शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2010

सिनेमा में गांधीजी और गांधी-मूल्य

कवि प्रदीप का लिखा एक भावपूर्ण गीत फिल्म जाग्रति में है, दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना, ढाल, सावरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल, रघुपति राघव राजा राम। इसी में एक लाइन यह भी है, आंधी में भी जलती रही गांधी तेरी मशाल, सावरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल। अविष्कार के बाद कई वर्ष सिनेमा के माध्यम से हमारी परम्पराओं, संस्कृति और मूल्यों को लेकर बड़े सशक्त और प्रभावी ढंग से बातें कहने का यादगार काम हमारे फिल्मकारों ने किया है। आजाद मुल्क में विकास और प्रगति के रास्ते पर चलने की प्रेरणा देने वाले मंत्र, हमारी सदियों की प्रेरणाओं से आये। फिल्में भी इसी बात का उदाहरण हैं।

लम्बे समय तक ये काम उन लोगों ने किया है जिन्हें सिनेमा सबसे सशक्त और प्रभावी माध्यम अपनी बात को दूर-दूर तक बड़े असर, खासकर सार्थक असर के साथ कहने का जरिया लगा है। इस स्तम्भ में जाग्रति फिल्म पर एक रविवार को लिखते हुए उसकी विशिष्टताओं की चर्चा की है। महात्मा गांधी पर पहली बार एक फिल्म 1948 में पी. व्ही. पाथे ने बनायी थी। 1968 में गांधी जी के जीवन पर एक फिल्म, महात्मा - लाइफ ऑफ गांधी 1869-1948, में जैसा कि स्पष्ट है, गांधी जी के पूरे जीवन को रेखांकित किया गया था। अंग्रेजी में बनी इस श्वेत-श्याम फिल्म का निर्माण गांधी नेशनल मेमोरियल फण्ड ने वि_लभाई झवेरी के निर्देशन मे किया था। यह फिल्म गांधी जी पर केन्द्रित एक दुर्लभ मगर महत्वपूर्ण दस्तावेजीकरण की तरह थी। इस फिल्म के लिए शोध करने वाले डी. जी. तेन्दुलकर ने ही गांधी जी पर केन्द्रित आठ खण्डों में वृहद लेखन, महात्मा शीर्षक से किया था।

हालाँकि रिचर्ड एटनबरो की फिल्म गांधी का निर्माण बड़े अरसे बाद हुआ और उस फिल्म ने अपनी विशिष्टताओं से प्रभावित किया। एटनबरो की गांधी में बेन किंग्स्ले ने गांधी जी की भूमिका निभायी थी। एक अमरीकन निर्देशक, विश्व के महान कलाकारों और तकनीशियनों के साथ किस तरह यह फिल्म बनाकर हिन्दुस्तान के दर्शकों को देता है, वह एक बड़ा अचम्भा था। उसके बाद हमारे देश में और भी कई फिल्में गांधी जी को केन्द्र में रखते हुए बनीं मगर एटनबरो की गांधी सा प्रभाव पैदा करना किसी के भी बूते की बात न थी।

श्याम बेनेगल ने द मेकिंग ऑफ महात्मा बनायी। उसकी अपनी सीमाएँ थीं। श्याम बाबू की वह, उनकी दूसरी फिल्मों की तरह श्रेष्ठ फिल्म नहीं थी। मैंने गांधी को नहीं मारा, गांधी इज माय फादर आदि फिल्में भी अलग-अलग ढंग से गांधी जी के व्यक्तित्व के विभिन्न पक्षों को देखती हैं मगर वे भी महत्वपूर्ण नहीं हैं।