हिन्दी सिनेमा में बुरे आदमी के प्रभावी किरदार अक्सर दक्षिण के सिनेमा से लिए जाते हैं। दक्षिण के सिनेमा से यदि नहीं लिए जाते तो दक्षिण भारत के कठोर, कद्दावर शरीर-सौष्ठव तथा निर्मम चेहरे वाले कलाकार रंगमंच और दूसरे माध्यम से भी लिए जाते हैं। मुम्बइया सिनेमा में अक्सर ऐसे कलाकारों की उपस्थिति दर्शक को प्रभावित करती है। अक्सर मारधाड़ और हिंसा वाली फिल्मों में, खलनायक को अधिक शक्तिशाली और क्लायमेक्स में नायक के साथ आखिरी दम तक मुकाबला करने वाले दृश्यों के लिए इस तरह के कलाकारों को लोकप्रियता भी खूब मिली है।
यह बात खास ऐसे समय में करनी पड़ रही है, जब हमारे सामने हिन्दी, तेलुगु, भोजपुरी, मलयालम और तमिल फिल्मों के चर्चित और जाने-पहचाने खलनायक रामी रेड्डी के निधन का समाचार मिला है। रामी रेड्डी की उम्र ज्यादा नहीं थी, बावन वर्षीय यह कलाकार किडनी की बीमारी के चलते चल बसा। रामी रेड्डी का स्मरण करते ही एक हमारे सामने एक ऐसे खल-पात्र की छबि उपस्थित होती है, जिसका चेहरा भावशून्य, अतिशय क्रूरता और निर्मम दृष्टि और लगभग संवादों के बगैर काम चलाकर अपना काम करने वाला हिंसक आदमी, फिल्मों के सकारात्मक चरित्रों पर जुल्म करता है, देखते ही देखते तलवार से परदे पर खून की नदियाँ बहा देता है, छपाक से जिसके चेहरे पर सामने मरते हुए आदमी का खून फैल जाता है, ऐसा कलाकार, जिसके सिर पर बाल भी नहीं हैं।
रामी रेड्डी ने इस तरह के रोल खूब किए। नब्बे के दशक की शुरूआत में उनका आगमन एक सुपरहिट तेलुगु फिल्म अंकुशम से हुआ था जिसके निर्देशक कोडि रामकृष्णा थे। इस फिल्म का रामी रेड्डी का स्पॉट नाना वाला किरदार हिन्दी फिल्म प्रतिबन्ध में भी देखने में आया जिसके नायक चिरंजीवी थे। वे हिन्दी फिल्मों में स्पॉट नाना नाम से ही आगे चले। हिन्दी फिल्मों में जिस तरह से अब खलनायक की उपस्थिति नगण्य और प्रभावहीन है, उसको देखते हुए रामी रेड्डी का निधन उस तरह की सम्भावना को लगातार रिक्त रखेगा जो उनकी वजह से असरदार मानी जाती थी।
दो-तीन वर्ष पहले रघुवरन का लगभग इसी उम्र में देहान्त हो गया था जिन्होंने काफी हिन्दी फिल्मों में काम किया था। एक समय हिन्दी फिल्मों में शेट्टी का जलवा बुलन्द हुआ करता था जो नायक से लडऩे वाले अन्तिम बलशाली और ताकतवर खलनायक के रूप में नजर आते थे। निर्देशक रोहित शेट्टी उन्हीं शेट्टी के बेटे हैं। शेट्टी भी प्रौढ़ उम्र में ही इस दुनिया से चले गये थे।
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