शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011

अपने सरलीकरण में लगे ओम पुरी


आजकल ओम पुरी पर शायद खूब काम करने का जुनून सवार हुआ है। उनको इन दिनों या बल्कि कह लें पिछले चार-पाँच साल में एक के बाद एक खूब फिल्में मिलना शुरू हो गयी हैं। इस दशक के काबिल निर्देशकों ने अर्धसत्य के इस अनंत वेलणकर में एक दिलचस्प मनसुखा तलाश कर लिया है। यही कारण है कि फूहड़ कॉमेडी फिल्मों में वे खूब नजर आ रहे हैं। खासतौर पर जब से प्रियदर्शन ने हास्य फिल्मों को अपनी दृष्टि और परिभाषा प्रदान की है तब से अचानक ओम पुरी अधिक प्रासंगिक हो गये हैं।

हमने एक जमाने में जिन ओम पुरी को दाँत भींचकर, धीमी आवाज में संवाद बोलते देखा था, वे ओम पुरी अब अत्यधिक मुखर हो गये हैं। अब चालू कॉमेडी फिल्मों में उनकी आवाज बुलन्द है। खासतौर पर उन्होंने अपनी संवाद अदायगी और हास्य प्रकट करने वाली क्षमताओं को अनोखे ढंग से प्रयोग करके बाजार में इस तथाकथित बिकाऊ सिनेमा के अनुकूल बना लिया है। अब ओम पुरी हर तरह की फिल्म में काम करते हैं फिर चाहे वो तीन थे भाई टाइप की फिल्म हो या कुछ दिनों में आने वाली अनाम और अचर्चित सी वेस्ट इज वेस्ट टाइप की फिल्म। अब उनके लिए किरदार को जीने की समस्या नहीं है। वे सहजता से कुछ भी हो जाया करते हैं।

हालाँकि लगभग दो दशक पहले उनके साथी और नये सिनेमा में उनसे कुछ अधिक ही रेंज रखने वाले नसीर भी पटरी बदल चुके हैं। जब वे तिरछी टोपी वाले जैसा गाना गाकर ओये ओये करने लगे थे तब उनके चहेते दर्शकों के मन में यह प्रश्र कौंधा था, कि नसीर किस रास्ते पर हैं पर नसीर ने किसी की परवाह नहीं की। वे व्यावसायिक सिनेमा में अपनी पूछ-परख को लगातार भुनाते भी रहे। यह अवसर ओम पुरी के पास बहुत देर से आया। नसीर ने मुम्बइया सिनेमा में तमाम तरह की भूमिकाओं को निभाते हुए अपने लिए एक वक्त में अपने लिए चयन का एक मापदण्ड स्थापित कर लिया।

इस समय नसीर फिर मजबूत भूमिकाओं में दिखायी देते हैं और इसी समय उनके साथी ओम पुरी बड़ी सामान्य और निरर्थक किस्म की भूमिकाएँ कर रहे हैं। ओम पुरी का आरम्भ और सक्रियता के दो दशक बेमिसाल हैं मगर फिलहाल वक्त उनके काम की मिसाल देना ज्यादा कठिन जान पड़ रहा है।

कोई टिप्पणी नहीं: