रविवार, 7 अगस्त 2011

बदलते दृश्य-परिदृश्यों में



उगते सूरज को सलाम करना हो सकता है, अब एक सामाजिक चतुराई के रूप में सर्वव्यापी हो गयी हो, लेकिन सिनेमा में इसका सर्वाधिक साफ-सपाट स्वरूप देखने में आता है। बाजार जिसको झुक कर सलाम करता है, उसके पीछे सब होते हैं। आसपास खड़े होकर पूरी निष्ठा के साथ ख्याल रखने वाले और लगभग फिक्रमन्द रहने वालों से घिरी सितारा शख्सियतें वक्त बुरा होने पर सूनेपन को बड़े दुखी मन के साथ जीती हैं।

आस्थाएँ कब, कहाँ और कैसे बदल जायें कुछ कहा नहीं जा सकता। आये दिन नेता से लेकर बड़ी संख्या में कार्यकर्ता इस दल से उस दल में चले जाते हैं और तत्काल ससुराल में बैठकर मायके के खिलाफ बयान जारी करते हैं। कभी आगे चलकर मायके लौट गये तो फिर ससुराल में अपने नारकीय जीवन का दुख जताते नहीं अघाते।

बड़े-बड़े सितारों के साथ भी ऐसी घटनाएँ होती हैं, उनके साये कहीं और की छाया बनकर उन्हीं को जीभ दिखाते हैं। मोतीलाल से लेकर राजेश खन्ना तक कितने ही सितारे अपने समय में भुक्तभोगी रहे हैं। उस समय गनीमत यह थी कि भरोसा बहुत कुछ बाकी था और कहीं-कहीं लोग मुरव्वत में रिश्ते निभा लिया करते थे मगर आज एक-दूसरे से सभी जुड़े, परस्पर संदिग्ध निगाह से ही एक-दूसरे को देखते हैं। कलाकार सोचता है, चहेते तभी तक साथ हैं जब तक वक्त है, फिर कहीं और चले जायेंगे और चहेते सोचते हैं कि इस आदमी का भरोसा नहीं कब अपन को छोडक़र चार दूसरे इकट्ठा कर ले।

अब खैर उतनी पार्टियाँ और मौज-मस्तियाँ होटलों और बारों में दावतों और ऐश के नाम पर नहीं होतीं जितनी तीस-चालीस साल पहले हुआ करती थीं। तब होटल से लेकर रेस्त्राँ की मेजें तक आरक्षित रहा करती थीं। शाहीपन का जवाब नहीं था, संजीव कुमार से लेकर शंकर-जयकिशन तक अपनी जगहें आरक्षित रखा करते थे। आज के समय में मिलना तो दूर देखना और दिखायी देना भी मतलब होने पर ही सम्भव है।

फराह खान का अक्षय पसन्द होना और सलमान से आत्मीयता प्रदर्शित करना बादशाह को ऐसा नागवार गुजरा कि उन्होंने फराह से एक लम्बी दूरी बना ली। हौसलाआफजाई पर आये तो कोरियोग्राफर से निर्देशक बना दिया और मन हटा तो अपनी फिल्म तो दूर किसी एकाध गाने की कोरियोग्राफी भी नहीं देनी चाही। फिल्मी दुनिया में अब दस्तूर अपनी तरह के हैं, आज के सफल-असफल सितारों, निर्देशकों और तमाम लोगों के बनाये हुए। अब टीम-वर्क के बजाय गैंग वर्क करती है।

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