शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

खुशियाँ आने वाली हैं

उस अँधेरे बगीचे में
चुपचाप बैठा माली है
सुबह होगी तब होगी
अभी तो मन खाली है

जाने कैसे कहते हो
क्या मन भर गया है
जागती आँखों में भोर
कोई नींदें हर गया है

दर्पण सी हथेलियों में
बस चेहरा तुम्हारा है
अपलक निहारते नेह को
बस भरम का सहारा है

आहटों पर कान इस तरह
कुछ खुशियाँ आने वाली हैं
होकर यहीं से गुजरेंगी
पहले से उम्मीदें पाली हैं

4 टिप्‍पणियां:

vandana gupta ने कहा…

khushiyon ka swagat karna bhi ek kala hai.

Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) ने कहा…

sunder kavita!

सुनील मिश्र ने कहा…

आपका आभारी हूँ वंदना जी.

सुनील मिश्र ने कहा…

धन्यवाद अंजना जी, कविता पसंद करने के लिए.