सरकारी संस्थाएँ कई बार अपनी सार्थकता को भूलकर बड़ी दूर उद्देश्यों के स्मृति-लोप में अक्सर चली जाया करती हैं। जिन कामों को लेकर उनकी स्थापना हुई है, वह किस तरह से कितना किया गया इसको लेकर अक्सर आलोचनाएँ और बहसें चला करती हैं। कान में बाजा चाहे जितना बजाओ, कई बार फर्क नहीं पड़ता मगर कई बार कुछ ऐसा काम भी दिखायी दे जाता है, जो एक अलग पहचान स्थापित करता है। भारत सरकार के पुणे स्थित राष्ट्रीय फिल्म अभिलेखागार ने एक बहुत महत्वपूर्ण प्रदर्शनी उन फिल्मकारों पर तैयार की है जिन्हें अब तक दादा साहब फाल्के पुरस्कारों से नवाजा गया है।
दादा साहब फाल्के भारतीय सिनेमा के पितामह थे जिन्होंने अपनी असाधारण जिजीविषा और संघर्ष के साथ सिनेमा का स्वप्र केवल देखा ही नहीं था बल्कि साकार भी किया था। उन्होंने ही भारत की पहली फिल्म राजा हरिश्चन्द्र 1913 में बनायी थी। सिनेमा का जन्म ही उनके सिनेमा से हुआ था इसीलिए आने वाला 2013 का साल सिनेमा की शताब्दी का साल होगा। यह महत्वपूर्ण है कि फिल्म जगत आज भी तमाम भटकाव के बावजूद अपने पितामह को भूला नहीं है, वक्त-वक्त पर रस्मी तौर पर ही सही उनको याद कर लिया करता है। भारत सरकार ने एक बड़ी पहल दादा साहब फाल्के के नाम पर एक बड़ा पुरस्कार स्थापित करके की थी। यह पुरस्कार फिल्मकार को उनके जीवनपर्यन्त असाधारण और उत्कृष्ट सृजन के लिए प्रदान किया जाता है।
पुरस्कार की स्थापना 1969 में की गयी थी और पहला पुरस्कार फस्र्ट लेडी ऑव सिल्वर स्क्रीन देविका रानी को प्रदान किया गया था। तब से अब तक यह पुरस्कार पृथ्वीराज कपूर, कानन देवी, नितिन बोस, रायचन्द बोराल, सोहराब मोदी, जयराज, नौशाद, दुर्गा खोटे, सत्यजित रे, व्ही. शान्ताराम, राजकपूर, अशोक कुमार, लता मंगेशकर, भालजी पेंढारकर, दिलीप कुमार, शिवाजी गणेशन, कवि प्रदीप, बी.आर. चोपड़ा, हृषिकेश मुखर्जी, आशा भोसले, यश चोपड़ा, देव आनंद, मृणाल सेन, अडूर गोपालकृष्णन, श्याम बेनेगल, तपन सिन्हा, व्ही.के. मूर्ति, मन्नाडे और डी. रामानायडू आदि को प्रदान किया जा चुका है।
इस सम्मान से अब तक सम्मानित होने वाले सभी फिल्मकार, कलाकार और खासतौर पर स्वर्गीय गुरुदत्त की फिल्मों का छायांकन करने वाले व्ही.के. मूर्ति जैसे लोग भारतीय सिनेमा के आधार स्तम्भ हैं। सौ साल के सिनेमा का जब भी मूल्याँकन और आकलन होगा, ऐसी विभूतियों के नाम सर्वोपरि होंगे। ऐसे सम्मानितों की एक प्रदर्शनी की परिकल्पना वास्तव में एक सराहनीय आयाम है जिसके लिए राष्ट्रीय फिल्म अभिलेखागार को बधाई दी जाना चाहिए।
अभिलेखागार ने यह प्रदर्शनी गोवा में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में प्रदर्शित की है जिसे काफी सराहा गया है। राष्ट्रीय फिल्म अभिलेखागार को चाहिए कि यह प्रदर्शनी उसके गोदाम में ही सिमटकर न रह जाये। बेहतर होगा कि इसे वे देश के अनेक स्थानों तक ले जाएँ। अभिलेखागार इस प्रदर्शनी को अलबम स्वरूप में भी प्रकाशित कर व्यापक कर सकता है।
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