सोमवार, 22 नवंबर 2010

गोवा में बिना ध्वनि का फिल्म समारोह

अन्तर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह का रस्मी आगाज हर साल की तरह इस साल भी 22 नवम्बर से हो गया है। गोवा में पिछले कई वर्षों से सिमट कर रह गये इस फिल्म समारोह में बॉलीवुड की गहरी छाया भी कुछ सालों से व्याप्त हो गयी है। एक वक्त वो भी था जब इस समारोह को व्यापक रूप से आकर्षण हासिल था। एक साल यह समारोह दिल्ली में हुआ करता था, उसके अगले साल देश के किसी मेजबान राज्य में। इस तरह से हर दूसरे साल दिल्ली में यह समारोह लौटता था। इस श्रृंखला के कारण इस समारोह को लोकप्रियता और भागीदारी दोनों स्तर पर महत्वपूर्ण माना जाता था।

हालाँकि एक दशक पहले से भी पहले के इस समय में प्राय: हर साल यह समारोह किसी न किसी कारण से विवाद का हिस्सा भी बनता था। फिल्मकार समारोह से नाराज रहने के बावजूद इसमें शामिल होते थे। अपर्णा सेन और अमोल पालेकर जैसे कलाकार-निर्देशक तो आयोजन स्थल पर ही समारोह के स्तर, व्यवस्था और चयन को लेकर प्रतिवाद किया करते थे। लेकिन धीरे-धीरे ऐसे विरोध भी थम गये और आयोजक फिल्म समारोह निदेशालय ने भी उन उम्मीदों और अपेक्षाओं को पूरा करने पर कभी गम्भीरता से विचार नहीं किया, जो लाजमी भी हुआ करती थीं।

प्रतिक्रियाहीन यह उपक्रम एक बार गोवा चले जाने और वहीं नींव खोदकर स्थापित कर दिए जाने के बाद और भी बैठ सा गया। बाद के सालों में ऐसी स्थिति आयी कि यह समारोह आम चर्चाओं के दायरे से भी बाहर चला गया। फिल्मों के चयन को लेकर सार्थक मापदण्डों का निर्धारण सही तरीके से नहीं हो पाता रहा।

जूरी सर्वोपरि होती है मगर उस जूरी में वे फिल्मकार शामिल होने लगे जिनका खुद का सार्थक काम कभी चर्चा का विषय नहीं रहा। खाली बैठे निर्देशक और कलाकारों की समितियाँ फिल्में चयन करने लगीं और धीरे-धीरे इस समारोह में जिनकी भी रुचि पहले हुआ करती थी, वो भी समाप्त हो गयी। इस बार भी 22 नवम्बर से यह समारोह शुरू हो रहा है जो 2 दिसम्बर तक चलेगा।

इण्डियन पैनोरमा की फिल्मों को दिखाये जाने की शुरूआत 23 नवम्बर से होगी। इस बार एन. चन्द्रा की अध्यक्षता वाली फीचर फिल्मों की दस सदस्यीय जूरी ने बीस दिनों में एक सौ चालीस फिल्में देखकर भारतीय पैनोरमा के लिए छब्बीस फिल्मों का चयन किया वहीं सिद्धार्थ काक की नॉन-फीचर फिल्मों की पाँच सदस्यीय जूरी ने पाँच दिनों में सन्त्यावने फिल्में देखकर उन्नीस फिल्में चुनीं जो इस बार के समारोह में दिखायी जायेंगी।

फीचर फिल्मों में एक तरफ थ्र्री ईडियट्स, रावण, तेरे बिन लादेन, आय एम कलाम और वकअप सिड जैसी हिन्दी फिल्में शामिल हैं वहीं भारतीय भाषाओं की फिल्मों में रितुपर्णाे घोष, गौतम घोष, गिरीश कासरवल्ली, सुधांशु मोहन साहू निर्देशित फिल्में चयनित हैं। अचरज है, बाजार से में आकर चैनलों पर जिन फिल्मों का प्रीमियर हो चुका, वे फिल्में समारोह का हिस्सा हैं। हैरत है कि राष्ट्रीय स्तर का फिल्म समारोह अब इस दशा पर आ पहुँचा है और औपचारिकता की पराकाष्ठा पर है।

1 टिप्पणी:

ZEAL ने कहा…

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शायद कुछ हट कर देखना चाहते हैं दर्शक। फिर भी इतनी वीरानी तो नहीं होनी चाहिए फिल्म समारोहों में।

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