मंगलवार, 9 नवंबर 2010

हँसने, हँसाने के नाम पर

बड़े अरसे बाद गोलमाल थ्री में जॉनी लीवर दिखायी दिए। देखकर लगा कि लम्बे समय परदे से दूर रहकर भी कलाकार कितना पिछड़ जाता है। हालाँकि जानी की ऐसी स्थिति कभी नहीं रही कि उनका शुमार कोई बड़े हास्य अभिनेता के रूप में रहा हो। उन्होंने लम्बा समय स्ट्रगल खूब किया है। उनको बाद में सफलता मिली भी मगर वह सफलता उनको दरअसल अपने हुनर की वजह से मिली न कि कोई प्रतिभा या दक्षता के कारण। उन्होंने उस पूरे खाली समय में अपना अधिपत्य जमाया जब कोई दूसरा हास्य कलाकार सक्रिय न था। यह बीच का ऐसा समय था जब बहुत सारे नायक कॉमेडी सिनेमा के सिरमौर बन गये थे। अनिल कपूर से लेकर शाहरुख खान, सलमान और आमिर, अक्षय कुमार से लेकर संजय दत्त और सुनील शेट्टी तक मसखरी की हद तक जाकर अपना अन्दाज स्थापित कर रहे थे।

जॉनी लीवर ने उस वक्त अपनी जगह का विस्तार किया जब इन सितारों का भी कॉमेडी रंग उतरने लगा। उस पाँच-सात साल के बीच वे उभर कर सामने आये। वे एक अनिवार्यता सी भी बने। शक्ति कपूर घटिया कॉमेडी और उसके बाद स्कैण्डल में फँसकर अपना स्थान गवाँ बैठे। इसी बीच राजपाल यादव का उदय हो गया। वे व्यावसायिक सिनेमा के नये कॉमेडी आयकॉन बन गये। देखा जाये तो राजपाल यादव को इस बात का श्रेय जाता है कि उन्होंने अपनी उपस्थिति और सक्रियता से जॉनी लीवर युग को पूरी तरह शून्य कर दिया। लेकिन एक दूसरा पहलू यह भी है कि उनकी अपनी मौलिकता भी एक सीमा के बाद अप्रभावित करने लगी। सिनेमा की भाषा में एक जैसे काम करने वाले या एकरस को टाइप्ड कहा जाता है। सो राजपाल यादव भी जल्दी ही टाइप्ड हो गये। उनको अभिनेता आशुतोष राणा ने शुरूआती समर्थन और प्रोत्साहन दिया था मगर आशुतोष से भी आगे उनका जहाँ बन गया।

इस समय अब राजपाल यादव का कैरियर भी उतार पर है। दो वर्ष पहले यह तक होने लगा था कि राजपाल यादव के लिए कैरेक्टर विशेष रूप से निर्देशक लिखवाते थे। प्रियदर्शन के वे प्रिय पात्र बने लेकिन प्रियदर्शन के सिनेमा से ही उनका चेहरा और काम उकताऊ हो गये। राजपाल यादव अब उतने लोकप्रिय नहीं रहे। इधर प्रियदर्शन ने राजपाल की उपस्थिति में ही जॉनी लीवर को खट्टामीठा में लेकर फिर उन्हें आजमाने की कोशिश की। एक दूसरी कोशिश रोहित शेट्टी ने गोलमाल थ्री में की। मगर यह बात नजर आने लगी है कि जॉनी लीवर उस तरह का तिल हो गये हैं जिसमें तेल नहीं है। आराम ने काया को बेडौल कर दिया है। अदा और अन्दाज भी अब लुभाते नहीं।

ऐसा लगता है कि हास्य के नाम पर आज के समय फिर सिनेमा में संक्रमण काल सा है। सब कुछ फूहड़ता के भरोसे है और हास्य बेमन और अरुचि का सबब बनकर रह गया है।

5 टिप्‍पणियां:

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

sunil ji,
bahut sahi vishleshan kiya aapne. raajpaal yadav to fir bhi apni upasthiti se logon ko hasaa dete lekin johny lever to bilkul nahin. pahle deven verma hote they jinki sahaj acting se hasi aa jati thee, bina kisi fuhadpan ke. paresh rawal bhi bahut achhe haasya abhineta hain jinka sahaj abhinay hasa jata hai. lekin baaki ki comedy to fuhadpan se jyada kuchh nahin lagti. bhale shahrukh khan, salmaan khan ya ajay devgan ki kuchh haasya filmein manoranjak hai.
bahut sateek aaklan aur sameeksha, badhai aapko.

बेनामी ने कहा…

bilkul sahi likha hai.

बेनामी ने कहा…

Sunilji aapne haasya abhinetaon ke baare me bahut achchaa likha hai.

सुनील मिश्र ने कहा…

जेन्नी जी, इतने अच्छे विश्लेषण के बहुत-बहुत आभारी हूँ आपका। अब हासी स्वस्थ भाषी नहीं रहा और न ही स्तरीय चेष्टा से ही उपज पता है। अब तो यह सरकसों और जोकरों का विषय हो गया है।

सुनील मिश्र ने कहा…

बेनामी जी, आपका हार्दिक आभार।