शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010

धर्मेन्द्र की गोल्डन और प्लेटिनम जुबलियाँ

8 दिसम्बर भारतीय सिनेमा के सदाबहार सितारे धर्मेन्द्र का जन्मदिन है। यह साल उनकी गोल्डन और प्लेटिनम जुबलियों का है। गोल्डन जुबली इसलिए कि फिल्मों में काम करते हुए उनको पचास वर्ष पूरे हो रहे हैं और प्लेटिनम जुबली इसलिए कि वे पचहत्तर वर्ष के हो गये हैं। 8 दिसम्बर इस दरियादिल सितारे के जीवन का खास दिन होता है, वे भावुक हैं, कहते हैं कि माता-पिता

नहीं हैं तो जन्मदिन कैसा, मगर उनके चाहने वाले आज के दिन उनको एक ऐसा आत्मीय और प्यारा माहौल देते हैं कि वे भीतर के इस अवसाद से बाहर आकर सबसे खूब मिलते-जुलते हैं और सबके साथ अपना जन्मदिन मनाते हैं। जुहू में उनके बंगले पर सुबह से उनके चाहने वालों का तांता लग जाता है। धर्मेन्द्र सम्बन्धों को निबाहने वाले शख्स हैं लिहाजा बरसों के रिश्ते बनाने वाली हस्तियाँ उनका घर फूलों से भर देती हैं। बंगले के बाहर चाहने वालों से वे दिन भर मिलते हैं, प्यार कुबूल करते हैं, फोटो खिंचवाते हैं।

धर्मेन्द्र की विशेषता यह है कि वे अपने चाहने वालों को बड़ी तवज्जो देते हैं। वे कहते हैं कि इस मायावी दुनिया में बहुतेरे लोग अवसरों पर, जरूरतों पर, मतलब पर आकर जुड़ते और चले जाते हैं मगर उनकी फिल्मों के माध्यम से उनको पसन्द करने वाले देश भर में फैले, बल्कि विदेशों में भी रहने वाले लोग आज तक उनको वही प्यार देते हैं। धर्मेन्द्र कहते हैं कि सबका प्यार मेरे सिर-माथे है। वे इस बात को बड़े भावुक होकर स्वीकार करते हैं कि उनके सभी चाहने वालों ने उन्हें ही नहीं वरन उनके परिवार, बेटों सभी को वही आत्मीयता दी है। बीकानेर में उनको चाहने वाले तथा उन्हीं नाम से धर्मेन्द्र कलर लैब स्थापित करने वाले प्रीतम सुथार, इस बार के विशेष अवसर को सेलीबे्रट करने पच्चीस दिन पहले साइकिल से मुम्बई की यात्रा पर निकल पड़े और आज वो साइकिल से ही धर्मेन्द्र के घर पहुँचकर उनको शुभकामनाएँ देंगे।

दर्शकों के बीच अपनी ऐसी खास जगह बनाना बड़ा कठिन होता है। गुड्डी फिल्म के एक दृश्य में खलनायक शिरोमणि प्राण, धर्मेन्द्र की प्रशंसा में कहते हैं कि हीरो तो यही एक है जिससे मार खाने में मजा आता है। यह फिल्म खास धर्मेन्द्र के मैनरिज्म पर बनी दिलचस्प कहानी थी जिसमें जया भादुड़ी के सपनों में नायक के रूप में यह शख्स बसा हुआ है और वह सोते-जागते उनके ख्यालों में खोयी रहती है। धर्मेन्द्र एक ऐसे महानायक हैं जो अपनी अनेक फिल्मों में शेर से सीधे लडऩे के दृश्य बहादुरीपूर्वक करते रहे हैं।

धर्मेन्द्र इस बात को गर्व-बोध के साथ कहते हैं कि मेरे चाहने वालों का यह जज्बा रहा है कि माँओं ने मुझमें अपना बेटा देखा है और बहन ने भाई। इस बात में यह बात जोडऩे पर वे शरमा जाते हैं, कि.. और युवतियों ने अपना हीरो..। 1961 में एक यात्रा दिल भी तेरा हम भी तेरे से शुरू हुई थी जो यमला पगला दीवाना तक अनवरत् जारी है। गुलामी, बँटवारा, क्षत्रिय आदि अनेक फिल्मों की शूटिंग के जरिए राजस्थान से गहरे जुड़े धर्मेन्द्र इस अवसर पर पत्रिका के पाठकों को अपना स्नेह-प्यार देते हैं।

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