शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011

मेरा नाम है कैलेण्डर

सतीश कौशिक को उनकी क्षमताओं, काया और अभिव्यक्त होने वाले पक्ष के लिहाज से थमे हुए हिन्द महासागर की उपमा से जोड़ा जाये तो शायद कोई अतिश्योक्ति न हो। ऐसा इसलिए कहने को आता है कि लगभग तीन दशक सिनेमा में अपनी निरन्तर उपस्थिति के बाद भी इस कलाकार के भीतर की क्षमताएँ और प्रभाव मात्र तीस प्रतिशत से भी कम सामने आये होंगे। सतीश कौशिक आज निश्चित ही एक भारी भरकम काया हैं मगर शुरूआत में बड़े मझौले से दीखते थे जब फिल्मों में आये थे। रवीन्द्र धर्मराज की फिल्म चक्र देखने वालों को उनका बड़ा जिद्दी और लम्पट सा किरदार शायद याद हो, छोटी सी भूमिका, झोपड़पट्टी के एक गुण्डे की।

मुकम्मल सतीश कौशिक को नहीं जानने वाले, यह भी नहीं जानते होंगे कि वे अभिनय से ज्यादा निर्देशन का जुनून पालकर रखते हैं और शेखर कपूर जैसे फिल्मकार के सहायक और कई फिल्मों के पटकथा एवं संवाद लेखक भी रहे हैं शुरू में। पिछले साल इन्हीं दिनों में उनकी एक अच्छी फिल्म रोड मूवी आयी थी। इस बात वे बताते हैं कि डेविड धवन की फिल्म रास्कल में एक अच्छा रोल कर रहा हूँ।

सतीश कौशिक की परदे पर उपस्थिति और उनके किरदार बहुत मनोरंजन देते हैं। वे इस दौर में परेश रावल के ही समान अच्छे हास्य की सिचुएशन्स को रचने और व्यक्त करने में बहुत जोर नहीं लगाते। कैरेक्टर और उसका मिजाज, एक तरह से उनसे स्व-स्फूर्त होकर आता है। लगता नहीं कि उनके किरदार के लिए निर्देशक उनको अलग बैठाकर समझाता होगा या प्रस्तुति के लिए बड़ा चिन्तित होता होगा। अपना हिस्सा बखूबी अदा करने में उनको महारथ हासिल है। सतीश कौशिक वक्त का मिजाज देखकर काम करते हैं। काम जरूर कम करते हैं मगर खास काम के लिए कई बार निर्माताओं को उनके सिवा दूसरा नहीं मिलता। विफल होने के बावजूद रूप की रानी चोरों का राजा, उनकी एक बेहतरीन फिल्म है बतौर निर्देशक।

मिस्टर इण्डिया का एक यादगार किरदार हैं कैलेण्डर सतीश कौशिक। नायक का दोस्त जो दोस्त के जुनून और उसकी संवेदना में उसके साथ है और अनाथ बच्चों को खाना बनाने और खिलाने के काम में लगा रहता है। एक एक कॉमिक किरदार है मगर संवेदना से भरा हुआ। अगर एक बार सतीश कौशिक के नजरिए से मिस्टर इण्डिया देखें तो मजा अलग सा आयेगा। अपने स्तम्भ में उनके एक श्रेष्ठ नाटक सेल्समेन रामलाल की चर्चा हम पूर्व में कर चुके हैं जो रंगदर्शकों के लिए, खुद सतीश कौशिक के लिए मील का पत्थर है।

सिनेमा को दरअसल सतीश कौशिक से बहुत सा काम कराना चाहिए, उनको खाली बैठने नहीं देना चाहिए। अभिनय में खासकर और निर्देशन में भी उनका बहुत सा उत्कृष्ट आना बाकी है।

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