रविवार, 3 अप्रैल 2011

कमल-रति की एक दूजे के लिए


हिन्दी सिनेमा का दर्शक आज कमल हासन को एक असाधारण अभिनेता के रूप में जानता है लेकिन 1981 में जब उनकी पहली हिन्दी फिल्म एक दूजे के लिए रिलीज हुई थी, तब उनसे हिन्दी दर्शक वर्ग परिचित नहीं था। सुपरहिट तेलुगु फिल्म मारो चरित्र की हिन्दी रीमेक यह फिल्म अपने समय की ब्लॉक बस्टर हिट फिल्म थी जिसने तब दस करोड़ रुपये का व्यवसाय किया था। एक दूजे के लिए फिल्म की खासियत यह थी कि इसके प्रति युवाओं की आसक्ति एक संवेदनशील आग्रह की तरह थी, जिसे बिना देखे रह पाना मुमकिन न था।

फिल्म के नायक कमल हासन और नायिका रति अग्रिहोत्री। एक दूजे के लिए, एक भावनात्मक प्रेम कहानी थी जिसमें अविभावकीय जड़ता और भाषा ही प्रेमियों के बीच दीवार थी। बासु दक्षिण भारतीय है, हिन्दी नहीं जानता, उसे अपने पड़ोस में रहने वाली सपना से प्यार हो जाता है। बासु हिम्मती युवक है, बुलेट चलाता है, माउथ ऑर्गन बहुत अच्छा बजाता है, गाता-नाचता है, अपने मन के भाव टूटे-फूटे शब्दों में व्यक्त भी करता है। सपना उसकी सहजता और अपने प्रति अटूट प्रेम के वशीभूत है। बासु, सपना को लुभाने के लिए हिन्दी फिल्मों के नामों को जोडक़र एक पूरा गाना भी बनाता है, मेरे जीवन साथी प्यार किए जा।

प्रेम कहानियों में अपने किस्म का जुनून इस फिल्म में दिखायी देता है। प्रेमियों के बीच सच्चे प्यार को प्रमाणित करने के लिए एक साल तक एक-दूसरे से नहीं मिलने की शर्त है। बासु से कहा जाता है कि वो एक साल में हिन्दी सीखकर बताये। इस बीच सपना के मन को भटकाने के कुटिल प्रयत्न भी हैं। बासु भी अव्हेलना और बेचैनी का शिकार है। बासु के जीवन में एक और युवती संध्या आती है जो उसके प्रति आकृष्ट होती है मगर बासु उससे प्यार नहीं करता।

फिल्म के क्लायमेक्स में गलतफहमियाँ और शराब के नशे में संध्या के अपराधी भाई द्वारा अपने गुण्डों से बासु की हत्या का आदेश देना, फिल्म को दुखद अन्त तक पहुँचाते हैं। बासु मारा जाता है और गुण्डों से बलात्कार की शिकार सपना भी उसकी बाहों में दम तोड़ती है। ठाठे मारते समुद्र की लहरें ऊँची चट्टानों से टकराकर इस अन्त को गहरे अवसाद में बदल देती हैं। हमें बासु और सपना की आवाजें सुनायी देती हैं।

एक दूजे के लिए मन में गहरा प्रभाव छोडऩे वाली फिल्म है। कमल हासन इस पहली ही फिल्म हिन्दी भाषी दर्शकों के दिलों में गहरे उतर गये थे। आनंद बख्शी के लिखे गाने, लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल का संगीत, लता मंगेशकर और एस.पी. बालसुब्रमण्यम के गाने, तेरे मेरे बीच में कैसा है ये बंधन, हम तुम दोनों जब मिल जायेंगे, हम बने तुम बने एक दूजे के लिए, ऐ प्यार तेरी पहली नजर को सलाम आज भी अपनी मिठास और मर्मस्पर्शी प्रभाव के कारण याद हैं।



2 टिप्‍पणियां:

shashiprabha.tiwari ने कहा…

bahut achchaa aur prasangik likha hai aapne.

सुनील मिश्र ने कहा…

आभारी हूँ।
प्रासंगिक कहना तो ठीक न होगा।
तीन दशक पहले के समकाल को याद किया है सिनेमा के परिप्रेक्ष्य में शशि जी।