रविवार, 14 अगस्त 2011

अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों


15 अगस्त, भारत की स्वतंत्रता का दिन। चौंसठ साल पहले मिली आजादी का यादगार दिन। हर साल उसी ऊष्मा और भावनाओं के साथ हम यह दिन मनाते हैं। इसी बेला में चेतन आनंद की फिल्म हकीकत की याद आती है। भारत-चीन युद्ध की पृष्ठभूमि में बनी इस फिल्म का प्रदर्शन काल 1964 का है। चेतन आनंद एक प्रयोगधर्मी फिल्मकार थे। देव आनंद और विजय आनंद के बड़े भाई, चेतन की दृष्टि सबसे अलग थी, अपने भाइयों में। उनकी फिल्में कम हैं मगर आकृष्ट करती हैं।

देशप्रेम पर हकीकत फिल्म का उदाहरण हिन्दी सिनेमा के इतिहास में हमेशा दिया जाता है। हकीकत में बड़े सितारों को एक साथ लिया गया था। बलराज साहनी, धर्मेन्द्र, प्रिया राजवंश, विजय आनंद, जयन्त, संजय खान, अचला सचदेव, भूपिन्दर, सुधीर आदि। हकीकत फिल्म कैप्टन बहादुर सिंह की वीरता की दास्तान है। सीमा पर अपने देश की रक्षा करते हुए इस अधिकारी को सीमा की ही एक युवती से प्रेम हो जाता है। धर्मेन्द्र कैप्टन बहादुर सिंह की भूमिका में हैं और प्रिया उनकी प्रेयसी। हकीकत का फिल्माँकन लद्दाख में बड़े जोखिमों के साथ किया गया था। फिल्म में जाँबाज हिन्दुस्तानियों के जज्बे को बड़ी बहादुरी और संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत किया गया है।

युद्ध के दृश्य चेतन आनंद ने जिस सजीव वास्तविकता के साथ फिल्माए हैं, उसमें उनकी कुशलता और दक्षता जाहिर होती है। नायिका के भाई के साथ नायक के दृश्य भी दिलचस्प हैं, जिसमें नायक, नायिका के भाई को एक जगह खड़े रहने का आदेश देता है और वह बच्चा वहीं लगातार खड़े रहकर एक ऐसा संवाद बोलता है कि नायक का चेहरा एक नन्हें देशभक्त के सामने फक्र से भर जाता है। कैफी आजमी साहब ने इस फिल्म के लिए ऐसे गीत लिखे हैं जो मर्म को छू जाते हैं। कर चले हम फिदा जान ओ तन साथियो अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो, हो के मजबूर मुझे उसने भुलाया होगा, जरा सी आहट होती है तो कहता है दिल कहीं ये वो तो नहीं।

मदन मोहन ने इन गीतों की संगीत रचना भी मर्म के अनुकूल ही तैयार की थी। कर चले हम फिदा, गीत सुनते हुए सचमुच देशभक्त शहीदों की याद में हमारी आँखें नम हो जाती हैं। यह गाना कैप्टन बहादुर सिंह की शहादत पर फिल्माया गया है। मोहम्मद रफी साहब ने इस गाने को गहरे भाव में डूबकर गाया है, और कोरस की बात ही क्या।

धर्मेन्द्र के कैरियर की यह एक उल्लेखनीय फिल्म है। हकीकत सुपरहिट फिल्म थी। बलराज साहनी, जयन्त की भूमिकाएँ याद रह जाती हैं और हम भूपिन्दर जो कि गायक भी हैं, सुधीर के अभिनय को भी याद रखते हैं। यह फिल्म सैनिकों के साथ-साथ उनके परिवार, माँ-पिता, पत्नी, भाई-बहनों की संवेदनाओं को भी मन को छू लेने वाली निगाह से देखती है।

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