं: