शनिवार, 23 अप्रैल 2011

आँखों से बड़ी कोई तराजू नहीं होती


सदाबहार अभिनेता धर्मेन्द्र को फिल्म इण्डस्ट्री में इस वर्ष पचास साल पूरे हुए हैं। 1961 में दिल भी तेरा हम भी तेरे से, उनके कैरियर की शुरूआत हुई थी। इस रविवार हमको उनकी 1968 में आयी फिल्म आँखें की चर्चा करना उपयुक्त लगता है जो अपने समय की गोल्डन जुबली हिट फिल्म तो थी ही, इसी फिल्म से धर्मेन्द्र को दर्शकों ने इण्डियन जेम्स बॉण्ड कहना शुरू किया था।

आँखें, अपने दौर की जासूसी फिल्म के तौर पर चर्चित हुई थी। विदेशी षडयंत्र, खासतौर से अवैध हथियारों और तस्करी के माध्यम से हिन्दुस्तान में तबाही मचाने वाली ताकतों को संकेत में रखकर इस फिल्म का तानाबाना बुना गया था। इस फिल्म का नायक सुनील, अपने पिता जो कि खोजी और देश के दुश्मनों को बेनकाब करने वाले अभियान के प्रमुख हैं, के आदेश पर बेरुत जाता है। उसे वो सारी जानकारियाँ प्राप्त करना है कि किस तरह से खुफिया ढंग से दूसरे देश के अपराधी हिन्दुस्तान आकर अपने इरादों में कामयाब होते हैं।

यह एक ऐसा अभियान होता है, जिसमें फिल्म की नायिका मीनाक्षी, उसके दो साथी मिलकर पूरे अभियान को बड़े गुप्त रूप से अन्जाम देते हैं और आखिर में सारा का सारा षडयंत्र सामने आता है, देश के विदेशी दुश्मन भी बेनकाब होते हैं और वे लोग भी पकड़े जाते हैं जो अपने देश में रहकर देशद्रोह कर रहे थे। आँखें, फिल्म में जासूसी और अपराध में प्रयुक्त होने वाले उपकरण, ट्रांसमीटर, कैमरा, रेकॉर्डर आदि का दिलचस्प इस्तेमाल है। अपराधियों और नायक तथा उसके साथियों में शह-मात, लुकाछिपी का खेल फिल्म को रुचिकर बनाता है।

इस फिल्म की एकमात्र मुख्य विशेषता तो धर्मेन्द्र का नायक होना है। एक जाँबाज, बहादुर, शिष्ट और रोमांस के मामलों में शर्मीले इस नायक से नायिका की बातें, उलाहने, फिलॉसफी और गानों का अपना एक अलग आकर्षण है। सुनील, मीनाक्षी की मोहब्बत फिल्म के क्लायमेक्स में कुबूल करता है। साहिर के लिए गीत, मिलती है जिन्दगी में मोहब्बत कभी-कभी, गैरों पे करम, तुझको रक्खे राम तुझको अल्ला रक्खे और शीर्षक गीत, उस मुल्क की सरहद को कोई छू नहीं सकता, जिस मुल्क की सरहद की निगेहबान हैं आँखें अपने समय में खूब हिट हुए थे। फिल्म की शुरूआत में यह शीर्षक गीत हॉल में खूब तालियाँ बजवाता था।

माला सिन्हा फिल्म की नायिका हैं, जिनका अपना जादू है। मेहमूद और धुमाल, मसखरे चरित्र हैं, खास मेहमूद का तो सितारा तब खूब बुलन्द था। नजीर हुसैन, कुमकुम, ललिता पवार, जीवन, मदनपुरी फिल्म के विभिन्न सकारात्मक-नकारात्मक चरित्र हैं। लेखक, निर्माता, निर्देशक रामानंद सागर ने आँखें, फिल्म के सुपरहिट होने से बड़ा लाभ अर्जित किया था।



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