शम्मी कपूर साहब पिछले लगभग दस-बारह साल से बीमारियों को मात दे रहे थे। सच मायने में वे इस फ्रण्ट में किसी बड़े योद्धा की तरह ही थे। आमतौर पर गम्भीर बीमारियों की पहचान ही आदमी को आधा मार देती है। हम मामूली ब्लड टेस्ट कराने जाते हैं तो उसकी रिपोर्ट आने तक हमारी जान सूखी रहती है। ऐसा लगता है जाने किस तरह का इम्तिहान है, क्या परिणाम आयेगा और इधर शम्मी कपूर, किडनी की बीमारी और निरन्तर डायलिसिस की तकलीफदेह और त्रासद स्थितियों से अपने जीवट के दम पर ही जूझते रहे।
कुछ समय पहले ही हमने यह खबर पढ़ी थी कि इम्तियाज अली की फिल्म रॉक स्टार के एक गाने की सीक्वेंस में वे अपने पोते रणबीर कपूर के साथ एक-दो स्टेप्स करने को तैयार हो गये हैं। इम्तियाज अली ने यह काम बड़ी सावधानी से, शम्मी साहब की बड़ी फिक्र करते हुए पूरा किया। इस साल जब वह फिल्म आयेगी तो हमें लगेगा कि ताजिन्दगी ऊर्जा को अपने आपमें जीने वाला, सबको अपनी ऊर्जा से ऊर्जा बाँटने वाला कैसा विलक्षण शख्स था यह शम्मी कपूर नाम का। यह बात मन में क्लेश पैदा करती है कि इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया में शम्मी साहब को लेकर एक कायदे की टिप्पणी भी दिखायी नहीं दी।
चैनलों ने, खासकर उसमें मनोरंजन के कार्यक्रम बनाने वाले लोगों ने, स्क्रिप्ट लिखने वाले लोगों ने शम्मी कपूर पर पाँच-दस मिनट भी सार्थक श्रद्धांजलि नहीं दी। घटनाएँ अपनी प्रमुखताएँ जाने, खुद कैसे तय करती होंगी, शायद नहीं करतीं क्योंकि यह काम जिसके हाथ में होता है, कई बार जमावट में उसके निर्णय विस्मित करते हैं। शम्मी कपूर भी अखबारों में पहले पेज पर दस लाइन और भीतर के किसी पेज पर शेष की तरह थे। एक स्मृति शेष कलाकार, वह भी इतना बड़ा, वरिष्ठ और बीसवीं सदी के सिनेमा में अपनी बड़ी मौलिक, बड़ी ठोस और नजरअन्दाज न की जा सकने वाली जगह रखने के बावजूद पन्द्रह लाइन की सो-काल्ड खबर में पूरा हो गया।
शम्मी कपूर क्या थे, पहली फिल्म क्या थी, कितनी फिल्में की थीं, क्या-कितना योगदान था, इस पर बात करना शायद यहाँ उतना मौजूँ नहीं है पर कम से कम यह बात की जानी बेहद जरूरी है कि कैसे अपने बड़े भाई सहित तीन-तीन महानायकों और पाँच-छ: दूसरे लोकप्रिय नायकों के बीच एक शमशेर अपनी धारा खुद सृजित करता है, स्थापित करता है और आप-दर्शकों को उससे सहमत भी करता है, बिना दबाव के, खुशी-खुशी।
शम्मी कपूर समकालीन उपस्थिति में अपने अनुशासन के बावजूद एक्सपॉण्ड होते दीखते थे, अपनी हर फिल्म में। हमें जिन्दगी में जीते-जी मार देने वाली बीमारी-हारी से लडऩे वाले एक सिकन्दर के रूप में शम्मी कपूर को याद रखना चाहिए।
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