शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

जया आज भी वही गुड्डी


लगता नहीं कि उनके जन्मदिन के दिन जलसा या प्रतीक्षा के सामने हजारों लोग बेकाबू होकर खड़े रहा करते होंगे। उन्होंने अपने निरन्तर सिनेमाई कैरियर में विभिन्न किस्म की भूमिकाएँ करते हुए भी जिस गरिमा को जिया है, वह अनूठी है। उनकी रेंज को सिनेमा में, खासतौर पर कुछ विशिष्ट फिल्मों में उनके किरदारों को देखते हुए अनुमान कर पाना कठिन होता है। अपने स्पेस में उनका मौन बहुत कुछ कहता है। उनका हँसकर सहज होते हुए संवाद बोलना, उनकी सर्वथा अलग नजर आने वाली निश्छलता में दर्शक को ऐसा कौतुहल प्रदान करता है, जो किसी और कलाकार से सम्भव नहीं है। उनकी दृष्टि से उनके किरदार का द्वन्द्व पता चलता है और कई बार नहीं भी चलता लेकिन दोनों ही धरातलों पर जया बच्चन, जया बच्चन हैं, हिन्दी सिनेमा की एक विशिष्ट अभिनेत्री।

आज उनका जन्मदिन है। वक्त के साथ अपनी जवाबदारियों और सार्वजनिक जीवन की सक्रियताओं के साथ-साथ उनकी उपस्थिति बहुत व्यापक नहीं है और न ही बहुप्रचारित। उन्होंने अपना कोई आभामण्डल भी नहीं बना रखा है। अपने समय को बड़ी सहजता से बरतने वाली जया बच्चन की विशिष्टताएँ उनकी अनेकानेक खूबसूरत और मर्मस्पर्शी फिल्मों और किरदारों से प्रकट होती रही हैं। उनकी निरन्तर सक्रियता, बीच-बीच में अन्तराल, फिर किसी निमंत्रण या आग्रह विशेष पर उनका परदे पर कोई किरदार करने आना और अब लगभग लगातार काम करते रहना, सभी के पीछे उनके अपने स्वतंत्र निर्णय हैं। जया बच्चन का अपना कैनवास बड़ा व्यापक है। वे सभी से निष्प्रभावी रही हैं, रहती हैं।

अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति के महान फिल्मकार स्वर्गीय सत्यजित राय की फिल्म महानगर में सहायक भूमिका करते हुए वे फिल्मों में आयीं। इसके पहले पुणे फिल्म इन्स्टीट्यूट की वे प्रतिभाशाली छात्रा रही हंै। वहाँ की डिप्लोमा फिल्मों में उन्होंने काम किया, वे फिल्में संस्थान की दुर्लभ निधि हैं। वरीयता में वे बच्चन से साहब से आगे हैं। वे 1969 में सात हिन्दुस्तानी में काम कर रहे थे तब तक जया जी कई फिल्में कर चुकी थीं। गुड्डी उनकी एक दिलचस्प फिल्म है, यह नाम उनके जीवन में बड़ा मायने रखता है। बासठ वर्ष की उम्र में भी वही गुड्डी उनके चेहरे पर दिखायी देती है, जो हृषिदा ने गढ़ी थी।

कई तरह की फिल्में उन्होंने कीं। वक्त-वक्त पर उन पर कई बार बातें हुई हैं, लिखा गया है लेकिन एक बड़ी फेहरिस्त में जहाँ एक ओर अभिमान, मिली जैसी फिल्में हैं वहीं दूसरी ओर जंजीर और शोर जैसी फिल्में हैं जिनमें वे चक्कू छुरियाँ तेज करा लो और इसी तरह की भूमिकाओं में दिखायी देती हैं। यह बात सही है कि नवाजने वाली संस्थाओं और व्यवस्थाओं का ध्यान उन तक उस तरह से नहीं गया वरना बीस साल पहले पद्मश्री लेने वाली जया जी को अब तक पद्मभूषण मिल जाना चाहिए था।

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